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कांसी घास के कारण सिकुड़ रही बरनार नदी

सोनो : प्रखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण बरनार नदी अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहा है. नदी के बड़े भाग में बहुतायत मात्रा में उगे हुए लंबे लंबे कांसी घास के कारण नदी सिकुड़ने लगी है. नदी के बालू पर उगे इस घास के कारण बालू मिट्टी में तब्दील हो रहा है. नदी के […]

सोनो : प्रखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण बरनार नदी अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहा है. नदी के बड़े भाग में बहुतायत मात्रा में उगे हुए लंबे लंबे कांसी घास के कारण नदी सिकुड़ने लगी है. नदी के बालू पर उगे इस घास के कारण बालू मिट्टी में तब्दील हो रहा है. नदी के बीच में भी बड़े बड़े खेतनुमा भाग ऐसा बन गया है जैसे डेल्टा का रूप ले लिया है.

इस कारण काफी चौड़ाई में बहती नदी की अविरल धारा सिकुड़ती जा रही है. किसान सहित आम लोग भी नदी की हालत देखकर चिंतित हैं. ऐसा नहीं की यह घास सिर्फ सोनो गांव के क्षेत्र में बरनार को अपनी चपेट में लिया है बल्कि दक्षिणी भाग से लेकर उत्तरी भाग के कई किलोमीटर लंबे नदी में फैल गया है. जुगड़ी, देवेपहाड़ी, चुरहेत, सोनो, केवाली, बलथर सहित कई घाट कांसी घास की गिरफ्त में है.

कुछ माह पूर्व जब घास के ऊपरी भाग में सफेद फूल लगे थे तब दूर से देखकर ऐसा लगता था जैसे नदी सफेद चादर से ढंक गया हो. इतनी अधिक मात्रा में यूं लंबे-लंबे घास को देख लोग हैरान और परेशान हैं. लोग बताते हैं कि यह घास इसी वर्ष नदी को अपनी चपेट में नहीं लिया है बल्कि बीते चार-पांच वर्षों से नदी में घास का फैलाव हो रहा है. और अब इस घास ने नदी की शक्ल सूरत ही बदलकर रख दिया है.

किसानों की मानें तो यह घास उनके किसी काम का नहीं है. इसे मवेशी भी नहीं खाते है. किसी खास जगहों पर इसे झोपड़ी बनाने के काम में लाया जाता है लेकिन यहां इसका कोई उपयोग नहीं किया जाता है. लंबे-लंबे व घने घास के भू-भाग में कई तरह के जानवर व अन्य जहरीले जंतु के डेरा जमाने का भी भय लोगों को सताने लगा है.
आखिर कांसी घास कैसे व कहां से आया
कुछ जानकर ग्रामीण कहते हैं कि शुरुआती समय में कहीं से घास के बीज नदी में बहकर आया व किनारे में स्थिर होकर पौधे में बदला जिसके फूल से गिरे बीज पुनः घास के पौधे को जन्म दिया और देखते देखते घास की इतनी अधिक मात्रा उग आया कि नदी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा. ग्रामीणों को यह भी पता नहीं कि नदी को इस घास से मुक्त कराने के लिए प्रशासनिक स्तर पर किससे गुहार लगायी जाये. नदी व पर्यावरण संरक्षण के हिसाब से इस मुसीबत से कैसे निबटा जाये यह तो संबंधित पदाधिकारी ही जानें परंतु एक बात तो तय है कि समय रहते यदि बरनार नदी के दर्जनों घाट सहित नदी को कांसी घास से मुक्त न कराया गया तो नदी का स्वरूप व जल प्रवाह सब कुछ बुरी तरह प्रभावित हो जायेगा.

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