गोपालगंज : बरौली प्रखंड स्थित सारण तटबंध के किनारे बसा है आदर्श नगर गांव. बहुमंजिली और पक्के भवनों के साथ अधिकतर घरों में टेलीविजन चल रहा है. कई घरों में बच्चे कंप्यूटर पर कुछ सीख रहे हैं. यहां बूढ़े-जवान सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं. छुट्टी का दिन है, फिर भी बुजुर्ग बच्चों को पढ़ने […]
गोपालगंज : बरौली प्रखंड स्थित सारण तटबंध के किनारे बसा है आदर्श नगर गांव. बहुमंजिली और पक्के भवनों के साथ अधिकतर घरों में टेलीविजन चल रहा है. कई घरों में बच्चे कंप्यूटर पर कुछ सीख रहे हैं. यहां बूढ़े-जवान सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं. छुट्टी का दिन है, फिर भी बुजुर्ग बच्चों को पढ़ने की हिदायत दे रहे हैं.
विकास ऐसा, मानो शहर है. कार्य कुछ इस प्रकार, जैसे सब कुछ एक शिड्यूल में है. ठीक 15 साल पहले आदर्श नगर का नाम भी नहीं हुआ करता था. 2001 में आदर्श नगर की नींव पड़ी. जब गंडक के कहर से तबाह हो चुके ग्रामीण दर्द की दास्तां लिये वीरान खेतों में आकर बसने लगे.
डेढ़ दशक में बघवार से आदर्श नगर तक के सफर में ग्रामीणों की न सिर्फ सोच बदली, बल्कि पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत के लिए बढ़े इनके हाथ अपनी तकदीर को संवारते हुए एक नयी तसवीर बना डाली है. यहां न सिर्फ बिल्डिंग है, बल्कि हर युवा काम में लगे हुए हैं. कोई परदेस जाकर कमा रहा है, तो कोई गांव में खेती-बारी को व्यवसाय बना लिया है. बच्चे पढ़ने में लगे हैं. सबकी सोच बस एक ही है विकास.
ऐसे बदली तसवीर : विस्थापन के बाद ग्रामीणों के सामने भूख मिटाने की समस्या खड़ी थी. सबसे पहले अशेषर यादव दिल्ली गये और वहां पत्थर घिंसाई का काम शुरू किया. आज भी वे दिल्ली में ही हैं. इनका घर चार मंजिला है. धीरे-धीरे यहां के युवा दिल्ली और पंजाब का रूख करने लगे. वर्तमान में यहां के 150 युवा बाहर में कार्यरत हैं, जो राजमिस्त्री, पत्थर घिंसाई, बेल्डर, पाइप फिटर के कार्य में लगे हैं.
बच्चों को शिक्षित करने की है होड़:
आदर्शनगर के अशोक साह का लड़का सोनू कुमार भोपाल में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है, तो रूमा यादव का लड़का भैरव कुमार पटना में इंजीनियरिंग की कोचिंग कर रहा है. यहां के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं और प्रत्येक अभिभावक इन्हें उच्च शिक्षा देने के लिए प्रयासरत हैं.