मगध मेडिकल अस्पताल में उपलब्ध साधारण चिकित्सा व्यवस्था ही पीड़ित परिवारों का एकमात्र सहारा रह गया है. राज्य सरकार से लेकर जिला प्रशासन तक विधानसभा के चुनाव में व्यस्त हैं. ऐसे में पीड़ित बच्चे व उनके परिजनों का दर्द सुनने की फुरसत किसी के पास नहीं है. जेइ व एइएस की रोकथाम के लिए बनायी गयी सभी योजनाएं फाइलों में सिमट कर रह गयी हैं.
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चुनावी शोर में दब रहा जेइ पीड़ितों का कराह
गया: पिछले दो दिनों में सात बच्चे जापानी इनसेफ्लाइटिस (जेइ) व एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) की चपेट में आ चुके हैं. सभी को मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भरती कराया गया है. यह सिलसिला विगत 12 अगस्त से ही जारी है. एक-एक कर अब तक 72 बच्चे इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं. इनमें से […]
गया: पिछले दो दिनों में सात बच्चे जापानी इनसेफ्लाइटिस (जेइ) व एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) की चपेट में आ चुके हैं. सभी को मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भरती कराया गया है. यह सिलसिला विगत 12 अगस्त से ही जारी है. एक-एक कर अब तक 72 बच्चे इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं. इनमें से 10 बच्चों की पहचान जेइ पॉजिटिव मरीज के रूप हो चुकी है. जेइ पीड़ित तीन बच्चों समेत 11 की जान बचाने में डॉक्टर्स असफल रहे हैं.
योजनाओं पर काम होता, तो नहीं बिगड़ती स्थिति : उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य विभाग ने समय रहते संबंधित अधिकारियों को सतर्क कर दिया था. ऐसा उपाय करने को कहा था कि जेइ व एइएस बीमारी पनप ही नहीं सके. इसके लिए मुख्य रूप से गांव-गांव में जागरूकता व स्वच्छता अभियान चलाने को कहा गया था. साथ ही, बीमारी से निबटने के लिए जमीनी स्तर पर तैयारी करने का निर्देश दिया था. इसमें एएनएम, आशा, आंगनबाड़ी सेविका, शिक्षक व पंचायत जनप्रतिनिधियों का सहयोग लेने को कहा गया था. एक कैलेंडर जारी कर उन्हें प्रशिक्षण देने की भी योजना बनी थी. योजना में हैंडबिल, बैनर, पोस्टर व माइकिंग आदि के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाना भी शािमल था. स्कूलों में भी जागरूकता कार्यक्रम चलाना था, ताकि घर लौट कर बच्चे अपने परिवार में जेइ की मॉनीटरिंग कर सकें. लेकिन, इन आदेशों पर अब तक अमल नहीं किया जा सका. ब्लॉक स्तर के अस्पतालों में कम से कम पांच बेड व जिलास्तर के अस्पतालों में 10 बेड का स्पेशल वार्ड बनाने की योजना भी धरी रह गयी. शायद इन योजनाओं पर काम किया गया होता, तो इतने अधिक बच्चे बीमार नहीं पड़ते और किसी बच्चे की मौत नहीं होती. आज भी गांव के ज्यादातर ग्रामीण नीम हकीमों व ओझा-गुणी पर आश्रित हैं. परिणामस्वरूप पीड़ित बच्चे गंभीर अवस्था में मगध मेडिकल अस्पताल में पहुंच रहे हैं. इस बाबत अस्पताल अधीक्षक डॉ सुधीर कुमार सिन्हा ने भी विभाग से शिकायत की है.
गौरतलब है कि पिछले साल तक इसकी जद में 1,121 बच्चे आये थे. इनमें 287 की मौत व पांच सौ से अधिक बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग हो गये थे. इसकी रोकथाम के लिए पहली बार 2009 में व दूसरी बार 2012 में विशेष टीकाकरण अभियान चलाया गया. बावजूद इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग पायी.
विभाग से मांगे गये हैं 40 डॉक्टर
उपलब्ध सुविधाओं के अनुसार प्रभावित गांवों में फॉगिंग करायी जा चुकी है. जेइ टीके से वंचित 14 साल तक के बच्चों को टीका लगाने की सुविधा उपलब्ध करा दी गयी है. कम से कम 40 डॉक्टर उपलब्ध कराने के लिए विभाग को लिखा गया है. सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों को निर्देश दिया जा चुका है कि जेइ व एइएस पीड़ित बच्चों को बगैर विलंब किये जयप्रकाश नारायण अस्पताल या मगध मेडिकल अस्पताल में भेजना सुनिश्चित करें.
डॉ कृष्ण मोहन पूर्वे, सिविल सर्जन, गया
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