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बौद्धिक सुक्ष्मता पर भौतिक समृद्धि की स्थूलता हावी : डा. मश्रि

बौद्धिक सुक्ष्मता पर भौतिक समृद्धि की स्थूलता हावी : डा. मिश्र महाराजा कामेश्वर सिंह के 118 वें जम्म दिवस पर व्याख्यानमाला का आयोजनदरभंगा. भौतिक समृद्धि की स्थूलता बौद्धिक समृद्धि की सूक्ष्मता पर इतना हावी हो गया है कि स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना ही नष्ट कर दी है. आधुनिक सभ्यता ने स्वतंत्रता को अपना […]

बौद्धिक सुक्ष्मता पर भौतिक समृद्धि की स्थूलता हावी : डा. मिश्र महाराजा कामेश्वर सिंह के 118 वें जम्म दिवस पर व्याख्यानमाला का आयोजनदरभंगा. भौतिक समृद्धि की स्थूलता बौद्धिक समृद्धि की सूक्ष्मता पर इतना हावी हो गया है कि स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना ही नष्ट कर दी है. आधुनिक सभ्यता ने स्वतंत्रता को अपना लिया है. हम सभी स्वतंत्रता के बाद दूसरों की स्वतंत्रता नहीं चाहते. महाराजाधिराज डा. कामेश्वर सिंह की 118 वीं जयंती पर कामेश्वर सिंह कल्यसाणी फाउंडेशन पर आयोजित समारोह में भोपाल (मध्यप्रदेश) के मुख्य अतिथि डा. गोविंद मिश्र ने शनिवार को उक्त बातें कही.डा. मिश्र ने कहा कि पुस्तकों के अध्ययन से मन संतुलित साहित्य से सहानुभूति आती है. लेकिन इस चकाचौंध भरी टीवी एवं नेट, वाट्सअप के युग में लोगों की सहानुभूति से वितृष्णा होने लगी है. उन्होंने कहा कि प्रारंभ में जब टीवी आया था तो रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिक देखने को पूरे मुहल्ला के लोग एक साथ बैठते थे. अब एक ही परिवार में बेड रूम से ड्राइंग रूम तक अलग अलग टीवी लगे हैं. लगभग वही स्थिति मोबाइल, नेट की भी है. उन्होंने कहा कि प्रकृति जिसे पैदा करती है उसे नष्ट भी कर देती है. लेकिन पुस्तक हमारे आलमीरा में बंद रहकर भी प्रतिक्षण पल पल हमारे साथ है. उन्होंने कहा कि लोगों के मिजाज में बढ़ती क्रूरता किताबों से दूरी का ही परिणाम है. विश्व के किसी भी साहित्य को पढ़ें, उसका मूल तथ्य ‘प्रेम’ है, क्योंकि प्रेम उत्सर्ग है. बदलते युग के अनुरूप धर्म की परिभाषा ‘धार्यते इति धर्म:’ भी बदल गया है. अब धर्म व्यापार बन गया है. इस स्थिति से गरीब तो किसी तरह अपने आपको निकाल लेते हैं लेकिन मध्यवर्ग की समस्या ही अधिक है. डा. मिश्र ने कहा कि चाहे कितना बुरा समय हो, पर उसमें अच्छाई जरूर रहती है. और यही अच्छाई एक से दूसरी पीढ़ी को ताकत देती है. तथा आगे बढ़ने को प्रेरित करता है.अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी, मैथिली की प्रख्यात लेखिका पद्म श्री डा. उषा किरण खान ने ‘पुनि-पुनि सीता’ को केंद्रित कर अष्टम अनुसूची में शामिल होने के बावजूद मैथिली भाषा का इस क्षेत्र में सर्वग्राह्यता नहीं होने पर चिंता जतायी. उन्होंने नयी पीढ़ी को इसके लिए आगे आने को कहा. प्रारंभ में समारोह का शुभारंभ विपिन मिश्र के गीत ‘जय जय भैरवि….’ से हुआ. डा. मानस बिहारी वर्मा एवं आशुतोष सिंह ठाकुर ने पाग शॉल व माला से अतिथियों को स्वागत किया. इसके बाद फाउंडेशन द्वारा बिहार हेरिटेज सीरिज के तहत प्रकाशित बीसवीं पुस्तक ‘द पेपर्स ऑफ डब्ल्यूजी आर्चर, एन एकाउंट आफ मुसहर मूवमेंट इन नॉर्थ बिहार विफोर इन्डेपेंडेंस’ का विमोचन किया गया. फाउडेशन के मुख्य ट्रस्टी डा. हेतुकर झा स्वागत भाषण व संचालन आशुतोष सिंह ठाकुर ने डा. गोविंद मिश्र का परिचय तथा मानस बिहारी वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

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