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गीता से कर्तव्यबोध का होता ज्ञान : वीसी
दरभंगा : गीता जैसे ग्रंथों में अधिकार एवं कर्त्तव्यबोध के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया है. शास्त्रों एवं काव्यों में अनेक स्थलों पर स्त्रियों के साथ-साथ पुरुषों के अधिकार एवं कर्त्तव्य के बारे में बढ़-चढ़कर बातें कही गयी है. उन सभी साहित्य के काव्यों में अनुसंधान पूर्वक मानवाधिकार पर शोध कार्य होना चाहिए. […]
दरभंगा : गीता जैसे ग्रंथों में अधिकार एवं कर्त्तव्यबोध के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया है. शास्त्रों एवं काव्यों में अनेक स्थलों पर स्त्रियों के साथ-साथ पुरुषों के अधिकार एवं कर्त्तव्य के बारे में बढ़-चढ़कर बातें कही गयी है. उन सभी साहित्य के काव्यों में अनुसंधान पूर्वक मानवाधिकार पर शोध कार्य होना चाहिए. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग में मानवाधिकार पर यूजीसी संपोषित सेमिनार में अध्यक्षीय संबोधन के क्रम में कुलपति डॉ देवनारायण झा ने यह कही.
उन्होंने संस्कृत के सभी शास्त्रों के मानवाधिकार जैसे विषयों का उद्घाटन निरंतर किये जाने पर बल देते हुए इसे संस्कृत के विकास के लिए आवश्यक बताया. सेमिनार के मुख्य अतिथि वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ श्यामानंद झा ने कहा कि मिथिला की गरिमा यहां की विद्या से ही बढ़ी है. उन विद्याओं में मानवाधिकार की बातें भरी पड़ी है. काव्य एवं साहित्य के उदाहरणों से हमें मानवाधिकार के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. प्रतिकुलपति डॉ नीलिमा सिन्हा ने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानवाधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य विषय बना. संस्कृत साहित्य में अनेक स्थलों पर मानवाधिकार की चर्चाएं हैं.
बच्चों के प्रति आरोप लगाकर एवं उसे अपराधी बनाये जाने के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने इसके लिए साहित्यकारों को आगे आने की बात कही. स्त्री की रक्षा एवं उसके सशक्तीकरण के लिए भी मानवाधिकार को समझने की आवश्यकता पर बल दिया. विशिष्ट अतिथि संस्कृत विवि के पूर्व प्रतिकुलपति डॉ सतीशचंद्र झा ने कहा कि श्रीराम ने रामायण में मानवाधिकार के रक्षार्थ ही मर्यादा का पालन किया, किंतु रामायण में अनेक स्थलों पर मानवाधिकार का हनन भी देखा गया है.
छात्र कल्याणाध्यक्ष डॉ सुरेश्वर झा ने कहा कि संपूर्ण संस्कृत साहित्य मानवाधिकार की रक्षा एवं मानव के कर्त्तव्य से भरे पड़े हैं. उत्कृष्ट भावों का समाहार साहित्य में ही है.
काव्यों में भरे पड़े मानवाधिकार के उदाहरणों का संग्रह कर उसे पाठ्यक्रम में निर्धारित किये जाने पर बल दिया. डॉ मिथिलेश कुमार तिवारी ने मनुष्य के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग के गठन की बात करते हुए कहा कि धर्म की स्थापना भी इसी उद्देश्य से की गयी है. इससे पूर्व कुलपति सहित अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का उद्घाटन किया. डॉ ममता ठाकुर ने कुलगीत एवं स्वागत गान प्रस्तुत किये. कार्यक्रम संयोजक डॉ विश्रम तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया.
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