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फर्स्ट एड की व्यवस्था नहीं

कलेक्ट्रेट के अस्पताल का हाल . हजारों लोगों के इलाज की व्यवस्था पर सवाल बुखार व कीड़ा मारने समेत पांच तरह की दवाएं टेटबैक की व्यवस्था नहीं अस्पताल के भवन पर दाे सालों से पुलिस का कब्जा मोतिहारी : हर के कलेक्ट्रेट व न्यायालय परिसर में किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिए स्थापित […]

कलेक्ट्रेट के अस्पताल का हाल . हजारों लोगों के इलाज की व्यवस्था पर सवाल

बुखार व कीड़ा मारने समेत पांच तरह की दवाएं
टेटबैक की व्यवस्था नहीं
अस्पताल के भवन पर दाे सालों से पुलिस का कब्जा
मोतिहारी : हर के कलेक्ट्रेट व न्यायालय परिसर में किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिए स्थापित सरकारी अस्पताल फस्ट एड की सुविधा देने में भी अक्षम है. बुखार व कीड़ा की दवा है लेकिन टेटवैक नहीं है.
कहने को मात्र पांच प्रकार की दवा उपलब्ध है. जानकारों की माने तो कलेक्ट्रेट व न्यायालय परिसर में शहर के अलावे ग्रामीण क्षेत्र से करीब दस हजार लोग प्रतिदिन आते हैं. इसके अलावे न्यायिक अधिकारी, वकील, प्रशासनिक अधिकारी व विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत सहायक है, लेकिन उक्त अस्पताल में दवा के अलावे पानी, शौचालय की सुविधा भी नहीं है.
अस्पताल स्थापना का उद्देश्य यह था कि 1600 से अधिक अधिवक्ता, न्यायिक व अन्य अधिकारी और बाहर से आनेवाले लोगों की अचानक तबीयत खराब हो तो कम से कम प्राथमिक चिकित्सा की जा सके, लेकिन वैसी कोई सुविधा नहीं है.
सिविल सर्जन ने एसपी को लिखा पत्र: राजेपुर स्थित छह बेड के नये सरकारी अस्पताल पर दो वर्षो से पुलिस का कब्जा है. ऐसे में पदस्थापित चिकित्सक व कर्मी पुराने जर्जर भवन में मरीजों का इलाज कर चले जाते हैं. मरीजों को पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पाती है. इसको ले पुलिस कब्जे से अस्पताल मुक्त कराने के लिए सिविल सर्जन डाॅ प्रशांत कुमार ने पूर्वी चंपारण के एसपी को पत्र लिखा है.
मात्र तीन कर्मचारी ही अस्पताल में कार्यरत
व्यवहार न्यायालय अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक चिकित्सक, एक महिला नर्स व एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी है. बताया जाता है कि चार चिकित्सक एक दिन के अंतराल पर आकर ड्यूटी करते हैं. यह अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सदर प्रखंड मोतिहारी के द्वारा संचालित होता है.
पांच प्रकार की हैं दवाएं: इस अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र में पारासीटामोल, डेकोपर, ओआरएस, डीइसी, एलबेंडाजोल, जेल नामक दवाएं उपलब्ध है. दवा के लिए सदर प्रखंड मोतिहारी से आपूर्त्ति की जाती है. पहले मोतिहारी सदर अस्पताल से इसका संचालन होता था, लेकिन सदर प्रखंड से जुड़ने के बाद दवा की यहां कमी रहती है.
2011 में हुई अस्पताल की स्थापना: व्यवहार न्यायालय स्थित उक्त सरकारी अस्पताल की स्थापना 24 मई 2011 को हुई, जिसका उद्घाटन पटना उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्त्ति डा रविरंजन व जिला जज जेपी सिन्हा के द्वारा किया गया था.
बीपी की जांच करा कर लौट जाता हूं
दवा रहती है तो मिलती है. अन्यथा बीपी जांच कराकर लौट जाता हूँ. एएनएम, चिकित्सक आते हैं और शीघ्र चले जाते है. कोई समय नहीं होता.
कुमार शिवशंकर, वरीय अधिवक्ता
सीएस दें ध्यान: न्यायालय परिसर स्थित सरकारी अस्पताल में दवा की कमी दूर होनी चाहिए. इस पर सिविल सर्जन के अलावे जिला प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए.
डाॅ शंभू सिंह, सचिव, बार एसोसिएशन
अस्पताल प्रबंधक पर रुपये मांगने का आरोप
एजेंसी के लंबित भुगतान से जुड़ा है मामला
कार्य एजेंसी ने डीएम से की शिकायत
कहा राशि भुगतान के लिए मांगते हैं रिश्वत
कमेटी गठित कर जांच कराने की लगायी गुहार
मोतिहारी . सदर अस्पताल में आन्तरिक साफ-सफाई को बहाल कार्य एजेंसी के प्रोपराईटर मेसर्स नीरज कुमार ने अस्पताल प्रबंधक पर राशि भुगतान में रुपये मांगने का आरोप लगाया है. श्री कुमार ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी अनुपम कुमार से की है. मेसर्स नीरज ने राशि भुगतान के लिए अस्पताल प्रबंधक विजय कुमार झा पर डेढ़ लाख की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया है. कहा है कि विगत छह माह से राशि भुगतान लंबित है.
भुगतान को लेकर अस्पताल प्रबंधक रिश्वत के लिए कई दिनों से दबाव बना रहे हैं. पत्र में बताया है कि भुगतान को लेकर अस्पताल प्रबंधक द्वारा रिश्वत की राशि उपाधीक्षक एवं अन्य को भी देने की बात कही गयी है. वही रिश्वत नहीं देने पर स्पष्टीकरण पृच्छा करने एवं जांच टीम गठित कर विपत्र की भुगतान राशि में कटौती करने की धमकी भी दी है. आरोप लगाया है कि अस्पताल प्रबंधक सभी एजेंसी से रिश्वत लेते हैं. वही रिश्वत नहीं देने पर एजेंसी को परेशान करते हैं. मेरे एजेंसी के सुपरवाइजर राजीव कुमार से श्री झा ने व्यक्तिगत तौर 50 हजार रूपया लिया.
लंबित राशि भुगतान कराने के नाम पर रख लिया. मेसर्स नीरज ने जिलाधिकारी से अस्पताल प्रबंधक के क्रियाकलाप की जांच कमेटी गठित कर कराने एवं दोषी पर कार्रवाई करने का मांग किया है. इधर अस्पताल प्रबंधक विजय झा ने आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि एजेंसी के कार्य की उच्च स्तरीय जांच करायी जाये. मामले से जुड़ी सभी हकीकत सामने आ जायेगी.

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