लाखों की राशि हुई बेकार रोगियों की सुविधा के लिए हुई थी व्यवस्था हवा-हवाई साबित हुई व्यवस्थाफोटो नं-1संवाददाता, गोपालगंजअनावश्यक भीड़ एवं घंटों लाइन में लगने से बचने के लिए लाखों रुपये की लागत से सदर अस्पताल के ओपीडी मंे डिजिटल डिसप्ले की व्यवस्था अक्तूबर, 2014 में की गयी. ओपीडी में डिसप्ले तो लग गया लेकिन यह मात्र शोभा की वस्तु बन कर रह गयी है. यहां लगा सभी डिसप्ले पर एकमात्र नंबर 321 हमेशा दिखता है. वर्ष 2014 में ओपीडी को हाइटेक करने एवं रोगियों की सुविधा के लिए एक नयी तकनीक शुरू की गयी. डॉक्टर के पास रोगियों के नंबर की जानकारी डिसप्ले से मिलनी थी. इससे किसी भी विभाग के डॉक्टर के दरवाजे पर अनावश्यक भीड़ न लगती. इसके लिए जब व्यवस्था लगनी प्रारंभ हुई, तो सब में एक सुखद दिन की उम्मीद जगी लेकिन एक दिन के लिए भी यह सिस्टम नहीं चल पाया. अलबत्ता डिजिटल डिसप्ले की सेवा में गोपालगंज सदर अस्पताल का नाम जुड़ गया. अब सवाल उठता है कि केवल रिकॉर्ड बनाने के लिए ऐसी हवा-हवाई व्यवस्था का क्या लाभ है और ये 321 नंबर कब तक दिखेगा.क्या कहते हैं सिविल सर्जन ” डिजिटल डिसप्ले तकनीशियन लगा कर चले गये और उसे सुव्यवस्थित नहीं की गयी. स्थानीय स्तर पर हमलोगों ने प्रयास किया लेकिन यह व्यवस्था सुचारु नहीं हो सकी. इसके लिए पूरी तरह से लगानेवाला विभाग दोषी है.डॉ विभेश प्रसाद सिंहसिविल सर्जन, गोपालगंज
सदर अस्पताल : डिजिटल डिसप्ले बनी शोभा की वस्तु
लाखों की राशि हुई बेकार रोगियों की सुविधा के लिए हुई थी व्यवस्था हवा-हवाई साबित हुई व्यवस्थाफोटो नं-1संवाददाता, गोपालगंजअनावश्यक भीड़ एवं घंटों लाइन में लगने से बचने के लिए लाखों रुपये की लागत से सदर अस्पताल के ओपीडी मंे डिजिटल डिसप्ले की व्यवस्था अक्तूबर, 2014 में की गयी. ओपीडी में डिसप्ले तो लग गया लेकिन […]
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