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बाढ़पीड़ितों को अब भी तारणहार का इंतजार

बरौली : आधार कार्ड और वोटर कार्ड बाढ़ के पानी में बह गये. अब राहत मिले भी तो कैसे? ऐसी स्थिति में जीने की विवशता और पेट की आग रोज पलायन करने को मजबूर कर रही है. बरौली प्रखंड के पूर्वी भाग में स्थित पिपरा पंचायत का कल्याणपुर मधुबनी गांव जिसे गंडक से आयी बाढ़ […]

बरौली : आधार कार्ड और वोटर कार्ड बाढ़ के पानी में बह गये. अब राहत मिले भी तो कैसे? ऐसी स्थिति में जीने की विवशता और पेट की आग रोज पलायन करने को मजबूर कर रही है.
बरौली प्रखंड के पूर्वी भाग में स्थित पिपरा पंचायत का कल्याणपुर मधुबनी गांव जिसे गंडक से आयी बाढ़ ने भयंकर रूप से तबाह कर दिया, अब भी इस गांव की सिसकियां फिजा में गूंज रही है़ं दिन के 11 बज रहे हैं, लेकिन इस गांव के हर बाशिंदे के चेहरे पर 12 बज रहे हैं. बजे भी क्यों नहीं, बाढ़ ने कहीं का नहीं छोड़ा़ गांव में अधिकतर औरतें, बुजुर्ग और बच्चे ही दिख रहे हैं.
पूछने पर एक गिरी पलानी में घास पर कपड़ा बिछा कर लेटे बुजुर्ग कलामुद्दीन मियां भरे गले से बताते हैं कि बाढ़ ने दो बेटे, बहुओं और पोते-पोतियों के बीच हंसती-खेलती जिंदगी को तबाह कर दिया. दोनों बेटे खेती कर अच्छा कमा लेते थे. फसल भी ठीक थी, लेकिन बाढ़ की भेंट चढ़ गयी़ बहुओं और पोते-पोतियों को उनके मैके पहुंचाने के बाद बेटे काम की तलाश में पलायन कर गये. घर के नाम पर यही टूटी-फूटी झोंपड़ी बची है जिसमें धूप और बारिश के बीच सोना नियति बनी है़ ये हाल केवल कलामुद्दीन मियां का नहीं बल्कि धुनिया टोली के बली यादव, रामलखन यादव, श्रीमती कुंवर, शिवबचन यादव, उमरावती कुंवर, विदांती देवी सहित दर्जनों बाढ़पीड़ितों का है जिनके घर बाढ़ ने जमींदोज कर दिये और ये लोग खुले आसमान के नीचे खतरों से खेलते हुए जीने के लिए मशक्कत कर रहे हैं.
मधुबनी के इस टोले में जानेवाली सड़क पर आज भी पानी भरा है़ गरीबी के बीच जीवन बसर करनेवाले इस मुहल्ले के लोगों के अधिकतर घर आदिवासियों के घरों की याद दिला रहे हैं. मिट्टी और फूस के बने ये सभी घर जमींदोज हो गये हैं.
घर में जो भी सामान था उसे बाढ़ ने लील लिया़ राहत सामग्री आज तक नहीं पहुंची. पहनने को कपड़े नहीं हैं. इस मुहल्ले के अधिकतर लोगों को बैंक खाता नहीं है. आधार कार्ड और वोटर कार्ड पानी में बह गये. ऐसे में जीने की विवशता और पेट की आग रोज पलायन पर मजबूर कर रही है.

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