Advertisement
निजी विद्यालय वसूल रहे मोटी फीस
री-एडमिशन : अप्रत्याशित फीस बढ़ोत्तरी को लेकर आंदोलन के मूड में अभिभावक निजी विद्यालयों में हर साल री-एडमिशन के नाम पर अच्छी खासी रकम वसूल की जाती है. अभिभावक इसे विद्यालय प्रबंधन की मनमानी बता रहे हैं. प्रशासन की ओर से इस पर समय रहते ध्यान देना चाहिए, ताकि मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे इस […]
री-एडमिशन : अप्रत्याशित फीस बढ़ोत्तरी को लेकर आंदोलन के मूड में अभिभावक
निजी विद्यालयों में हर साल री-एडमिशन के नाम पर अच्छी खासी रकम वसूल की जाती है. अभिभावक इसे विद्यालय प्रबंधन की मनमानी बता रहे हैं. प्रशासन की ओर से इस पर समय रहते ध्यान देना चाहिए, ताकि मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे इस मोटी रकम देने से बच सकें एवं उनकी पढ़ाई बाधित न हो पाये.
दरभंगा : शहर के निजी विद्यालयों के द्वारा छात्रों के पुनर्नामांकन के नाम पर मोटी राशि फीस के रुप में अभिभावकों से वसूल की जा रही है. इसको लेकर अभिभावकों में नाराजगी है.
अभिभावकों में आक्रोश इस कदर है कि जहां इसकी चर्चा होती है. उनका चेहरा तमतमा जाता है. आक्रोश में अनाप शनाप शब्दों के प्रयोग से भी नहीं चुकते. अभिभावक इसे निजी विद्यालय प्रबंधक की मनमानी बता रहे हैं.
दिग्घी पश्चिम मोहल्ला में रहनेवाले रेलवे के एक गार्ड ने अपने दो बच्चों का नामांकन शहर के एक नामी स्कूल में करवाया. दोनों बच्चों के नामांकन में उन्हें एक लाख 14 हजार रुपये खर्च हुए. इनके बच्चे पांचवें व छठे वर्ग में हैं. रेडियो स्टेशन निवासी सुजीत कुमार के बच्चे का नामांकन एक निजी विद्यालय में है, उन्हें अपने बच्चों के चतुर्थ वर्ग में पुनर्नामांकन फीस के साथ साथ अन्य मदों की राशि डेवलपमेंट एवं वार्षिक कंट्रीब्यूशन के साथ बड़ी राशि की वसूली की गयी. इतना ही नहीं पुस्तक व कॉपी भी स्कूल प्रबंधन के द्वारा दी गयी.
जिसमें लगभग चार से पांच हजार रुपये लिये गये. इसके अलावा ड्रेस आदि में अच्छा खासा रकम खर्च हुआ. यह तो सिर्फ बानगी है. इस तरह की स्थिति इन निजी विद्यालयों में पढ़ानेवाले करीब 25 हजार निम्न मध्यम वर्गीय लोगों का है. जिनका मानना है कि निजी विद्यालयों की मनमानी इसी तरह जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब उन्हें अपने बच्चों को इन विद्यालय में पढ़ाना बूते से बाहर हो जायेगा.
कई अभिभावकों का तो यहां तक मानना है कि उनके मैट्रिक पास करने तक का खर्च के बराबर उनके एक बच्चे का एक वर्ष की फीस है. यह कैसी विडंबना है कि हमारी आय वार्षिक पांच से 10 प्रतिशत बढ़ती है जबकि निजी विद्यालयों के फीस में 25 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो जाती है. महंगाई के अनुसार फीस बढ़े लेकिन इतना भी नहीं कि स्कूल बिल्डिंग बनाने के लिए हमसे फीस वसूला जाय.
अभिभावकों में है आक्रोश
अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए संवेदनशील अभिभावक की कमजोर नब्ज को भांप निजी संस्थानों के मनमाने फीस वसूली के लेकर अभिभावकों में आक्रोश पनप रहा है. बच्चों के भविष्य को लेकर कुछ नोक-झोंक के बाद स्कूलों में फीस तो जमा कर रहें हैं लेकिन इसके बाद अपना आक्रोश जनप्रतिनिधियों के समक्ष रख रहे हैं. इसका परिणाम है कि कई संगठनों ने इन मुद्दों पर आंदोलन का मूड बना रखा है. निजी विद्यालयों के अप्रत्याशित फीस बढ़ोत्तरी को लेकर जिला व शिक्षा प्रशासन के समक्ष गुहार लगा रहे है. बेदारी कारवां, युवा कांग्रेस आदि ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराया है.
मानक के अनरूप नहीं है वर्ग कक्ष, शिक्षक व उपस्कर
जिले के कई स्कू लों में शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरुप संसाधन नहीं है. मानक के अनुसार शिक्षक बीएड प्रशिक्षित होने चाहिए, पर ऐसा नहीं है. वहीं वर्ग कक्ष एवं उपस्कर, प्रयोगशाला, लाइब्रेरी आदि की सुविधा पर्याप्त नहीं है. इसके बावजूद इन विद्यालयों द्वारा मात्र अनुशासन के कड़े नियम के आधार पर फीस की वसूली हो रही है.
