छह माह में नौ फीट गिरा जलस्तर
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जलसंकट. ऐसी स्थिति रही, तो 2025 तक यहां भी पानी के लिए मचेगा हाहाकार
छह माह में नौ फीट गिरा जलस्तर चंपारण में छह माह में जलस्तर नौ फीट तक नीचे गिरा है. यही स्थिति रही तो यकीन मानिए वह दिन दूर नहीं, जब वन सम्पदा, पहाड़ व गंडक जैसी विशाल नदियों को समेटे अपने चंपारण में भी पानी की किल्लत होगी. चापाकल सूख जायेंगे. पानी के लिए हाहाकार […]
चंपारण में छह माह में जलस्तर नौ फीट तक नीचे गिरा है. यही स्थिति रही तो यकीन मानिए वह दिन दूर नहीं, जब वन सम्पदा, पहाड़ व गंडक जैसी विशाल नदियों को समेटे अपने चंपारण में भी पानी की किल्लत होगी. चापाकल सूख जायेंगे. पानी के लिए हाहाकार मचेगा. सोचिए यह हालात उसी तरह होगा, जैसे मौजूदा समय में देश के अन्य हिस्सों में हैं.
बेतिया : चिलचिलाती धूप, चल रही गरम हवाये सिर्फ धरती को नहीं तपा रही है, बल्कि जमीन के भीतर मौजूद पानी को भी सोख रहीं हैं. नतीजा भू-जलस्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा.
पीएचईडी की ओर से कराये गये सर्वे रिपोर्ट के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि जिले में छह माह में अधिकत्तम नौ फीट जलस्तर गिरा है, इसमें लौरिया व योगापट्टी प्रखंड शामिल हैं. जबकि अन्य प्रखंडों में भी जलस्तर औसत दो से तीन फीट नीचे गया हैं. सर्वे रिपोर्ट चौकाने वाले हैं, खुद पीएचईडी इसे लेकर अचंभित हैं. विभागीय अधिकारियों का मानना है कि जिस तरह से पानी को दोहन हो रहा है, उस हिसाब से यहां भी दस सालों बाद जलसंकट की बात को नकारा नहीं जा सकता है.
हर प्रखंड में पांच-पांच चापाकल की हुई जांच
पीएचईडी की ओर से जिले के सभी प्रखंडों में पांच-पांच चापाकलों के भू-जलस्तर की जांच की गयी है. जांच के बाद यह रिपोर्ट आया हैं. जिसमें नवंबर 2015 के बाद अधिकतम नौ फीट तक जलस्तर नीचे गिरने की बात सामने आयी है.
हुई बारिश, तो मिलेगी राहत
भू-जलस्तर के नीचे गिरने से आने वाले वर्षों में जलसंकट होने का खतरा हैं. लेकिन यदि मानसून में अधिक बारिश होती है, तो यह राहत देने वाली होगी. हालांकि मौसम विशेषज्ञों ने इस बार अधिक बारिश होने की संभावना जतायी है.
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