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बिहार : आधुनिक शिक्षा में हो व्यावहारिक ज्ञान का समावेश : धर्मगुरु दलाई लामा

प्रवचन- बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को पढ़ाया प्रेम व करुणा का पाठ, कहा बोधगया : बोधगया के ऐतिहासिक कालचक्र मैदान में शुक्रवार को बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने देशी-विदेशी हजारों श्रद्धालुओं को प्रेम, मैत्री व करुणा का पाठ पढ़ाया. पहले चरण के तीन दिवसीय टीचिंग कार्यक्रम के पहले दिन बौद्ध धर्मगुरु ने […]

प्रवचन- बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को पढ़ाया प्रेम व करुणा का पाठ, कहा

बोधगया : बोधगया के ऐतिहासिक कालचक्र मैदान में शुक्रवार को बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने देशी-विदेशी हजारों श्रद्धालुओं को प्रेम, मैत्री व करुणा का पाठ पढ़ाया. पहले चरण के तीन दिवसीय टीचिंग कार्यक्रम के पहले दिन बौद्ध धर्मगुरु ने प्रेम, मैत्री व करुणा को केंद्र में रखते हुए कहा कि दुनिया के सभी जीवों में सुख की कामना होती है.

मनुष्य के साथ-साथ पशु व पक्षियों में भी प्रेम की भावना जागृत होती है. इस सुख की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे से प्रेम करना आवश्यक है. दलाई लामा ने कहा कि आधुनिक शिक्षा सुख के लिए पर्याप्त नहीं है. इसलिए आधुनिक शिक्षा में व्यावहारिक ज्ञान का समावेश होना चाहिए. उन्होंने मॉडर्न एजुकेशन पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षण संस्थानों में व्यवहार से संबंधित प्रेम, मैत्री और करुणा का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए. शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों में करुणा व मैत्री का भाव पैदा करें. इससे बच्चे बड़े होकर प्रेम व करुणा के साथ ही जीवनयापन कर पायेंगे. हर तरफ शांति का माहौल होगा.

चित को नियंत्रित कर ही धर्म के प्रति हों समर्पित : दलाई लामा ने बुद्ध के वचन व आचार्य नागार्जुन की व्याख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि मन, शरीर व चित को नियंत्रित कर ही कोई भी धर्म के प्रति समर्पित हो सकता है. धर्म का अर्थ सिर्फ पूजा-पाठ करना नहीं बल्कि संबंधित धर्म के मूल में स्थित प्रेम, मैत्री, सहयोग व दया आदि का अनुपालन करना है. उन्होंने बुद्ध का हवाला दिया व कहा कि उन्होंने किस प्रकार छह वर्षों तक कठिन साधना की. ज्ञान की प्राप्ति की व बोधगया से चल कर सबसे पहले सारनाथ में पांच शिष्यों को उपदेश दिया. अतएव मन से क्लेश को निकाल कर, चित व आंतरिक मन को नियंत्रित कर प्रज्ञा का पालन करते हुए दु:खों से मुक्ति पा सकते हैं. दलाई लामा ने पहले दिन धर्मचक्रप्रवर्तन सूत्र व आर्यशालिस्तम्ब सूत्र पर प्रवचन दिया. आयोजन समिति से मिली जानकारी के अनुसार पहले दिन की टीचिंग सुनने के लिए देशी-विदेशी करीब 40 हजार श्रद्धालु व लामा उपस्थित हुए.

अहिंसा व करुणा भारत की विरासत

दलाई लामा ने कहा कि आज से 2600 वर्ष पहले भारत से ही पूरे विश्व में अहिंसा का संदेश प्रसारित हुआ था. यह भारत की विरासत है. इसे और आगे फैलाने का काम भारत के लोगों को करना चाहिए. इसकी आज जरूरत भी है. दलाई लामा ने सीरिया व अन्य कई देशों का हवाला देते हुए भुखमरी व हिंसा की बात कही. उन्होंने कहा कि आज हम सभी विभिन्न देशों के लोग एक साथ यहां बैठे हैं.

कितना अच्छा लग रहा है. तब क्यों नहीं विश्व के सभी सात अरब की आबादी आपस में प्रेम, मैत्री व करुणा के साथ एक-दूसरे के साथ व सहयोग कर जीवन को आगे बढ़ायें. बौद्ध धर्म गुरु ने कहा कि अगर हम सुख चाहते हैं तो दूसरों को मदद करना होगा. खास कर मनुष्य को सामाजिक प्राणी होने के नाते सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति को जागृत करने की जरूरत है. छोटे-मोटे मनमुटाव को त्याग कर माफी मांग लेनी चाहिए.

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