कीट जांच के लिए कोई भी यंत्र कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. हद तो यह कि देश भर में दलहन के पैदावार के लिए प्रसिद्ध 1064 वर्ग किलोमीटर में फैला बड़हिया टाल क्षेत्र को कृषि विभाग ने दलहन के बदले तेलहन क्षेत्र घोषित कर दिया है. जबकि टाल क्षेत्र में सिर्फ दलहन की प्रमुखता से पैदावार होती है. ऐसे में क्षेत्र में दलहन के विकास की कल्पना सहज ही की जा सकती है.
इतना ही नहीं, अब इसे पूरी तह बंद करने की भी चर्चा है.
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दलहन विकास कार्यालय बंदी के कगार पर
बड़हिया: दाल का कटोरा कहे जाने वाला टाल क्षेत्र में दलहन के विकास के लिए बड़हिया में कार्यालय खोला गया. लेकिन दलहन विकास कार्यालय विभागीय उपेक्षा का शिकार हो गया. यह कार्यालय दलहन फसल के तकनीकी विकास के लिए खुला था. लेकिन दशकों से तकनीकी पदाधिकारी और पौधा संरक्षण निरीक्षक का पद रिक्त पड़ा हुआ […]
बड़हिया: दाल का कटोरा कहे जाने वाला टाल क्षेत्र में दलहन के विकास के लिए बड़हिया में कार्यालय खोला गया. लेकिन दलहन विकास कार्यालय विभागीय उपेक्षा का शिकार हो गया. यह कार्यालय दलहन फसल के तकनीकी विकास के लिए खुला था. लेकिन दशकों से तकनीकी पदाधिकारी और पौधा संरक्षण निरीक्षक का पद रिक्त पड़ा हुआ है.
10 पद हैं स्वीकृत : दलहन विकास कार्यालय बड़हिया में 10 पद स्वीकृत हैं. वर्तमान में दलहन विकास पदाधिकारी के पद पर लाल बहादुर, कृषि निरीक्षक अशोक कुमार पंजियार, आशु टंकक वीरेंद्र सिंह, सर्विलांस निरीक्षक विभूति कुमार, पदचर कालीचरण राय, जीप चालक रघुवंश सिंह, चौकीदार कमल किशोर सिंह पदस्थापित हैं. इनके वेतन पर प्रतिवर्ष लगभग 25 लाख रुपये खर्च हो रहा है. मगर तकनीकी पदाधिकारी और पौधा संरक्षक निरीक्षक का पद रिक्त रहने से कोई कार्य नहीं होता है. कार्यालय का जीप दशकों से मामूली तकनीकी खराबी के कारण बंद रहने से कबाड़ बन गया है.
1984 में खुला था कार्यालय
सितंबर 1984 में तत्कालीन क्षेत्रीय सांसद कृष्णा साही के प्रयास से दलहन के विकास के लिए बड़हिया में दलहन विकास कार्यालय खोला गया. इसमें छह जिले शामिल किये गये थे. इसके बाद तत्कालीन सांसद कृष्णा साही के प्रयास से राजेंद्र कृषि विवि पूसा और कृषि विवि सबौर के संयुक्त तत्वावधान में बड़हिया में दलहन अनुसंधान केंद्र खोला गया. इसमें इन छह जिलों के अतिरिक्त बेगूसराय, खगड़िया सहित कई जिलों को शामिल किया गया था. कृषि वैज्ञानिक बड़हिया में प्रवास कर नये-नये अनुसंधान करके कृषक को लाभ पहुंचाते थे. मगर विभागीय उपेक्षा के कारण दलहन अनुसंधान केंद्र बंद करा दिया गया है. और अब इसे पूरी तरह बंद करने पर विचार किया जा रहा है.
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