वित्तरहित शिक्षा नीति की समस्या के प्रति सभी दल उदासीनचुनावी घोषणा पत्र में किसी दल ने जगह देना उचित नहीं समझाफोटो- 50, 51 व 52परिचय- प्रोफेसरों के नाम के साथ तस्वीर.दरभंगा. करीब सात विधानसभा चुनाव वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत कार्य कर रहे शिक्षक एवं कर्मियों ने देखा है. इस बार भी चुनाव सामने है. प्रथम चरण का चुनाव भी संपन्न हो गया, पर इतने ज्वलंत समस्याओं के प्रति कोई भी दल अपने चुनाव घोषणापत्र में इसका जिक्र करना आवश्यक नहीं समझा, करीब 40 वर्षों से नीति के तहत कार्य कर रहे शिक्षक व कर्मी पिसते रहे हैं. भारत ही नहीं विश्व के किसी भी अन्य देशों में इस तरह की शिक्षा नीति लागू नहीं की गयी थी. सिर्फ बिहार राज्य एक अकेला ऐसा राज्य है जहां इस नीति के तहत लाखों शिक्षित युवा अब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े हैं. कई की मौत भी हो गये और कई इसके कगार पर हैं. पर कोई भी राजनीतिक दल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे इस त्रासदी से उपजी समस्याओं के प्रति कोई ध्यान नहीं दिया.वित्तरहित नीति का इतिहास1982 में इस काली नीति को तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा लागू की गयी. जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य व देश के लिए काला धब्बा बन गया. इसके तहत काम कर रहे शिक्षक व कर्मी काम तो करते रहे पर बिना वेतन के. यानी शोषण का हद तो तब हो गया. जब शिक्षित युवा लोग इसमें फंसकर अपने परिवार व आनेवाले पीढ़ी के लिए बोझ बन गये. लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में इसको समाप्त करने के लिए प्रयास हुआ. पर समिति पर समिति का गठन होता रहा लेकिन कुछ नहीं हुआ. नीति की समाप्ति की घोषणाराज्य सरकार के संकल्प संख्या 1848 दिनांग 21 नवंबर 2008 के द्वारा वित्तरहित शिक्षा नीति को समाप्त करने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा की गयी. वहीं नीति के तहत संस्थानों को अनुदान देने का निर्णय लिया गया.समस्या का अंत नहींराज्य सरकार ने नीति के समाप्ति की घोषणा तो कर दी पर भुगतान के लिए छात्र-छात्राओं के उत्तीर्णता के आधार बना दिया जो राशि शिक्षक एवं कर्मियों के लिए नाकाफी है. वहीं शिक्षक एवं कर्मियों के पदसृजन का मामला आज भी लटक कर रह गया है. फलत: उनके सेवा शर्तों को पूरा करने की अन्य प्रक्रिया बाधित रही. कॉलेजों के शासी निकाय के मनमानी रवैये से कर्मियों को निजात नहीं मिली. शासी निकाय के सदस्य सचिव विवि से मिलीभगत करके मनमाने पदों को अनुशंसित करवाकर अनुुदान की राशि वांछित लोगों में बांटने का काम किये.अवैध नियुक्तियों का सिलसिला जारीपिछले तिथि से कई नये लोगों को मनमाने तौर पर नियुक्त कर लिया गया व अनुदान की राशि बांटा गया. कहीं कहीं तो कॉलेज के आंतरिक कोष का भी सचिव के द्वारा दुरुपयोग किया गया. वर्षों से कार्यरत कर्मियों की सेवा में हेराफेरी का दौर चलता राह है. घोषित अनुदान की राशि सरकार द्वारा अद्यतन नहीं किया गया है. जिससे वैध कर्मियों का आर्थिक स्थिति चरमरा गयी. चयन समिति का प्रावधानबिहार राज्य विवि अधिनियम 1976 में अद्यतन संशोधित कर संबद्ध डिग्री कॉलेेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के निमित्त कॉलेज स्तर पर अनुशंसा देने के लिए एक नई संस्था चयन समिति का प्रावधान किया गया है. जो शिक्षकों की सेवाशर्त्तों की जांच के नाम पर परेशान करने की साजिश ही बताया जा रहा है. वहीं 31 मार्च 2017 तक राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत अनुदान की राशि का वितरण संबंधी सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों में कार्यरत शिक्षकों के बीच उनकी शासी निकाय द्वारा किया जाना तय किया गया है. यह तो घोर आश्चर्य है कि इतने बड़े मुद्दे को जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र मेें राज्य के लिए अपमान जनक भी है, किसी भी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में इसे शामिल तक नहीं किया है.प्राध्यापकों ने दी प्रतिक्रियाइस नीति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जीकेपीडी कर्पूरी ग्राम (समस्तीपुर) के प्राध्यापक डा. शंभु नाथ ठाकुर ने कहा कि अनुदान वितरण की व्यवस्था को भ्रमपूर्ण बना दिया है. जो कॉलेजों के संचालकों के लिए हितकर व कर्मियों के लिए अहितकर साबित हो रहा है. सरकार की नीति इस संबंध में अस्पष्ट दिख रही है.वहीं सम्बद्ध डिग्री महासंघ के संयोजक प्रो. प्रभात कुमार जो आरबीजे कॉलेज दरभंगा के प्राध्यापक है. ने बताया कि जो दल वित्तरहित समस्या का सम्यक निदान करेगा वहीं बिहार पर राज करेगा. हम शिक्षा कर्मियों ने सरकारी की नीति से क्षुब्ध होकर इस चुनाव में ऐसे दल के खिलाफ मतदान करने का मन बना लिया है. वित्तरहित शिक्षा कर्मियों के समस्याओं की घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया जाना आश्चर्य की बात है. न्याय के साथ विकास करनेवालोें का दावा बिल्कुल खोखला साबित हुआ है. वित्तरहित कर्मियों को दिया जानेवाला अनुदान राशि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. प्रो. आशुतोष कुमार वर्मा का कहना है कि यह शिक्षा नीति बिहार की सड़ी गली शिक्षा का द्योतक है. जिसका बीज साढे तीन दशक पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र ने बोया था. लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री ने इसे 15 वर्षों तक पालपाोश कर बड़ा किया और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री ने राज्यादान की भीख देकर शिक्षा की रही प्रतिष्ठा का सर्वनाश कर दिया. सभी जनप्रतिनिधियों ने इस समस्या की आंच में राजनीति की रोटी सेंकी है.
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वत्तिरहित शक्षिा नीति की समस्या के प्रति सभी दल उदासीन
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