दियारे की लाइफ लाइन : नाव कराती है जिंदगी और मौत का सफर संवाददाता, गोपालगंजजीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां… फिल्म का यह गीत गंडक के दियारावासियों पर फिट बैठती है. गंडक की गोद में पलना, बढ़ना और जिंदगी चलाना और फिर उसी की गोद मे सो जाना दियारा वासियों की स्थिति बन गयी हैं. दियारे की लाइफ लाइन बन चुकी नाव से दियारावासियों की जिंदगी संवारती भी है और मौत का तोहफा भी दे जाती है. उत्तर प्रदेश की सीमा अहिरौली से लेकर सारण की सीमा प्यारेपुर तक 70 किमी की लंबाई में जिले की 25 फीसदी आबादी गंडक की गोद में बसती है. समय दर समय विकास का कारवां बढ़ता गया, लेकिन दियारावासियों की जीवन शैली सौ वर्षों से कभी नहीं बदली. सोमवार को बैकुंठपुर का हेपु छपरा में दो युवकों की मौत के बाद दियारा चीत्कार उठा. यह चीत्कार पहली दफा नहीं है बल्कि अब तक सैकड़ों को गंडक नाव सहित अपनी गोद में सुला चुकी हैं. मौत और फिर चीत्कार पर इन परिजनों के साथ शासन दशा सुधारने के लिए कोई प्रयास न हुआ. अब सवाल उठता है यमलोक पहुंचाती ये नावें कब तक इनकी लाइफ लाइन बनी रहेंगी. इसका जवाब गंडक को छोड़ किसी के पास नहीं हैं, क्योंकि खुशी भी वही देती है और मौत भी वही.
जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां
दियारे की लाइफ लाइन : नाव कराती है जिंदगी और मौत का सफर संवाददाता, गोपालगंजजीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां… फिल्म का यह गीत गंडक के दियारावासियों पर फिट बैठती है. गंडक की गोद में पलना, बढ़ना और जिंदगी चलाना और फिर उसी की गोद मे सो जाना दियारा वासियों की स्थिति बन […]
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