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एक मर्दानी बिटिया इधर भी है, 10 मार्च को होगा सम्मान
बगहा : पश्चिम चंपारण जिले के भैरोगंज थाने के बांसगांव परसौनी गांव की वीरांगना 25 वर्षीय प्रियंका कुमारी के भी अपने सपने थे. वह भी पिता के घर से डोली में सवार हो कर ससुराल जाना चाहती थी. आम लड़कियों की तरह शर्मिली एवं ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी प्रियंका की जिंदगी भी उड़ान भरने […]
बगहा : पश्चिम चंपारण जिले के भैरोगंज थाने के बांसगांव परसौनी गांव की वीरांगना 25 वर्षीय प्रियंका कुमारी के भी अपने सपने थे. वह भी पिता के घर से डोली में सवार हो कर ससुराल जाना चाहती थी. आम लड़कियों की तरह शर्मिली एवं ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी प्रियंका की जिंदगी भी उड़ान भरने वाली थी.
घर में उसकी शादी की तैयारियां चल रही थी. गरीबी एवं फटेहाली के बावजूद उसके पिता नवल तिवारी बेटी के सारे अरमानों को पूरा करने की तैयारी में थे. तभी उसकी जिंदगी में तूफान आया. एसिड अटैक में उसकी दोनों आंखें जा चुकी हैं. कानों से कुछ भी सुनाई नहीं पड़ता. चेहरा पूरी तरह से झुलस गया है. एक तरह से विकलांग सी हो गयी है. चलने-फिरने के लिए भी किसी के मदद की दरकार रहती है. पर,वीरांगना ऐसी कि किसी के आगे सर झुकाने की आदत नहीं है. हालांकि उसके इसी हिम्मत का परिणाम है कि आरोपित को सजा दिलाने में कामयाब हुई है.
….और ठहाके लगाती है वह
बांस गांव परसौनी गांव के नवल तिवारी की यह वीरांगना पुत्री चाहती है कि ऐसे आरोपितों को फांसी की सजा हो, ताकि कोई अन्य दुराचारी लड़कियों की जिंदगी को मजाक नहीं समङो. जब भी कोई उसे दुर्घटना वाली रात की याद दिलाता है तो वह पहले मायूस होती है. फिर खिलखिला कर हंस पड़ती है. मायूसी इस लिए कि उसके भी सपने थे. हाथों में मेहंदी रचायेगी. दुल्हन बन कर ससुराल जाना चाहती थी.
अपनी दुनिया बसाना चाहती थी. पर, एसिड अटैक के कारण उसके अरमान टूट गये. जिंदगी पूरी तरह से बेजान हो गयी है. पर, खुश इस लिये होती है कि जिसने उसके अरमानों को कुचला उसे सजा दिलाने में कामयाब हुई.
गणतंत्र दिवस को हुआ था हमला
बात 26 जनवरी 2011 की है. पूरा देश गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगे को सलामी देने और संविधान की रक्षा का संकल्प ले रहा था. दूसरी ओर एक शातिर दिमाग युवक, लड़की के अरमानों को कुचलने की योजना बना रहा था. रात के करीब 1 बजे आरोपित, लड़की के घर में घुसा. प्रियंका और उसकी छोटी बहन नीशू एक चारपाई पर सोये थे. आरोपित ने प्रियंका को टारगेट कर एसिड अटैक किया. पूरा का पूरा एसिड प्रियंका के शरीर पर उड़ेल दिया. उसके छींटों ने उसकी छोटी बहन नीशू को भी जख्मी कर दिया. जब तक दोनों बहनें पूरा माजरा समझ पातीं.
आरोपित भाग गये. आनन-फानन में दोनों बहनों को अस्पताल में भरती कराया गया. करीब दो माह तक बेतिया के एमजेके अस्पताल में इलाज चला. चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रियंका की आंखों को नहीं बचाया जा सका. आर्थिक रूप से कमजोर पिता अपनी बेटी की बेहतर इलाज कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़े. पौने दो बिगहा जमीन के मालिक मध्यम वर्गीय किसान नवल तिवारी बेटी की इलाज कराने में सारी जमीन बेच दी. अभी वे मजदूरी करते हैं. इसी से घर में चूल्हा जलता है. हालांकि इस एसिड हमले में घायल प्रियंका की छोटी बहन नीशू ठीक हो गयी है.
टूट गयी थी प्रियंका की शादी
प्रियंका की शादी पश्चिम चंपारण जिले के योगापट्टी में तय हो गयी थी. फरवरी माह में शादी होने वाली थी. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गयी थी. घर में गीत गंवनई आरंभ हो गया था. नाते-रिश्तेदारों को आमंत्रण पत्र भेजा जाने लगा था.
तभी यह रोंगटे खड़ा कर देने वाली घटन घटी. गांव के आटा-चक्की मिल से प्रियंका लौट रही थी. रास्ते में आरोपित ने उसे घेर लिया और शादी करने की पेशकश की. प्रियंका ने इनकार किया तो उसने बरबाद करने की धमकी भी दी थी. हालांकि एसिड अटैक के बाद कुछ दिनों तक लड़के वालों ने उसके स्वस्थ होने की प्रतीक्षा की. लेकिन उन्हें लगा कि वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पायेगी तो उन लोगों ने रिश्ता तोड़ लिया. प्रियंका के पिता का कहना है कि भले हीं मेरा पूरा जमीन बेटी का इलाज कराने में बिक गया. लेकिन एक बात का संतोष जरूर है कि आरोपित को सजा मिल गयी.
मिसाल बन गयी प्रियंका
भले हीं आरोपित को सजा दिलाने में दो वर्ष के वक्त लगे. लेकिन प्रियंका व उसके माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी. तरह – तरह की धमकियां मिली. प्रलोभन भी दिये गये. लेकिन पूरा परिवार टस से मस नहीं हुआ. आखिरकार 21 मार्च को 2013 को बगहा के तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुबोध कुमार श्रीवास्तव के न्यायालय में इस बहुचर्चित कांड की सुनवाई हुई और आरोपित को उम्र कैद की सजा तथा 50 हजार रुपये अर्थ दंड की सजा सुनाई गयी.
आगामी 10 मार्च को गोपाल सिंह नेपाली फाउंडेशन एवं भाजपा कला संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वावधान चंपारण की वीरांगनाओं का सम्मान होने वाला है. आयोजक मंडल की ओर से मर्दानियों के सेलेक्शन का क्या मापदंड रखा गया है , यह तो पता नहीं है, लेकिन एक मर्दानी बिटिया बगहा एक प्रखंड के बांसगांव परसौनी में भी बसती है. उसे सम्मान नहीं मदद की दरकार है. जिंदगी बेजान सी हो गयी है, खुद की पहचान खो गयी है. बांसगांव परसौनी की मर्दानी बिटिया प्रियंका कुमारी की बेदर्द जिंदगी पर एक रिपोर्ट.
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