आज ही के दिन अयोध्या लौटी थी मिथिला की पुत्री सीता पति श्री राम के साथ 14 वर्ष का वनवास काट लौटने पर मनी थी दीवाली
दरभंगा : यूं तो पूरे देश में दीपोत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन मिथिला में यह विशेष उत्साह के संग मनाया जाता है. कारण कार्तिक अमावस्या की तिथि को ही पतिव्रता धर्म की अनूठी मिशाल पेश करते हुए मिथिला की पुत्री जगत जननी जानकी अयोध्या लौटी थी. इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों पर दीये जलाये थे. त्रेता युग में आरंभ हुई यह परंपरा हजारों वर्ष बाद भी आजतक बरकरार है.
विभिन्न रामायणों में वर्णित तथ्यों के आधार पर कहा गया है कि काली व लक्ष्मी भी सीता का ही रूप है. इस नजरिये से इस क्षेत्र में श्रद्धालु विशेष आस्था व उत्साह के संग इस पर्व को मनाते चले आ रहे हैं. उत्साह का आलम यह है कि आज भी जिले के दो ऐसे गांव हैं, जहां दीपोत्सव से एक दिन पूर्व ही दीवाली मना ली जाती है. कहा जाता है कि दरभंगा राज के समय में बेनीपुर प्रखंड के नवादा व बहेड़ी के पघारी के लोग यहां आकर साज-सज्जा कर दिवाली मनाते थे.
उस समय आवागमन का साधन विकसित नहीं था. लिहाजा यहां दीपोत्सव मनाने के बाद वापस अपने घर जाकर प्रकाश पर्व मनाना संभव नहीं था. इसी वजह से एक दिन पूर्व ही इन दोनों गांवों के लोग दिवाली मना लिया करते थे. आज भी यह परंपरा अक्षुण्ण है. त्रेता युग में मिथिला की पावन भूमि से अवतरित भगवती सीता के दुख भरे दिन बीतने के बाद वापस राज किला में लौटने की खुशी में मिथिलावासी कुछ ज्यादा ही उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं.