गया: शेरघाटी के हेमजापुर में पांच वर्ष के बच्चे को आवारा कुत्तों द्वारा काट खाये जाने की घटना की गया शहर में भी पुनरावृत्ति हो सकती है. आपके साथ भी कभी भी ऐसी घटना संभव है.
मुश्किल यह है कि आप कुछ कर भी नहीं सकते, सिवाय इसके कि रात में घर से न निकलें और शाम ढलने के बाद मुहल्ले में अपने बच्चों को भी अकेले नहीं छोड़ें. ये बातें आपको डराने के लिए नहीं हैं, बल्कि इसलिए कि आप शहर में झुंड बना कर घूमते आवारा कुत्तों से अपनी सुरक्षा को गंभीरता से लें. यह मान कर कि शाम के बाद कभी भी आप इन चौपाये दुश्मनों की चपेट में आ सकते हैं.
चिंता की बड़ी वजह यह कि प्रशासनिक तंत्र द्वारा आपके हितों की अनदेखी इन चौपाये आतंकवादियों के लिए निश्चित तौर पर बड़ी राहत की बात होती है, बड़ी मदद होती है. और आपके लिए? जी, प्रशासनिक तंत्र अगर शहर में आवारा कुत्तों की फौज की मौजूदगी की गारंटी करता है, तो आपके हिस्से में केवल मुश्किल है, मुसीबत है. दरअसल, शहर की इस समस्या को प्रशासन ने कभी गंभीर माना ही नहीं. नगर पालिका अधिनियम के तहत आवारा पशुओं से छुटकारा दिलाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है, लेकिन अफसोस कि निगम प्रशासन ने इस मसले पर कभी कुछ भी नहीं किया, सिवाय अपने संसाधनों की कमी का रोना रो कर. स्थिति स्पष्ट है, इस समस्या से आपको खुद ही निबटना है. प्रशासन से उम्मीद बेकार है. 19वीं पशु गणना के रिकॉर्ड के मुताबिक, जिले में आवारा कुत्तों की संख्या 40 हजार से अधिक है.
कुत्तों का आतंक बड़ी परेशानी
शहर में कुत्तों के आतंक से लोग परेशान रहते हैं. हर रोज कई गली-मुहल्लों में लोग कुत्तों के शिकार होते हैं. गेवाल बिगहा के पुलिस लाइन इलाके में रहने वाले सुजीत कुमार बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं. उन्हें कुत्तों की वजह से जिंदगी भर का दर्द मिल गया. ड्यूटी कर रहे लौट रहे सुजीत पर एसपी आवास के सामने कौटिल्यपुरी कॉलोनी में कुत्तों के एक झुंड ने हमला कर दिया, जिससे वह साइकिल से गिर गये. इसमें उनकी कमर व जांघ की हड्डी टूट गयी. महीनों इलाज के बाद सुजीत चल तो रहे हैं, पर लाठी के सहारे.
नीचे झुकना और अधिक चलना अब उनके बस में नहीं. शहर के तेल बिगहा मुहल्ले की एक घटना कम दिलचस्प नहीं है. प्रभात खबर के ही एक संवाददाता की वजह से एक बस ड्राइवर की जान बच सकी. दरअसल रात में जब संवाददाता तेल बिगहा इलाके से गुजर रहा था, तो सड़क पर एक व्यक्ति कई कुत्तों से घिरा मिला. कुत्तों का आतंक ऐसा कि अब वह कुछ बोलने तक की स्थिति में नहीं था. संवाददाता द्वारा बाइक की आवाज बार-बार बढ़ाने पर कुत्तों पर थोड़ा असर हुआ. एक-एक कर कुत्ते वहां से सरके. इसके बाद ही किसी तरह बस चालक को बचाया जा सका. एक और सामान्य घटना. रात में आप कई ऐसे लोगों को शहर की सड़कों पर पा सकते हैं, जो बेवजह फोन पर बातें करते चलते हैं. दरअसल यह भी एक रणनीति है. स्वयं को इन चौपाये आतंकवादियों (आवारा कुत्तों ) से बचाने का.
निगम के पास प्लानिंग नहीं
हर वक्त शहर के विकास की बातें करने वाले निगम के लोगों को कभी इस समस्या की चिंता नहीं रही. जब भी इस मुद्दे पर उनसे बातचीत करें, तो कोई ठोस जवाब नहीं मिलता. अधिकारी दबी जुबान स्वयं स्वीकारते हैं कि इसके लिए कभी कोई प्लानिंग ही नहीं हुई. पर, सवाल यह उठता है कि क्या गया शहर के लोगों को रात के वक्त सड़कों पर चलते हुए सुरक्षित रहने का अधिकार नहीं है? निगम की बैठक और वहां की बहस में नगरपालिका अधिनियमों का हवाला देने वाले अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों की जुबान आवारा पशुओं के मामले में क्यों नहीं खुलती है? कई बार इस मसले पर शिकायतें सामने आने के बावजूद इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा तक क्यों नहीं होती? इतना ही नहीं, निगम के मामलों में आये दिन प्रत्यक्ष या परोक्ष हस्तक्षेप करते रहने वाले जिला प्रशासन के वरीय पदाधिकारी ही इस मुद्दे पर कभी कुछ सोचते क्यों नहीं?
मामला गंभीर, किया जायेगा उपाय : डीएम
इस मसले पर डीएम बाला मुरुगन डी से बात करने पर उन्होंने शेरघाटी की घटना पर अनभिज्ञता जतायी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अगर ऐसा है, तो यह मामला गंभीर है. कुत्तों से हो रही परेशानी से निबटने के लिए जल्द ही कदम उठाये जायेंगे. इधर, नगर आयुक्त दयाशंकर बहादुर ने भी कुत्तों से हो रही परेशानी को गंभीर माना और अगले सप्ताह इस मसले पर बैठक कर ठोस निर्णय लेने का आश्वासन दिया है.