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आधुनिकता की दौड़ में लोग भूल रहे अपनी परंपराएं

अन्नप्राशन भी है एक संस्कार सदर. आधुनिकता की दौड़ में कई पुरानी परंपराएं विलुप्त होती जा रही है. जिनका वजूद विद्यमान है भी, उनके स्वरूप पर भी आधुनिकता की लेप चढ़ जाती है. इसी कड़ी में एक परंपरागत से लगभग कट सा गया है. खोडस संस्कार में शामिल अन्नप्राशन अब शायद ही किसी बच्चे के […]

अन्नप्राशन भी है एक संस्कार सदर. आधुनिकता की दौड़ में कई पुरानी परंपराएं विलुप्त होती जा रही है. जिनका वजूद विद्यमान है भी, उनके स्वरूप पर भी आधुनिकता की लेप चढ़ जाती है. इसी कड़ी में एक परंपरागत से लगभग कट सा गया है. खोडस संस्कार में शामिल अन्नप्राशन अब शायद ही किसी बच्चे के जीवन में किया जाता है. नई पीढ़ी को तो पता भी नहीं है. ऐसे में सरकार ने पढ़ाई की शुरुआत में पोषण के साथ कराने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर योजना शुरू कर जहां सभी बच्चों को शिक्षित करने के लिए मजबूत पहल की है. वहीं इसका नाम अन्नप्राशन देकर अपनी सांस्कृतिक परिचय से नई पीढ़ी को भी रू-ब-रू कराने का प्रयास किया है. पूर्व में बच्चों के जन्म के बाद शुभ मुहूर्त्त में पूजा-पाठ कर परंपरागत रूप से अन्नप्राशन कराया जाता था. इस संस्कृति में एक और परंपरा थी कि बच्चे के मामा द्वारा ही इसे पूरा कराया जा रहा था. वहीं एक और भी कहावत रही है कि जिस परिवेश और जैसा अन्न ग्रहण करते हैं बच्चों में वैसा ही संस्कार देखने को मिलता है. इसलिए अन्नप्राशन संस्कार एक अच्छी परंपरा रही है. इसे फिर से बच्चे की माता-पिता व समाज के व्यक्तियों को एकबार फिर से जीवंत करना चाहिए.

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