रक्सौल : भार-नेपाल सीमा पर नो-मेंस लैंड में अंगरेजी अक्षर यू आकार में बहती सरिसवा नदी के पाटों पर कूड़े का बड़ा ढेर है, जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. ये कूड़ा नेपाल की आर्थिक राजधानी कहे जानेवाले वीरगंज शहर का है, जिसे वहां की नगरपालिका यहां डंप कर रही है. कूड़े के ढेर के बीच कालिख समान पानी लेकर बहती सरिसवा नदी. गंध की वजह से नदी के पास जाने की हिम्मत नहीं होती है.
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बारिश के दिनों में नदी के जरिये बहता है कूड़ा
रक्सौल : भार-नेपाल सीमा पर नो-मेंस लैंड में अंगरेजी अक्षर यू आकार में बहती सरिसवा नदी के पाटों पर कूड़े का बड़ा ढेर है, जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. ये कूड़ा नेपाल की आर्थिक राजधानी कहे जानेवाले वीरगंज शहर का है, जिसे वहां की नगरपालिका यहां डंप कर रही है. कूड़े के ढेर के […]
नो-मेंस लैंड में नेपाल से शंकराचार्य द्वार के बगल से प्रवेश करनेवाली सरिसवा इसका पूरा चक्कर लगाती है. इससे नदी का पेटा पांच सौ से एक
प्रदूषण-कूड़े में…
किलोमीटर के आसपास नो-मेंस लैंड में ही पड़ता है. उद्योगों के केमिकल के बाद यही सबसे बड़ी त्रसदी इस नदी की है. यहां शंकराचार्य द्वार के पास से ही वीरगंज नगरपालिका का कचरा नदी की पेटी में डाला जाना शुरू हो जाता है, जिसका क्रम भारतीय सीमा के पास तक चलता है. फिर जब नदी भारतीय सीमा से वापस नेपाली सीमा क्षेत्र की ओर आती है, तो फिर कूड़ा पड़ा दिखता है. स्थिति ये लगती है कि अगर शीघ्र कूड़ा डंपिंग को रोका नहीं गया, तो नदी का अस्तित्व मिट सकता है.
नेपाल के बारा के रामपुर जंगल से निकलनेवाली सरिसवा 32 किलोमीटर की यात्र करके भारतीय सीमा में प्रवेश करती है. पहले पहाड़ों व जड़ी-बूटी के पेड़ों के बीच से गुजरने की वजह से नदी के पानी से कुष्ट रोग ठीक हो जाता था, लेकिन नेपाल के इलाके में औद्योगिकीकरण होने के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गयी. अब जीवनदायिनी सरिसवा नदी की स्थिति नाले से भी खराब हो गयी है. इसके पानी में केमिकल और हानिकारक चीजें बहकर भारत आ रही हैं, जो बूढ़ी गंडक और बाद में जाकर गंगा में मिलती हैं. सरसिवा बचाओं आंदोलन चलानेवाले प्रो अनिल सिन्हा कहते हैं, ये नदी प्रधानमंत्री के नमामि गंगे प्रोजेक्ट को फेल कर रही है, क्योंकि जब तक सरिसवा का पानी शुद्ध नहीं होगा, तब हालत नहीं बदलेगी.
दरुगध के बीच गुजरते हैं हजारों
नो-मेंस लैंड से होकर रोज हजारों की संख्या में लोग रक्सौल व वीरगंज के बीच आते-जाते हैं. जैसे ही भारतीय सीमा पूरी होने के आती है, धूल के साथ गंध बढ़ती जाती है और नो-मेंस लैंड में तो कुछ देर खड़े रहना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इसी के बीच मालवाहक ट्रक कई-कई घंटे तक अपनी बारी का इंतजार करते हैं.
क्रिस्टो दास ने खोला था कुष्ट आश्रम
सरिसवा नदी के पानी से कुष्ट रोग ठीक होता है. ये बात सालों पहले से लोग जानते थे. इसके आसपास कुष्ट रोगी रहते थे, जिनकी सेवा के लिए 1981 में स्व. फादर क्रिस्टो दास ने आश्रम खोला था. झोपड़ी में खुला कुष्टाश्रम सरिसवा नदी के किनारे नो-मेंस लैंड में है, जो समय से साथ बढ़ता गया. अब यहां 140 बेड का अस्पताल है. बताते हैं कि क्रिस्टो दास ने सरिसवा के पानी से ही कुष्ट रोगियों का इलाज शुरू किया था.
मुहिम के रंग लाने का इंतजार
लगभग छह साल से सरिसवा बचाओ आंदोलन चला रहे प्रो अनिल सिन्हा अब मुहिम को अंजाम तक पहुंचता देखना चाहते हैं. वो कहते हैं कि हमने अपने स्तर से हर प्रयास कर लिया, लेकिन बात बढ़ती और रुक जाती है. कुछ काम होता, लेकिन सरिसवा की दशा देख मन सिहर उठता है. हम इसकी फिर से निर्मल धारा बहते देखना चाहते हैं. वो कहते हैं, देखिये भीषण गरमी में भी नदी का पानी सूखा नहीं है. कम ही सही, लेकिन कल-कल करके बह रहा है.
मील का पत्थर है रिपोर्ट
सरिसवा में प्रदूषण को लेकर नेपाल की ओर से आठ सदस्यीय कमेटी बनायी गयी थी, जिसने 25 पन्नों की रिपोर्ट दी थी. सरिसवा बचाओ आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेनेवाली डॉ किरण बाला कहती हैं कि वो रिपोर्ट मील का पत्थर है, क्योंकि उसमें हकीकत बयान की गयी, जिसके बाद कार्रवाई हुई, लेकिन उसका लंबे समय तक पालन नहीं हो पाया.
पानी में क्या-क्या मिला
कैडमियम, जिंक, आर्सेनिक, कॉपर, लेड व कई तरह का घातक रसायन
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