स्कूल बसों के भाड़ा में भी मनमानी
कई विद्यालयों में बच्चों की सुविधा के लिए स्कू ल बस है. इन स्कू लों के बस भाड़ा भी इतने अधिक है कि अभिभावक को सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है, लेकिन उनके साथ दुर्भाग्य ऐसा होता है शहर में प्राय: जाम के कारण उन्हें इस सुविधा को स्वीकार करने की विवशता बनी हुई है. इन स्कूल बस का भाड़ा कम दूरी के लिए न्यूनतम 500 से 600 रुपये मासिक है जबकि अधिकतम दूरी के लिए 1000 से 1500 रुपये तक वसूल रहे हैं. डीजल के दाम कम हो या बढ़ जाय.
इनके भाड़ा में प्रत्येक वर्ष 10 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होनी तय है. कुछ की स्थिति ऐसी भी है कि सीट से ज्यादा बच्चों को ठूंसकर स्कू ल पहुंचाया जाता है. कई अभिभावकों ने पटना में बस भाड़ा पर नियंत्रण के डीएम की कार्रवाई पर अखबार कतरन दिखाते हुए दरभंगा में इसी कार्रवाई की आवश्यकता जताते हैं.
फीस की दोहरी नीति
शहर में अवस्थित दो दर्जन निजी विद्यालयों के फीस में भारी असमानता है. कुछ ऐसे भी प्राइवेट स्कूल हैं जिनका फीस मध्यम वर्ग के लोग चुका सकते हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे भी विद्यालय है जिनका फीस स्ट्रक्चर हाई है. ऐसा भी नहीं है कि दोनों विद्यालयों के पढ़ाई में बहुत बड़ा अंतर है.
हां, एक अंतर जरुर है कि जो विद्यालय फीस की भारी रकम वसूल रहे है. इन विद्यालयों का भवन प्रत्येक वर्ष बहुमंजिल में एक मंजिल का इजाफा कर लेता है. शहर के अभी भी एक पुराना स्कू ल में आधी फीस ली जा रही है, वहीं दूसरे स्कू लों ने अपने फीस में 20-40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी.
बस्ता, ड्रेस, टाई में चुकानी पड़ रही दोगुनी कीमत
इन स्कूलों में पढ़नेवाले छात्र-छात्रओं को बस्ता, ड्रेस, टाई, जूतों आदि भी उनके द्वारा निर्धारित दुकानों से खरीदना अनिवार्य है.
इन चीजों को अन्यत्र खरीदने पर उन्हें आधी कीमत चुकानी पड़ती है लेकिन स्कू ल प्रबंधन की हठधर्मिता से उन्हें दोगुनी कीमत अदा करना पड़ रहा है.
अग्रिम में वसूले जा रहे फीस
क ई स्कूलों में फीस लेने के कड़े प्रावधान हैं. इन विद्यालयों क ो कई माह की फीस अग्रिम में चाहिए. जिसके कारण अभिभावकों को अन्य खर्चाें को कटौती कर अपने बच्चों को अग्रिम में ही फीस चुकानी पड़ रही है.
बढ़ रही है स्कू ल प्रबंधन व अभिभावकों की दूरी
बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए छात्र-अभिभावक-शिक्षक का त्रिकोणात्मक संबंध मधुर होना आवश्यक है.इसमें स्कूल प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन जिस प्रकार स्कूल प्रबंधन पूनर्नामांकन के नाम पर 15-20 हजार रुपये तक वसूल रहे हैं. उससे अभिभावक एवं स्कू ल प्रबंधन में एक खाई बनती जा रही है. यह छात्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अच्छा माना नही जा सकता. जबतक बच्चों की प्रगति पर त्रिकोणात्मक संबंध में विचार विमर्श नहीं होगा तब तक उपलब्धि अच्छी नहीं हो सकती. ऐसे में स्कू ल प्रबंधन को ऐसा निर्णय लेने से पूर्व अभिभावकों को विश्वास में लिया जाना चाहिए.
क्या कहता है शिक्षा का अधिकार कानून
देश में छह से 14 आयुवर्ग के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा का अधिकार कानून लागू है. इस अधिनियम के तहत सरकारी एवं निजी विद्यालयों में इस आयुवर्ग के बच्चों के लिए एक शिक्षा नीति है. सरकारी स्कूलों में इन आयु वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा लागू है लेकिन निजी विद्यालयों के फीस पर नियंत्रण का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने के कारण ऐसी स्थिति बनी हुई है.
पुस्तकों के चयन में मनमानी
निजी विद्यालयों के बच्चों को नामी प्रकाशकों के पुस्तकों के अध्ययन के लिए प्रत्येक वर्ष मजबूर किया जाता है. प्रत्येक वर्ष एक दो पुस्तकों में हेरफेर कर नयी पुस्तकों के सेट लेने होते हैं.
जिसपर भी अभिभावकों को अतिरिक्त बोझ पड़ता है. जबकि यही बच्चे जब उच्च वर्ग कक्ष में जाते हैं तो उसे एनसीइआरटी का बुक पढ़ने की बाध्यता बन जाती है. ऐसे में इन बच्चों को निम्न कक्षा से ही अगर एनसीइआरटी की पुस्तक से पठन पाठन होता तो उनका बेस भी मजबूत होता तथा अभिभावकों पर अनावश्यक बोझ भी नहीं पड़ता.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement