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मतदाताओं की चुप्पी से बढ़ी दिल की धड़कन

मतदाताओं की चुप्पी से बढ़ी दिल की धड़कन धड़कते दिल से सभी कर रहे जीत-हार के दावे राजनीतिक पंडितों ने भी मुंह पर लगा रखा है तालाविधान सभा चुनाव ने लिख दी नई इबारतदरभंगा: विधान सभा चुनाव ने इस बार जिले में नई इबारत लिख दी. इसके नायक रहे मतदाता. मतदान के बाद भी इनकी […]

मतदाताओं की चुप्पी से बढ़ी दिल की धड़कन धड़कते दिल से सभी कर रहे जीत-हार के दावे राजनीतिक पंडितों ने भी मुंह पर लगा रखा है तालाविधान सभा चुनाव ने लिख दी नई इबारतदरभंगा: विधान सभा चुनाव ने इस बार जिले में नई इबारत लिख दी. इसके नायक रहे मतदाता. मतदान के बाद भी इनकी चुप्पी ने दिल की धड़कन बढ़ा दी है. यह हालत किसी एक पक्ष का नहीं है, बल्कि दोनों पक्षों की स्थिति एक सी है. जीत के दावे तो सभी कर रहे, लेकिन उनके दावे में ‘वो’ विश्वास नजर नहीं आ रहा. चेहरे पर वो उत्साह नहीं दिख रहा जो पहले नजर आता था. इसकी मूल वजह मतदाताओं की चुप्पी है. जाहिर है सभी की नजर अब 8 नवंबर को होनेवाले मतगणना की ओर जा लगी है.विधान सभा चुनाव की दुंदुभि बजने से काफी पहले से चुनावी तपिश बढ़नी शुरू हो गयी थी. टिकट की दावेदारी को लेकर जोर-आजमाइश के साथ क्षेत्रवासी इसमें शरीक हुए. इसके बाद टिकट मिला. नामांकन के साथ ही यह मानसिक तपिश जमीन पर उतर आयी. गांव-जवार से लेकर गली-मुहल्ले तक राजनीतिक उमस बढ़ गयी. उमस इसलिए कि न चाहते हुए भी मतदाताओं को उसे झेलना पड़ा. इस दौर में भी मतदाता चुप रहे. उम्मीद थी कि मतदान की तिथि निकट आते-आते इनकी चुप्पी टूट जायेगी और स्थिति स्पष्ट हो जायेगी, लेकिन यह उम्मीद भी टूट गयी. जागरूक हो रहे मतदाताओं ने तो कमाल का काम यह कर दिया कि वोटिंग के बाद भी अपनी चुप्पी बरकरार रखी. इस खामोशी ने न केवल राजनेताओं के दिल की धड़कन को बढ़ा दिया, वरन राजनीतिक पंडितों को भी मुंह पर ताला लगा रखने के लिए मजबूर कर दिया. वैसे तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन व महागठबंधन दोनों ने पूरे चुनाव में विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरने के नारे को बुलंद किया, लेकिन यह महज भुलावा ही था. नतीजतन पूरा चुनाव जाति के बिसात पर आ खड़ी हो गयी, लेकिन वाह रे क्षेत्र के मतदाता, अपनी खामोशी से इस बिसात पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया. किसी के समझ में ही नहीं आ रहा कि कौन सा तबका उनके साथ रहा और कौन विपक्षी के खेमे में जा मिला. राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए इस स्थिति ने भले ही असमंजस का आलम पैदा कर दी हो, लेकिन वे मतदाताओं के इस बदलाव को सराहनीय मान रहे हैं. इनकी नजर में यह ऐतिहासिक परिवर्त्तन का द्योतक है. जरूरत है कि आगे इस जागरूकता को और विस्तार दिया जाये.

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