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शिक्षक नियोजन से जुड़े रेकॉर्ड को चूहों ने कुतरा

नियोजन इकाइयों की मुश्किलें बढ़ीं वर्ष 2003-06 के नियोजन के रेकॉर्ड पर सर्वाधिक असर गोपालगंज : आप यकीन नहीं करेंगे. पर बात सोलह आने सच है. चूहों के कारण नियोजन इकाइयों की मुश्किलें बढ़ीं हुई हैं. अब तक सैकड़ों ऐसे मामले आ चुके हैं. जिनके रेकॉर्ड को चूहों ने कुतर डाला है. किसी फार्म में […]

नियोजन इकाइयों की मुश्किलें बढ़ीं
वर्ष 2003-06 के नियोजन के रेकॉर्ड पर सर्वाधिक असर
गोपालगंज : आप यकीन नहीं करेंगे. पर बात सोलह आने सच है. चूहों के कारण नियोजन इकाइयों की मुश्किलें बढ़ीं हुई हैं. अब तक सैकड़ों ऐसे मामले आ चुके हैं. जिनके रेकॉर्ड को चूहों ने कुतर डाला है. किसी फार्म में चिपकी तसवीर को कुतर दिया है, तो किसी फार्म के प्रमाणपत्र को कुतर दिया है.
नियोजन इकाई रेकॉर्ड को लेकर सांसत में पड़ी हुई है. वर्ष 2003 में शिक्षा मित्र तथा 2005 एवं 2006 में किये गये शिक्षकों के नियोजन से जुड़े रेकॉर्ड पर चूहों का सबसे अधिक नुकसान किया है. पंचायत नियोजन इकाइयों ने यह सोचा भी नहीं था कि वर्ष 2003 की रेकॉर्ड की निगरानी जांच हो सकती है, जिसके कारण जैसे तैसे कागज को पंचायत भवन या जहां पंचायत भवन नहीं है वहां मुखिया के घर पर कागज को रखा गया. उसकी अहमियत नहीं समझी गयी. आज जब उस कागज को खोजा जा रहा, तो अधिकतर कागजात को चूहे का कुतरा हुआ पाया गया. चूहों के कारण शिक्षकों का पुराना रेकॉर्ड खराब हो चुका है.
दीमक भी चाट गये गुरुजी की किस्मत : निगरानी जांच के दौरान जब गुरुजी के नियोजन से जुड़े रेकॉर्ड की खोज शुरू हुई ,तो चौंकाने वाले कई तथ्य सामने आये. वर्ष 2003 का नियोजन पंचायतों ने किया. फार्म को भर कर जब जमा किया गया, तो उसे जैसे -तैसे रखा गया.
जिसका नतीजा हुआ कि कागजात को दीमक चाट गया. अब नियोजन इकाई सांसत में है. करें तो क्या करें. उधर, गुरुजी की मुश्किल भी कम नहीं हो रही. उनकी भी रात की नींद गायब है.
कई पंचायतों में नहीं मिल रहा रेकॉर्ड : निगरानी की जांच शुरू होते ही पंचायत नियोजन इकाई रेकॉर्ड की तलाश कर रही है.
कई पंचायतों में नियोजन की रेकॉर्ड नहीं मिल रहे. कारण स्पष्ट है कि कई पंचायतों में उस समय के मुखिया स्वर्गवासी हो चुके हैं. उस पंचायत के पंचायत सचिव भी रिटायर कर चुके हैं या उनका तबादला हो चुका. अब मुखिया जी उस रेकॉर्ड को कहां से लाएं. वहां के शिक्षक भी कम परेशान नहीं हैं.

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