उपद्रवियों ने तोड़ डाला टच स्क्रीन मशीन
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यात्रियों के लिए अलग से पूछताछ काउंटर नहीं
उपद्रवियों ने तोड़ डाला टच स्क्रीन मशीन दरभंगा : नोटबंदी के बाद बैंक तथा एटीएम पर लगने वाली कतार से भले ही हायतौबा मची हो, लेकिन दरभंगा जंकशन पर कतार में लगना यात्रियों की नीयत बन गयी है. ट्रेनों के आवागमन की जानकारी लेनी हो अथवा सामान्य टिकट खरीदना हो, यहां लाइन लगना ही पड़ता […]
दरभंगा : नोटबंदी के बाद बैंक तथा एटीएम पर लगने वाली कतार से भले ही हायतौबा मची हो, लेकिन दरभंगा जंकशन पर कतार में लगना यात्रियों की नीयत बन गयी है. ट्रेनों के आवागमन की जानकारी लेनी हो अथवा सामान्य टिकट खरीदना हो, यहां लाइन लगना ही पड़ता है. अन्यथा धक्का-मुक्की करनी पड़ती है. यहां तक तो ठीक है, ट्रेन में आरक्षण की उपलब्धता की जानकारी लेने के लिए भी यात्रियों को कतार में खड़ा रहना पड़ता है. वेटिंग टिकट की अद्यतन स्थिति की जानकारी के लिए भी काउंटर पर लाइन लगाना पड़ता है. यह समस्या उस स्टेशन पर झेलनी पड़ रही है जो रेलवे का सर्वोच्च दर्जा प्राप्त कर चुका है. ज्ञातव्य हो कि जिलावासियों ने अपनी पोटली खोलकर रेलवे के खजाने को इतना भरा कि दरभंगा जंकशन को अव्वल दर्जा ए-वन रेलवे ने दिया. बावजूद आजतक करीब एक दशक बाद भी दर्जे के अनुरूप यात्रियों को सुविधा मयस्सर नहीं हो रही है.
टिकट बुकिंग पर भी पड़ता प्रभाव
यात्रियों को पूर्व से आरक्षण की उपलब्धता की जानकारी नहीं होने के कारण टिकट बुकिंग पर भी इसका असर पड़ता है. काफी देर लाइन में खड़े रहने के बाद जब यात्री खिड़की के पास पहुंचता है तब गाड़ियों की इंक्वायरी करवाता है. जाहिर है इसमें वक्त लगता है. इसका असर बुकिंग पर पड़ता है. दूसरी ओर कर्मियों की कमी की वजह से पूछताछ के लिए अलग से काउंटर का भी प्रबंध नहीं है. हालांकि तत्कालीन सीनियर डीसीएम जफर आजम के समय में यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पूछताछ काउंटर का संचालन शुरू किया गया था जो कि बाद में बंद हो गया.
पांच वर्षों से परेशानी झेल रहे ए-वन दर्जा स्टेशन के यात्री
आरक्षण संबंधी जानकारी लेने को कतार में खड़े यात्री.
लगे थे दो टच स्क्रीन मशीन
जंकशन पर आरक्षण टिकट की उपलब्धता तथा वेटिंग टिकट की स्थिति की जानकारी सहजता से यात्रियों को उपलब्ध कराने के नजरिये से रेलवे ने टच स्क्रीन मशीन लगाया था. पूछताछ कार्यालय के बाहर दो मशीन लगाये गये. वर्ष 2010 के 13 जुलाई की शाम इस मशीन को लगाया गया था. उपद्रवियों ने 15 जुलाई को इसमें से एक मशीन को तोड़ डाला. इसके बाद रेलवे ने दूसरी मशीन भी हटा ली. लिहाजा यात्री सुविधा से वंचित हो गये.
दो बार लगी मशीन
को फिर तोड़ा
तत्कालीन डीआरएम एसपी त्रिवेदी को यात्रियों ने काफी आग्रह किया तो उन्होंने वर्ष 2011 के 10 मई को एक मशीन चालू करा दी. इस बार सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मशीन को पूछताछ कार्यालय के अंदर शिफ्ट किया गया. उसे इस कदर लगाया गया कि यात्री बाहर से उसे ऑपरेट कर रहे थे लेकिन मशीन कार्यालय के अंदर रखी थी. कुछ दिन तक वह चलता रहा. इसी बीच आठ जून 2011 को फिर से यह मशीन उपद्रवी के आंख में चुभने लगी और इसे भी तोड़ा डाला. आश्चर्यजनक पहलू यह रहा कि इंक्वायरी ऑफिस के भीतर रखी मशीन को तोड़ते हुए किसी ने नहीं देखा. इसके बाद से यात्री को पुन: आजतक यह सुविधा नहीं मिल सकी.
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