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जिला परिषद से छलांग लगा मंत्री बने मदन

जिला परिषद से छलांग लगा मंत्री बने मदन पहलीबार जिप सदस्य को मिला यह मौकादरभंगा : जिला परिषद से मंत्री पद तक पहुंचने का रोचक सफर है, खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री मदन सहनी का. यह जिला परिषद के लिए गर्व की बात है कि एक सदस्य मंत्रीमंडल तक जा पहुंचा. इसे संयोग कहे या उनकी […]

जिला परिषद से छलांग लगा मंत्री बने मदन पहलीबार जिप सदस्य को मिला यह मौकादरभंगा : जिला परिषद से मंत्री पद तक पहुंचने का रोचक सफर है, खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री मदन सहनी का. यह जिला परिषद के लिए गर्व की बात है कि एक सदस्य मंत्रीमंडल तक जा पहुंचा. इसे संयोग कहे या उनकी किस्मत अतीत में झांके तो जिला परिषद के गठन से अबतक के कार्यकाल में कोई भी सदस्य मंत्री पद तक नहीं पहुंचा. 1980 में जब डिस्ट्रीक्ट बोर्ड से इसका नया नामकरण जिला परिषद हुआ. तब इसके पहले अध्यक्ष बने, बेनीपुर के विधायक महेंद्र झा आजाद इसके बाद कोई भी सदस्य विधानसभा तक नहीं पहुंच सका. इस परंपरा को तोड़ते हुए पूर्व जिप सदस्य मदन सहनी 28 जुलाई 2008 में पहले जिला परिषद अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हुए. उनका कार्यकाल शेष ही था कि उन्होंने 28 सितंबर 2010 के त्याग पत्र देकर विधानसभा चुनाव में पाला बदलकर जदयू के टिकट पर विधायकी में किस्मत आजमाया. यह दांव सटीक बैठा और वह बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुन लिये गये. यहां गौर करने की बात यह है कि वर्षों से राजद का झंडा ढोनेवाले छात्र राजद के मदन सहनी पर तत्कालीन राजद सुप्रीमों ने भरोसा नहीं किया. अपने सहनी समाज के वोटरों की बदौलत उन्होंने अलग छवि बनायी. जिला परिषद अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने मछली मंडी के लिए शहर के बीचो बीच अललपट्टी स्थित सम विकास योजना से बने भवन में कब्जा दिलवाया. जानकारों की माने तो यही उनका माइलस्टोन बन गया. इसके बाद वह मल्लाहों के नेता के रुप में वे स्थापित हुए. फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू क ो इस कोटे से एक साफ छवि वाले नेता की दरकार थी. सो इन्हे मौका मिला और इन्होंने जीत भी दर्ज की. पांच साल बीत गया वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में सीटिंग गेटिंग फार्मूला के तहत महागठबंधन ने जदयू के लिए बहादुरपुर विधानसभा सीट नहीं दी. यहां राजदे कोटे के प्रत्याशी भोला यादव को उतारा गया. ऐसे में जदयू क ोटे से श्री सहनी को नये क्षेत्र गौड़ाबौराम से प्रत्याशी बनाकर एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी विनोद सहनी के खिलाफ उतारा. यहां भी भाग्य ने मदन सहनी का साथ दिया. एनडीए का स्थानीय प्रत्याशी होने के बावजूद विनोद सहनी को हार का सामना करना पड़ा और मदन सहनी दुबारा विधायक बने. बाद में उन्हें मंत्रीमंडल में भी शामिल किया गया.

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