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कोच में जाने को होती है भाग-दौड़

प्लेटफार्म पर ट्रेन लगते ही यात्रियों में मचती है अफरातफरी कहने के लिए तो दरभंगा जंकशन रेलवे का सर्वोच्च दर्जा ए-वन स्टेशन है. लेकिन यहां यात्री सुविधा का घोर अभाव है. एक अदद कोच इंडिकेटर की सुविधा भी यात्राियों को नहीं मिल रही है. सात साल पूर्व इस मशीन को लगाया गया, लेकिन कर्मियों की […]

प्लेटफार्म पर ट्रेन लगते ही यात्रियों में मचती है अफरातफरी
कहने के लिए तो दरभंगा जंकशन रेलवे का सर्वोच्च दर्जा ए-वन स्टेशन है. लेकिन यहां यात्री सुविधा का घोर अभाव है. एक अदद कोच इंडिकेटर की सुविधा भी यात्राियों को नहीं मिल रही है. सात साल पूर्व इस मशीन को लगाया गया, लेकिन कर्मियों की लापरवाही व अधिकारियों की गैर संजीदगी की कारण बिना लाभ दिये ही यह मशीन खराब हो गया. डीआरएम ने इसे हटवा तो दिया लेकिन नई मशीन लगाने की व्यवस्था नहीं की.
दरभंगा : दरभंगा जंकशन पर लंबी दूरी की ट्रेन के खड़ी होते ही यात्राियों के बीच भागम-भाग शुरू हो जाती है. कोच की तलाश में यात्राियों को भारी सामान के साथ आगे से पीछे दौड़ लगानी पड़ती है. विशेषकर रवानगी के समय से थोड़ी देर पहले ही जिस दिन गाड़ी प्लेटफॉर्म पर प्लेस होती है, उस दिन तो परेशानी इतनी बड़ी हो जाती है कि यात्राियों का भागते-भागते सांस फूल जाता है. यह हाल उस स्टेशन पर है, जो रेलवे का सर्वोच्च दर्जा प्राप्त स्टेशन है. इसके लिए पहले जंकशन पर कोच गाइडेंस सिस्टम मशीन लगायी गयी थी, पर यह सही तरीके से कभी भी निरंतर काम नहीं कर सकी.
रेलकर्मियों की लापरवाह रवैये की वजह से यह सिर्फ दिखावे की वस्तु की तरह लटकी रही. बाद में इसे खराब घोषित कर दिया गया. अंतत: पिछले साल इसे डीआरएम के आदेश पर हटा दिया गया. एक साल से अधिक बीत जाने के बाद इस सुविधा को दुबारा बहाल करने की चर्चा तक नहीं है.
सात साल पूर्व लगी थी मशीन
यात्राियों को ट्रेन प्लेस होने से पूर्व कोच के सही स्थान की सूचना उपलब्ध कराने के नजरिये से रेलवे ने दरभंगा जंकशन पर कोच इंडिकेटर लगाया गया था.
जंकशन के प्लेटफॉर्म एक, दो व तीन पर इसके बोर्ड लगाये थे. इसके माध्यम से यात्राियों को कौन सा कोच कहां लगने वाला है, इसकी पूर्व में जानकारी हो जाती थी. इससे सामान या फिर वृद्ध व लाचार परिजनों के साथ सफर करनेवालों को काफी सहूलियत होती थी. पहले से निर्धारित स्थान पर वे मुस्तैद रहते थे और गाड़ी आने पर अपने बर्थ पर सहजता से सवार हो जाते थे.
निरंतर नहीं मिली सेवा
मशीन लगने के बाद से कभी भी यात्राियों को निरंतर इसका लाभ नहीं मिल सका. वर्ष 2008 में लाखों की लागत से लगे इस मशीन का सही से किसी ने संचालन नहीं किया. लिहाजा यह दिखावे की वस्तु बनकर रह गयी. जब कभी बड़े अधिकारी का आगमन होता था, इसे संचालित किया जाता था. उनके जाते ही यह मात्र प्लेटफॉर्म की संख्या की सूचना डिस्प्ले होना शुरू हो जाता.
जीएम के आगमन पर चालू हुई सेवा
वर्ष 2009 में 24 जनवरी को जीएम के वार्षिक निरीक्षण के समय इसे चालू किया गया. टेलीकम्यूनिकेशन विभाग ने आनन-फानन में इसे दुरुस्त कर यात्राियों की परेशानी कम कर दी. इसके बाद दुबारा 2011 में जब रेल महाप्रबंधक का आगमन इस क्षेत्र से हुआ तो ठीक किया गया. जब वे चले गये तो फिर से इसे छोड़ दिया गया. इसके बाद से इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.
यहां जुटती भारी भीड़
दरभंगा जंकशन पर तो अब कभी डल सीजन आता ही नहीं. सालों भर पिक सीजन जैसी भीड़ रहती है. इसका प्रमाण ट्रेनों में आरक्षण का टोटा देता है. यहां से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, पूणो, बेंगलुरू, हैदराबाद, अमृतसर सहित कई महानगरों के लिए गाड़ियां चलती हैं. औसतन प्रतिदिन 35 से 38 हजार यात्राी आवागमन करते हैं. जंकशन पर भीड़ का आलम यह होता है कि गुरुवार, शनिवार व मंगलवार को तिल रखने तक की जगह यात्रियों को नहीं मिलती. ऐसे में सामान लेकर इधर से उधर भागदौड़ करना काफी दुष्कर होता है.
कर्मियों की लापरवाही से समाप्त हुई सेवा
कोच इंडिकेटर के संचालन में मुख्य रूप से तीन विभाग के कर्मियों की भूमिका प्रमुख होती है. इसमें ट्रेन के आने के बाद जब इसकी धुलाई कर अभियंत्रण विभाग फिट दे देता है तो कैरेज कोच कंबीनेशन की सूचना कॉमर्शियल विभाग को उपलब्ध करा देता है. वाणिज्य विभाग का काम है कि वह कंप्यूटर में इसे फीड कर डिस्प्ले बोर्ड के माध्यम से प्रदर्शित करे. वहीं टेली कम्यूनिकेशन विभाग का काम इस मशीन को दुरुस्त रखना है. जानकारों की मानें तो कॉमर्शियल विभाग को कोच कंबीनेशन की सूचना कैरेज की ओर से सही समय पर नहीं दिये जाने की वजह से संसाधन उपलब्ध रहने के बावजूद यात्राी इस सुविधा से वंचित रहे.
कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में संपर्क करने पर सीनियर डीसीएम सह पीआरओ जफर आजम ने बताया कि जंकशन पर यात्री सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रक्रिया चल रही है. यह सुविधा भी प्रक्रियाधीन है. शीघ्र ही इसे बहाल कर दिया जायेगा.

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