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136 साल की महिला! कहते हैं मौत इनके घर का रास्ता भूल गयी
गोपालगंज : सदर प्रखंड के तिरविरवा यादव टोला की रहनेवाली शिवधरिया देवी को गोपालगंज जिले में अबतक की सबसे उम्रदराज महिला बताया जाता है. परिजनों का दावा है कि इनकी उम्र 136 साल है. हालांकि, इस बुजुर्ग महिला को लंबी जिंदगी ने परेशान कर दिया है. शिवधरिया कहती हैं कि इतने सालों में शायद सिर्फ […]
गोपालगंज : सदर प्रखंड के तिरविरवा यादव टोला की रहनेवाली शिवधरिया देवी को गोपालगंज जिले में अबतक की सबसे उम्रदराज महिला बताया जाता है. परिजनों का दावा है कि इनकी उम्र 136 साल है. हालांकि, इस बुजुर्ग महिला को लंबी जिंदगी ने परेशान कर दिया है. शिवधरिया कहती हैं कि इतने सालों में शायद सिर्फ एक ही दिन था जब मैं खुश रही हूं.
बाकी मुझे लगता है कि भगवान ने मुझे लंबी जिंदगी देकर सजा दी है. उन्होंने इतनी लंबे वक्त इतना कुछ देख लिया है, जिससे वह परेशान हो चुकी हैं. वे बताती हैं कि उनके सारे बच्चे उन्हीं के सामने बुजुर्ग हो चुके हैं. अपने बच्चों के सामने अपनी इस कठिनाई को देख किसे अच्छा लगेगा? वे कहती हैं कि कई युद्ध, कई मौतें और कई विनाश देखी पर उनकी मौत नहीं आयी.
‘शायद मौत मेरे घर का रास्ता भूल गयी है’. शिवधरिया के सबसे छोटे बेटे योगेंद्र यादव की पुत्री 24 साल की शिला कुमारी उनका ख्याल रखती है. शिला कहती है कि इस उम्र में भी उसकी दादी की सिर्फ आंखें कमजोर हुई हैं. दादी चलती फिरती हैं. कई बार अपने से खाना भी बना लेती है, लेकिन हमेशा दुखी रहती है.
शाकाहारी हैं शिवधरिया
शिवधरिया देवी शाकाहारी हैं. वह खाना बहुत कम खाती हैं, बस खूब दूध पीती हैं. उनका मानना है कि भगवान ने उन्हें सजा दी है, इसलिए वे अगले साल 137वें जन्मदिन तक जिंदा जरूर रहेंगी.
अस्पताल आने पर सेल्फी लेने लगे लोग : शिवधरिया देवी के घुटने में दर्द हुआ तो उन्हें शुक्रवार को सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल में 136 साल की मरीज को देख कर्मी और अन्य मरीज सेल्फी लेने लगे. हड्डी एवं नस रोग विशेषज्ञ डॉ अमर कुमार ने इलाज किया. डॉ अमर कुमार ने कहा कि अधिक उम्र होने के घुटने में दर्द था. डॉक्टर ने शिवधरिया का आजीवन नि:शुल्क इलाज करने का जिम्मा उठाया.
सदर प्रखंड के तिरविरवां यादव नगर की रहने वाली हैं महिला, आंखें कमजोर हुई हैं, चलती-फिरती हैं शिवधरिया
जिंदगी में सिर्फ एक दिन खुशी वाला
136 साल की जिंदगी में शिवधरिया एक दिन को खुशी देने वाला मानती हैं. उन्होंने कहा, वह दिन तब था जब हम युद्ध के बाद आजाद हुए थे. मैंने अपने हाथों से घर बनाया था. पति किसान थे, इसलिए मैं ही घर का काम करती थी. अपने नये घर में जाकर खुश थी. अब वैसा दिन भी नहीं रहा है.
याद है द्वितीय विश्व युद्ध के समय का भयानक दौर
द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र करते हुए शिवधरिया कहती हैं कि वह बहुत ही भयानक दौर था. उस वक्त दिल्ली में परिवार रहता था. टैंक हमारे घरों के पास से गुजरते थे. हमें ट्रेनों में जानवरों की तरह भरकर यहां से वहां ले जाया जाता था. मैंने कई लड़कियों को अपने सामने मरते देखा है. ट्रेन के टॉयलेट भयानक बदबूदार होते थे.
ऐसे में लड़कियां वहां जाने से डरती थीं और ब्लैडर फट जाने से उनकी मौत हो जाती थी. जो ट्रेन में मर जाता. उसे फेंक दिया जाता था. अपनी उम्र के राज के सवाल पर कहा कि ये सिर्फ भगवान की मर्जी है. मैंने देखा है लोग लंबे समय तक जीने के लिए खेलते-कूदते हैं. मैंने इतने समय तक जीवित रहने के लिए कुछ भी नहीं किया.
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