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सामा जाइ छथि सासुर किछु गहना चाही रे भंवरा

सामा जाइ छथि सासुर किछु गहना चाही रे भंवरा आज दी जायेगी भगवती सामा को विदाईदरभंगा: भगवती सामा के विदाई का वक्त आ गया है. बहनों का चेहरा उदास हो गया है. भारी मन से बहनें उनकी विदाई की तैयारी में जुटी हैं. कार्त्तिक पूर्णिमा के दिन 25 नवंबर को उन्हंे विदा किया जायेगा. इसके […]

सामा जाइ छथि सासुर किछु गहना चाही रे भंवरा आज दी जायेगी भगवती सामा को विदाईदरभंगा: भगवती सामा के विदाई का वक्त आ गया है. बहनों का चेहरा उदास हो गया है. भारी मन से बहनें उनकी विदाई की तैयारी में जुटी हैं. कार्त्तिक पूर्णिमा के दिन 25 नवंबर को उन्हंे विदा किया जायेगा. इसके साथ ही भाई-बहने के अटूट प्रेम का प्रतीक लोकपर्व सामा-चकेवा का समापन हो जायेगा. मंगलवार को पूरे दिन बहनें सामा की विदाई की तैयारी मंे जुटी नजर आयीं. नये वस्त्र तो पहले ही उन्हें अर्पित किया जा चुका है. विदाई में भार देने के लिए मिट्टी के बरतन बनाकर तैयार कर लिया गया है. मिथिला की परंपरानुरूप झांझी कुकुर, परिभरनी, पौती-पेटारी आदि बना लिया गया है. एक दिन पहले से ही इसमें चूरा, गुड़ समेत अन्य जरूरी सामान को रखने का काम आरंभ कर दिया गया. इधर भाई इनकी विदाई के लिए डोला बनाने में व्यस्त रहे. वैसे यह काम बुधवार को दोपहरह तक चलेगा. दूसरी ओर मंगलवार को परंपरागत सामा गीत गायन के बाद जैसे ही विदाई गीत समदाउन गाना शुरू किया बहनों का गला रूंध गया. आवाज भर्रा गयी. आंखें नम हो गयीं. सिसकी छूट गयी. खुशी का माहौल गमगीन नजर आने लगा. उल्लेखनीय है कि लोक आस्था के माहपर्व छठ के परना के दिन से आरंभ इस लोकपर्व में देवोत्थान एकादशी के दिन सामा को ससुराल से आयी नई सारी अर्पित की जाती है. साथ ही खोंइछा दी जाती है, इसके साथ ही विदाई गीत समदाउन क ा गायन आरंभ हो जाता है. भगवती सामा की विदाई प्रतिमा विसर्जन के साथ होती है. जुते हुए खेत में प्रतिमा डाल देने की परंपरा है, वहीं कहीं-कहीं इसे जलप्रवाहित किये जाने का भी विधान है. विसर्जन से पूर्व बहनें धन-धान्य से सदैव भंडार भरे रखने की मंगलकामना के साथ अपने भाइयों का फांर भरती हैं. इसमें चूरा, मिठाई के साथ ही अन्य पकवान रखती हैं. इस परंपरा का निर्वाह भी बुधवार को होगा.

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