लालू, तेज प्रताप व तेजस्वी समेत 255 नामजद लोगों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस – राजद के बिहार बंद के दौरान कोतवाली थाने में दर्ज मामले का- सरकारी कार्य में बाधा व अभद्र व्यवहार करने का लगा था आरोपन्यायालय संवाददाता, पटना राजद के बिहार बंद के दौरान सरकारी कार्य में बाधा व कर्मियों से अभद्र व्यवहार करने के मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, उनके पुत्र तेजस्वी व तेज प्रताप सहित 255 नामजद व करीब 700 अज्ञात कार्यकर्ताओं पर दर्ज मामला वापस ले लिया गया है. इस मामले में दर्ज केस 393/15 को पटना के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने वापस लेते हुए सभी अभियुक्तों को मामले से मुक्त कर दिया है. इस आशय का एक आवेदन सरकार की ओर से मामले के जिला लोक अभियोजन पदाधिकारी भूपेंद्र नारायण सिंह द्वारा 19 दिसंबर 2015 को पटना के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में दिया गया था, जिसमें निवेदन कर अदालत से अनुरोध किया गया था कि उक्त मामले में नामित अभियुक्तों के खिलाफ सरकार अभियोजन नहीं चलाना चाहती. इसलिए, उक्त मामले को वापस लिया जाये. अदालत ने उक्त आवेदन के आलोक में मामले को वापस लेने की दंड प्रक्रिया की संहिता की धारा 321 (क) के तहत यह निर्णय लिया है.27 जुलाई को दर्ज हुआ था मामलागौरतलब है कि उक्त मामला 27 जुलाई 2015 को कोतवाली थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष रमेश प्रसाद सिंह के लिखित फर्द बयान पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, उनके पुत्र तेज प्रताप यादव व तेजस्वी प्रसाद यादव, प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे, प्रदेश महासचिव मुंद्रिका सिंह यादव, एमएलसी भोला यादव, राहुल तिवारी समेत 255 राजद कार्यकर्ताओं को नामजद करते हुए दर्ज किया गया था. उक्त मामला भादवि की धाराएं 147, 149, 341, 323, 332, 431, 504, 506 व 353 के तहत दर्ज किया गया था. उक्त मामले में लगभग 600 से 700 अज्ञात राजद कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी मामला दर्ज कर पुलिस ने अनुसंधान किया. इन पर आयकर गोलंबर से लेकर डाकबंगला चौराहा तक टायर जला कर सड़क बाधित करने, अभद्र व्यवहार, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाते हुए पदाधिकारियों एवं दंडाधिकारियों के खिलाफ उग्र प्रर्दशन करने का आरोप था. 13 अगस्त 2015 को दाखिल हुआ था आरोप पत्र पुलिस ने अपने अनुसंधान के क्रम में लगाये गये आरोप को सही पाते हुए उक्त मामले में नामजद सभी अभियुक्तों के खिलाफ सीजीएम की अदालत में 13 अगस्त 15 को आरोप पत्र भी दाखिल किया था. अनुसंधान के क्रम में अनुसंधानकर्ता ने कोतवाली के तत्कालीन पुलिस अवर निरीक्षक सतीश कुमार, पूनम चौधरी, धनंजय कुमार निर्दोष का बयान भी लिया, जिसने मामले का समर्थन किया. आरोप पत्र के बाद न्यायालय द्वारा लिये गये संज्ञान के पश्चात राज्य सरकार हरकत में आयी और मामले को वापस लेने का दबाव बनाया गया.डीएसपी ने मामले का दिया था प्रतिवेदनउक्त मामले में पुलिस उपाधीक्षक विधि व्यवस्था द्वारा मामले का मार्गदर्शन करते हुए दो पर्यवेक्षण प्रतिवेदन भी दिया गया. इसमें कहा गया कि अनुसंधानकर्ता अज्ञात 600-700 अज्ञात कार्यकर्ताओं के नाम-पते की जानकारी प्राप्त कर गिरफ्तारी व संपत्ति की कुर्की जब्ती करे और जब्ती सूची के साक्ष्यों का बयान लेकर केस डायरी में अंकित करे. अनुसंधानकर्ता ने उक्त मामले में अन्य 600-700 कार्यकर्ताओं के खिलाफ अनुसंधान जारी रखते हुए मामले में नामजद सभी अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल भी कर दिया था. लेकिन, सरकार द्वारा अभियोजन न चलाने का निर्णय लेते हुए मामले को वापस लिया गया. क्या है सीआरपीसी की धारा 321 उपखंड (क) : यह धारा कहती है कि लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक निर्णय सुनाये जाने के पूर्व किसी समय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के अभियोजन को या तो साधारणत: या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के बारे में जिसके लिए उस व्यक्ति का विचारण किया जा रहा है, न्यायालय के सम्मत से वापस ले सकता है. और ऐसे वापस लिये जाने पर उप खंड क में कहा गया है कि आरोप गठन के पहले यदि मामले को वापस लिया जाता है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में उन्मोचित (डिस्चार्ज) कर दिया जायेगा. अदालत द्वारा इसी धारा का सहारा लेते हुए मामले को वापस किया गया.
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लालू, तेज प्रताप व तेजस्वी समेत 255 नामजद लोगों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस
लालू, तेज प्रताप व तेजस्वी समेत 255 नामजद लोगों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस – राजद के बिहार बंद के दौरान कोतवाली थाने में दर्ज मामले का- सरकारी कार्य में बाधा व अभद्र व्यवहार करने का लगा था आरोपन्यायालय संवाददाता, पटना राजद के बिहार बंद के दौरान सरकारी कार्य में बाधा व कर्मियों से अभद्र […]
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