भ्रष्टाचार. दिन-रात हो रहे अवैध खनन से बांध हो गया था कमजोर
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वसूली में जुटे थे जिम्मेवार
भ्रष्टाचार. दिन-रात हो रहे अवैध खनन से बांध हो गया था कमजोर जिले में सात दिनों पर तांडव मचानेवाली भ्रष्टाचार की बाढ़ ने पूरे सिस्टम को खोखला कर रखा था. जलस्तर बढ़ने पर क्या हालात होंगे, इसकी किसे फिक्र थी. कोई ठेकेदारों से कोई खनन माफियाओं से मिलीभगत कर अपनी-अपनी जेब भरने में व्यस्त थे. […]
जिले में सात दिनों पर तांडव मचानेवाली भ्रष्टाचार की बाढ़ ने पूरे सिस्टम को खोखला कर रखा था. जलस्तर बढ़ने पर क्या हालात होंगे, इसकी किसे फिक्र थी. कोई ठेकेदारों से कोई खनन माफियाओं से मिलीभगत कर अपनी-अपनी जेब भरने में व्यस्त थे.
बेतिया : जिले में आयी प्रलंयकारी बाढ़ के वजहों की भले ही प्रशासनिक समीक्षा अभी नहीं हो रही हो, लेकिन सात दिनों तक तांडव मचाने वाली इस बाढ़ में भ्रष्टाचार की जड़ें परत दर परत खुलती जा रही है. नया खुलासा यह है कि सिकटा, मैनाटांड़ व गौनाहा के इलाकों में आयी त्रासदी अवैध खनन के नतीजे हैं. यहां दिन-रात चल रहे अवैध खनन ने तटबंधों को कमजोर कर दिया था. लिहाजा जैसे ही दोहरम, ओरिया, भंगहा-गदियानी, पंडई, मसान, करताहां, बिरहा समेत अन्य नदियों में जलस्तर बढ़ा तो इनके तटबंध थोड़ा भी दबाव नहीं झेल सके और हालात ऐसे हो गए कि जगह-जगह से टूटे तटबंधों ने इन इलाकों में सैकड़ों गांवों को जलमग्न कर दिया.
ऐसा नहीं था कि अवैध खनन होने की जानकारी स्थानीय प्रखंड के प्रशासनिक व विभागीय अधिकारियों को नहीं थी, बल्कि इसके जिम्मेवारों ने तो खनन माफियाओं को अवैध खनन की पूरी खुल छूट दे रखी थी. बदले में अफसरों को उनकी हिस्सेदारी हर माह भिजवा दी जाती थी. नतीजा आपसी मिलीभगत से खनन का यह गोरखधंधा सिकटा, मैनाटांड़ व गौनाहा के इलाकों में बहने वाली पहाड़ी नदियों में पूरे परवान पर था. दिन-रात अवैध खनन होने से तटबंधों का कटाव होता था. ग्रामीणों की मानें तो खनन से तटबंध तो कमजोर होते ही थे, साथ ही साथ इन माफियाओं ने जगह-जगह तटबंधों को काट कर नदी के अंदर तक ट्रैक्टर-ट्रेलर व जेसीबी जाने का रास्ता भी बना लिया था. वह भी एक दो नहीं बल्कि दर्जनों रास्ते बनाये गये थे. नतीजा जब इन नदियों में जलस्तर बढ़ा तो तटबंध काटकर बनाये गये इन रास्तों से बाढ़ का पानी सीधे गांवों में घुसने लगा और रात भर में ही गांव-गांव बाढ़ की चपेट में आ गये. ग्रामीणों के अनुसार, जिन जगहों पर विभाग की ओर से खनन का पट्टा दिया गया था, वहां के ठेकेदार खनन के लिए निर्धारित रकवे के बजाये उसके दस-गुने रकवे में खनन करवाते थे. यहां तक की रिहायशी इलाकों से सटे स्थानों पर भी बालू खनन होता था.
रोक के बाद भी जारी था बालू खनन : जिले में बालू माफियाओं की दबंगई इस कदर थी कि उन्हें किसी का भय नहीं था. लिहाजा जिस समय न्यायालय ने बालू खनन पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. उस समय भी दोहरम, ओरिया व पंडई में खनन परवान पर था. इसमें जितनी भूमिका स्थानीय प्रखंड व अंचल के पदाधिकारियों को थी, उससे कहीं ज्यादा पुलिस की थी. जो खनन माफियाओं से वसूली करती ही थी, साथ ही साथ बालू लेकर घाटों से निकल रहे ट्रैक्टर-ट्रेलर से भी जेबें भरी जाती थी. किसी को भी इसकी फिक्र नहीं थी कि तटबंध कमजोर हो रहे हैं और तबाही मचाने को आतुर भी.
वीटीआर को भी माफियाओं ने कर दिया था खोखला
वीटीआर भी इन दिनों बाढ़ की चपेट में है. वन्य जीवों पर शामत आ गयी है. इसकी भी वजह अवैध खनन ही है. इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि बीते दिनों डीएफओ ने खनन पदाधिकारी को बिरहा नदी में अवैध खनन होने की जानकारी दी थी. साथ ही इसे वन्य जीव प्राणी नियम के विरूद्ध बताते ही रोक लगाने को कहा था, लेकिन समय रहते इसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
माफियाओं ने ‘वी’ को बना दिया था ‘आइ’
जानकारों की मानें तो नदी किनारे जब भी बांध बनते है तो उनकी आंतरिक सुरक्षा के लिए अंग्रेजी शब्द के वी के उल्टे ढालूदार दीवार बनाई जाती है, जिस पर जल का दवाब धीरे धीरे बनते हुए पानी ऊपर की तरफ चढ़ता है. लेकिन खनन माफिया नदियों की अंदरूनी सतही दीवार की मिट्टी, बालू काटकर अंग्रेजी शब्द के आई की शक्ल दे दिए, साथ ही कई जगहों पर ट्रैक्टर, जेसीबी निकलने के लिए बांधो को काटकर रास्ता बना दिये. जिससे कटाव हुआ, तटबंध कमजोर होने पर बांध टूटा और तबाही मची.
दबंगों ने जगह-जगह तटबंध काट ट्रैक्टर-ट्राली व जेसीबी ले जाने का बना लिया था रास्ता, जलस्तर बढ़ते ही गांवों में तेजी
से घुसने लगा पानी
मैनाटांड़, सिकना व गौनाहा में चरम पर था अवैध बालू व पत्थर खनन, हो रहा था तटबंधों का कटाव
अफसरों को देखने तक की नहीं थी फुर्सत, हर माह मिल जाती थी हिस्सेदारी की रकम
इन नदियों में होता था अवैध खनन : दोहरम, भंगहा-गदियानी, ओरिया, पंडई, मसान, करताहां, बिरहा नदी.
इन इलाकों में सक्रिय थे खनन माफिया : मानपुर, इनरवा, मैनाटांड, भंगहा, ठोरी, जमुनिया, भितहा, पिपरासी, मंगुराहा वन क्षेत्र, सिट्ठी, रूपवलिया ़
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