दरभंगा. मैथिली मंच पर लोक गीत को नयी पहचान देनेवाले रवींद्रनाथ ठाकुर को दरभंगा में ही साहित्यिक परिचय मिली. पटना से अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ करने वाले श्री ठाकुर सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध में यहां आये. यहां उन्हांेने कई रचना की. आर्थिक तंगी के बीच ‘चलू-चलू बहिना, चित्र-विचित्र, नर गंगा आदि की रचना की. साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी किया. महेंद्र के साथ उनकी जोड़ी को काफी प्रसिद्धि मिली. बिना साज-बाज के श्रोताओं को बांधे रखने में महारत हासिल थी. किसी भी इस तरह के आयोजन में इनका नाम जुड़ने मात्र से ही लोगों की भीड़ जुट जाती थी. इनके मित्र मंडली में प्रमुख रहे प्रो शिवाकांत पाठक ने कहा कि इनकी कई रचनाआंे ने जन कंठ में जगह बनायी. आज भी बच्चों की लोड़ी में यह गाया जाता है. मिट्टी से जुड़ी रचनायें आज भी लोगों के जेहन में है. इन्हें नचिकेता सम्मान मिलना हर्ष की बात है.
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दरभंगा से ही रवींद्र को मिली साहित्यिक परिचय
दरभंगा. मैथिली मंच पर लोक गीत को नयी पहचान देनेवाले रवींद्रनाथ ठाकुर को दरभंगा में ही साहित्यिक परिचय मिली. पटना से अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ करने वाले श्री ठाकुर सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध में यहां आये. यहां उन्हांेने कई रचना की. आर्थिक तंगी के बीच ‘चलू-चलू बहिना, चित्र-विचित्र, नर गंगा आदि की रचना की. […]
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