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उजड़ता चला गया परिंदों का घोंसला
गोपालगंज : मुन, नीम, आम, इमली, गुलमोहर, बकैन के पेड़ों पर पक्षियों के घोंसले अब नहीं देखे जाते. आम के पेड़ों में जैसे पेड़ों में कोटर भी नहीं. दरअसल, दरख्तों पर आरियां और कटारियां चलती रहीं. नतीजतन पेड़ समाप्त होते गये और परिंदों का प्राकृतिक आशियाने उजड़ते चले गये. अब बेगाने पक्षियों ने भी घोंसला […]
गोपालगंज : मुन, नीम, आम, इमली, गुलमोहर, बकैन के पेड़ों पर पक्षियों के घोंसले अब नहीं देखे जाते. आम के पेड़ों में जैसे पेड़ों में कोटर भी नहीं. दरअसल, दरख्तों पर आरियां और कटारियां चलती रहीं. नतीजतन पेड़ समाप्त होते गये और परिंदों का प्राकृतिक आशियाने उजड़ते चले गये. अब बेगाने पक्षियों ने भी घोंसला बनाने के नये स्थान ढूंढ़ लिये हैं. उनके ये नये आशियाने बिजली के खंभे, दीवारों के हुक और टॉवर पर बन रहे हैं
बेगाने हुए परिंदे : शहर के अलावा एनएच-28 तथा एनएच-85 पर सड़क निर्माण के दौरान काटे गये पेड़ से घटती संख्या के कारण पाइड मैना अर्थात अबलक मैना, व्हाइट नेक्ड स्टॉर्क कौआ, गौरैया, बुलबुल, तोता, काठफोरनी, काग, कोयल, वीवर अर्थात बया पक्षियों को बिजली के खंभों, तारों व हाइटेंशन टॉवर पर घोंसला बनाते देखा गया है. पक्षी विज्ञानी डॉ रजत भार्गव के कैमरे में कैद हुई ये तसवीरें इनके उजड़े चमन की दास्तां बयां कर रही हैं.
पेड़ के साथ कटी जिंदगी की डोर : पिछले दिनों शहर के पोस्ट ऑफिस चौक से आंबेडकर चौक तथा आंबेडकर चौक से अरार चौक तक सड़क को चौड़ा करने के लिए पेड़ काट दिये गये. इन पेड़ों बने घोंसलों में कई तोते पल रहे थे जो इन पेड़ों के साथ ही खत्म हो गये.
यह अपराध की श्रेणी में आता है. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के चैप्टर एक की धारा 16 (सी) के अंतर्गत किसी ऐसे प्राणी के शरीर के किसी भाग को क्षतिग्रस्त करना या नष्ट देना या लेना अथवा वन्य पक्षियों का सरीसृपों की दशा में ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडे को नुकसान पहुंचाना अथवा ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडों या घोंसलों को गड़बड़ाना आता है. इसमें सात वर्ष तक का कैद व 25 हजार से सात लाख रु पये तक का जुर्माना का प्रावधान है.
घोसले बचाने को राजनीतिक इच्छाशिक्त नहीं : पक्षी विज्ञानी डॉ रजत भार्गव का कहना है कि पिछले तीन दशकों के दौरान गोपालगंज शहर के लगभग 50 प्रतिशत पुराने पेड़ काट दिये गये जिनमें पक्षियों के घोंसले हुआ करते थे.
इस भौतिकवादी दुनिया में इसकी चिंता कोई नहीं करता है. साथ ही ऐसा जान पड़ता है कि पक्षियों व उनके घोंसलों को बचाने की कोई राजनीतिक इच्छाशिक्त भी नहीं है. दुख की बात है कि बिजली के खंभों पर भी बंदर पक्षियों के अंडे खा रहे हैं.
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