गया: फजिलत रमजानुल मुबारक इसलामी साल का नौवां महीना है. अल्लाह ने हमें इस माह मुबारक में अजिमनेमत से सरफराज फरमाया है. इसकी हर वक्त रहमत भारी है. रमजान का रोजा छोड़ने पर, ईद व रोजा का कुबत रहने पर भी रोजा न रखना गुनाह कबीरा है.
उक्त बातें मदरसा दारूल उलूम अहले सुन्नत एनुलउलूम गेवाल बिगहा के सचिव मौलाना मो नइमुल होदा के हवाले से फहिमुल होदा ने कही. उन्होंने बताया कि किसी ने अगर रमजान का रोजा छोड़ा और इसके बदले में जिंदगी भर रोजा रखे, तो भी वह सबाब व बरकत नहीं पायेगा, जो रमजान का रोजा रखने का है.
रोजा की फजिलत रोजा मिसले नमाज का फर्ज ऐन है. इसका फजिलत का मुनाकिर कादिर और वेउज्र छोड़ने वाला शख्त गुनाहगार मुश्त हक आजावेनार है. जो बच्चे रोजा रख सकते हैं, उनको रखवाया जाय. शरिययत में रोजा के माने यह है कि अललाह वा तआला की इबादत नियत से सुब शादिक से लेकर गुरु व आफताब तक खाने पीने जमा से खुद को रोकने वाले उज्र सरिएलिनिया खाने की चीज वाला मुसलमान क हलाने का हकदार नहीं है.