सर्द रातों में जिले के 20 हजार से अधिक परिवार खुले आसमान के नीचे फुटपाथ और नहर तटबंध किनारे जिंदगी जीने को विवश हैं. इनके लिए न तो अलाव की व्यवस्था है और न इनकी गरीबी पर कोई मरहम.
प्रमोद तिवारी
गोपालगंज : शहर के बंजारी चौक के पास 15 वर्षीय सहबाज अपने तीन छोटे-छोटे भाइयों के साथ खुले आसमान के नीचे रहने को विवश है. दिन भर कबाड़ चुनना और शाम को किसी तरह बोरा चटी ओढ़ा कर छोटे- छोटे भाइयों को ठंड से बचाना उसकी नियति बन गयी है. पूछने पर कहता है कि अल्लाह मालिक हैं, वहीं कुछ दूर आगे मीना खातून पांच बेटियों के साथ धूप में बैठी है. इसके पति अमर मियां खांस रहे हैं. कहते हैं सर्दी आफत बन कर आयी है. यह महज एक बानगी है.
सर्दियों की रात में अकेले सहबाज और मीना ही नहीं, शहर से लेकर गांव तक हजारों जिंदगियां सर्द रातों में सिसक रही हैं. कई तो ऐसे हैं जिनके लिए सर्द भरी यह रात मौत का पैगाम लेकर आती है. हाल ही में गरीबी से जूझते जिउत पांडेय की मौत सड़क किनारे ठंड लगने से हो गयी. शीतलहर के इस मौसम में क्या शहर हो या गांव, गरीबी में जिल्लत की जिंदगी झेलते ऐसे 10 हजार परिवार हैं, जिनके सिर पर आसमान का छत है और सोने के लिए जमीन बिछावन. किसी तरह इनकी जिंदगी बोरा चटी ओढ़ कर कट रही है. सवाल यह उठता है कि आखिर सरदी से बचने के लिए इनके लिए क्या उपाय है? सामाजिक कल्याण की बातें अब तक इनके पास पहुंचते- पहुंचते दम तोड़ चुकी है.
शहर से लेकर गांव तक है दर्द
शहर के बंजारी मोड़ पर 15 परिवार लाचारी की जिंदगी जीने को विवश हैं, तो वहीं स्टेशन के पास भी सर्दियों की रात सिसकती है. एससीएसटी थाना और उपभोक्ता फोरम के पास एक महिला अपने बच्चों के साथ जहां जाग कर रात गुजार रही है, वहीं काला मटिहनिया में गरीबों की आह से सर्द रात सिसक रही है.
यहां वे लोग हैं जिन्हें गंडक की कटावी धारा ने बेघर कर दिया है. उत्तरप्रदेश की सीमा से लेकर प्यारेपुर तक 20 हजार से अधिक की आबादी इस दर्द से सराबोर है. इनके लिए कंबल बांटने को कौन कहे, अलाव की भी व्यवस्था नहीं है.