पत्र में उन्होंने अपने पंचायत क्षेत्र में बने पंचायत सरकार भवन का मुद्दा उठाया है, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया है कि जान बूझ कर गलत जगह पर इसका निर्माण शुरू किया गया और मामले को संज्ञान में लाने के बावजूद कुछ अधिकारियों ने निर्माण कार्य को न केवल जारी रहने दिया, बल्कि अपने कामकाज के तौर-तरीके से यह सुनिश्चित किया कि काम रोकने के लिए कोई कठोर फैसला हो सके, इससे पहले तेजी से निर्माण कार्य को पूरा करा दिया जाये. अपने पत्र में करहट्टा मुखिया श्रीमती मिश्र ने उक्त भवन के लिए काम शुरू किये जाने और काम चलने के दौरान पद पर तैनात रहे परैया सीओ, टिकारी डीसीएलआर, टिकारी एसडीओ, कार्यपालक अभियंता (अभियंत्रण संगठन कार्य प्रमंडल-1) और डीडीसी की भूमिका पर उंगली उठायी है.
सीएम को लिखे पत्र में मुखिया ने यह भी कहा है कि सरकार पंचायत भवन के निर्माण कार्य पर तत्काल रोक के बाबत जिला मुख्यालय से जारी एक आदेश की अनदेखी करते हुए 13 नवंबर से 16 नवंबर के बीच निर्विघ्न रूप से युद्ध स्तर पर काम करवाया गया. करहट्टा की मुखिया ने ऊपरोक्त मामले की जांच के सिलसिले में जिले के उप विकास आयुक्त (डीडीसी) की भूमिका पर भी संदेह जताया है. उन्होंने लिखा है, ‘जांचोपरांत उप विकास आयुक्त महोदय के द्वारा न जाने किस परिस्थिति में और किस दबाव में जांच प्रतिवेदन को 20 दिनों तक रोक कर रखा गया और कार्य चलता रहा.’ मुखिया ने मांग की है कि जिन अफसरों द्वारा बिना आदेश पारित हुए सरकारी खजाने से पैसे लगाये गये, उन्हें दंडित किया जाये, ताकि समाज में कानून के प्रति आस्था बढ़े और भ्रष्ट अधिकारियों में कानून का डर पैदा हो. इस संबंध में उप विकास आयुक्त ने कहा कि मुखिया द्वारा लगाये गये सभी आरोप बेबुनियाद हैं. निर्माण कार्य पर जब तक रोक लगी रही, तब तक काम नहीं हुआ. रोक हटने के बाद ही काम शुरू किया गया.