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एह चुनाव में सच्च उम्मीदवार के चुनब

महात्मा गांधी की कर्मभूमि चंपारण में चुनावी शोर के बीच लोग सच्चे उम्मीदवारों की तलाश कर रहे हैं. 1972 में चंपारण को दो जिलों में बांटा गया था. पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण. पश्चिम चंपारण में विधानसभा की नौ सीटें हैं. यहां एक नवंबर को मतदान है. समय कम है, इसलिए हर उम्मीदवार वोटरों तक […]

महात्मा गांधी की कर्मभूमि चंपारण में चुनावी शोर के बीच लोग सच्चे उम्मीदवारों की तलाश कर रहे हैं. 1972 में चंपारण को दो जिलों में बांटा गया था. पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण.
पश्चिम चंपारण में विधानसभा की नौ सीटें हैं. यहां एक नवंबर को मतदान है. समय कम है, इसलिए हर उम्मीदवार वोटरों तक अपनी बात पहुंचाने की आपाधापी में हैं. वे लोगों से वायदे कर रहे हैं, पर वोटर ऐसे उम्मीदवार की तलाश में हैं जो वायदों को पूरा करे. पढ़िए, मुजफ्फरपुर संस्करण के संपादक शैलेंद्र की रिपोर्ट.
वादे, विकास और नेताओं की बात पर खूब बोल रहे वोट
चुनाव में सब नेता हवा-हवाई बोलत ताड़े. हमनी के दुख दरिदर से. ये लोग के कवनो मतलब नइखे. इ लोग बरखा के दिन खानी एहि घरी लौकता. चुनाव खतम होते चलि जाइ लोग. बेतिया-बगहा, नरटकियागंज व रामनगर यही वजह से पिछड़ल बाटे कि हमनी के इ नेतवन के बहकवला में आ जाइ ले. बाकिर इ ढेर दिन न चली.
अबकि चुनाव में हमनी के वहि उम्मीदवार के चुनेब. जे सच्च बा. हमनी के दुख दरिदर समङो वाला बा. तीन लालटेन चौक से मीना बाजार की ओर जा रहे राम नरेश अपने साथियों से ये चर्चा करते हुये आगे बढ़ रहे हैं.
उनके साथ चल रहे खेलावन कहते हैं, बात तो आप सही कह रहे हैं भाई, लेकिन दोष हम लोगों का ही है, जो जात-पांति की पॉलिटिक्स में फंस जाते हैं और ये जानते हुये भी वोट उसी प्रत्याशी को दे देते हैं, जो जीतने के बाद इलाके में नहीं दिखता है. खेलावन की बात बीच में ही काटते हुये राम नरेश कहते हैं, अब इसको गुजरे जमाने की बात बना देना है. इसी चर्चा के बीच सिसवा इलाके से खरीदारी करने के लिए आये रामनरेश व उनके साथी आगे बढ़ जाते हैं.
पश्चिम चंपारण में सामाजिक व भौगोलिक विविधता अन्य जिलों से ज्यादा है. बड़ा हिस्सा पड़ोसी देश नेपाल से लगता है. गंडक में आनेवाली बाढ़ हर साल खुशियों के साथ परेशानी भी लेकर आती है. जिले की बाल्मिकीनगर, रामनगर व सिकटा सीट आदिवासी बहुल हैं.
यहां पर थारू व उरांव वोटर ज्यादा है. जिले की विविधता के बारे में विचार करते हुये हम आगे बढ़ते हैं. इसी बीच हमारी मुलाकात राजेश झुनझुनवाला से होती है, जो कपड़े के व्यवसायी हैं. बेतिया शहर में इनके पिता का भी बड़ा नाम था. वो बीते दिनों की बात करते हैं और फिर चुनाव पर बोलने लगते हैं. कहते हैं, अभी किसी तरह की समस्या नहीं है. हमारा इलाका पिछड़ा और सीमावर्ती है. हम चाहते हैं कोई ऐसा व्यक्ति प्रदेश में शासन करे, जिसके पास विकास का विजन हो. शहर से छोड़ अगर ग्रामीण इलाकों की बात करें, तो यहां पर भी समस्याओं की लंबी फेहरिस्त है.
बेतिया राज की जमीन पर बने मीना बाजार को दिल्ली के चांदनी चौक की तर्ज पर बसाया गया था. अब भी यहां रोजमर्रा के काम की हर चीज मिल जाती है. पूरे बाजार में ऐसी व्यवस्था है कि बरसात के दिनों में पानी नहीं गिरता है. सैकड़ों की संख्या में दुकाने हैं. जनरल स्टोर में काम करनेवाले मनोज कहते हैं कि अब राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि वोटरों को बरगलाने में लगे हैं, लेकिन हम वोट उसी को देंगे, जिसके बारे में मेरे परिवारवाले कहेंगे. शिक्षाविद नर्वदा मिश्र कहते हैं कि समाज के तीन वर्गो का वोटर अब रहता है.
इसमें पढ़े-लिखे व व्यापारी वर्ग के लोग प्रमुख हैं. वो कहते हैं कि पहले क्षेत्र में प्रत्याशियों को लेकर चर्चा होती थी. लेकिन अब ये कम हो गया है. वो कहते हैं कि अब लोग किसे वोट देंगे. इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
नरकटियागंज के रहनेवाले नर्वदा कहते हैं कि हमारे इलाके में अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जो सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाये हैं. साथ ही पढ़ाई की व्यवस्था बहुत खराब है. नर्वदा मिश्र भले ही वोटर के साइलेंट होने की बात कहते हैं, लेकिन मंगुराहां इलाके के रहनेवाले विश्वेश्वर महतो पूछते ही पार्टी विशेष का नाम लेते हैं. 65 साल के महतो बताते है कि प्रचार में अभी एक पार्टी विशेष का जोर है, लेकिन अगले ही पल कहते हैं कि जीतता तो दूसरे पार्टी का प्रत्याशी है. वो ये भी कहते हैं कि काम कोई नहीं हो रहा है.
नेताओं की संपत्ति ही क्यो बढ़ती है
बेतिया नगर परिषद के तीन बार चेयरमैन रहे जगदीश प्रसाद कहते हैं, व्यापारी होने की वजह से हम लोगों पर एक पार्टी का ठप्पा लगा है, लेकिन अभी राजनीति की जो हालत है. वो ठीक नहीं है. नेताओं की ओर से क्या बोला जा रहा है? वो ऐसी बातें कह रहे हैं, जिनका आम लोगों से कोई संबंध नहीं है.
वो नेताओं की मिलनेवाली सुख-सुविधाओं का भी मुद्दा उठाते हैं. साथ ही कहते हैं, आखिर नेताओं की संपत्ति दिन-दुनी रात चौगुनी क्यों बढ़ती है ? वो ऐसा क्या करते हैं, जिससे उनकी संपत्ति इतनी बढ़ जाती है. जगदीश प्रसाद कार्यकर्ताओं पर भी सवाल करते हैं. कहते हैं, अब कार्यकर्ता ठेकेदार बन गये हैं. ऐसे में राजनीति अपने मूल से भटक गयी है.
परचाधारी मांग रहे आश्वासन
पश्चिम चंपारण में 35 हजार परचाधारी प्रत्याशियों से लिखित आश्वासन मांग रहे हैं. इसके लिए इन लोगों ने बाकायदा घोषणा पत्र बना रखा है. लोक संघर्ष समिति के बैनर तले इनका आंदोलन सालों से चल रहा है.
इसे परचाधारी संघर्ष वाहिनी का समर्थन हासिल है. समिति से जुड़े सिसवा के अमरेश कहते हैं, ये बड़ा मुद्दा है. हम लोग भूमिहीनों के हक की आवाज उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे, जब तक बंधोपाय्याय कमेटी के सिफारिश के मुताबिक भूमिहीनों को जमीन पर कब्जा नहीं मिल जाये.

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