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180 किमी पैदल चल घोड़ासहन पहुंचे नौ मजदूर
घोड़ासहन : मौत के खौफनाक मंजर को हमने अपनी आंखों से देखा है़ मौत के मुंह से बचकर निकले हैं. वह याद अभी भी हमारे जेहन में खौफ पैदा कर रही है़ यह कहना है काठमांडू से लगभग 180 किलोमीटर पैदल चल कर घोड़ासहन पहुंचे चंपापुर कोइरिया के नौ मजदूरों की़ प्रखंड के विजयी पंचायत […]
घोड़ासहन : मौत के खौफनाक मंजर को हमने अपनी आंखों से देखा है़ मौत के मुंह से बचकर निकले हैं. वह याद अभी भी हमारे जेहन में खौफ पैदा कर रही है़
यह कहना है काठमांडू से लगभग 180 किलोमीटर पैदल चल कर घोड़ासहन पहुंचे चंपापुर कोइरिया के नौ मजदूरों की़ प्रखंड के विजयी पंचायत के चंपापुर कोइरिया गांव निवासी बंका प्रसाद कुशवाहा, रामस्नेही प्रसाद कुशवाहा, दिनेश प्रसाद कुशवाहा, विनय प्रसाद, संजय कुमार, चंदन कुमार, सुभित कुमार, उपेंद्र कुशवाहा व टोनवा के नथुनी प्रसाद कुशवाहा ने बुधवार को रालोसपा कार्यालय में बताया कि हम सभी काठमांडू के सादोबाटो ताल्चीखेल में रह कर राजमिस्त्री का काम करते थ़े रोज की भांति 25 अप्रैल को भी हमलोग हाथीवन में एक मंजिला मकान में प्लास्टर कर रहे थ़े
अचानक मचान हिलने लगा़ हमलोगों की समझ में कुछ नहीं आया़ तभी एक नेपाली वृद्ध महिला ने भूकंप होने का शोर मचाया़ सुनते ही हमलोग मचान से कूद गय़े तभी गड़गड़ाहट के साथ आजू-बाजू के मकान ढह रहे थ़े किसी तरह भागकर हमलोग पार्क में पहुंच़े लगभग 10 मिनट तक धरती हिलती रही़ पुन: भाग कर डेरा के पास गये, लेकिन डेरा में घुसने की हिम्मत किसी में नहीं थी़ किसी तरह वहां से भागना था़ हिम्मत करके डेरा में घुस गय़े रुपया-पैसा निकाल कर वहां से सवारी की तलाश में चल पड़े एक-एक सवारी पर चढ़ने के लिए हजारों लोग तैयार थ़े
तभी सूचना मिली की रास्ते में पहाड़ गिरा है़ तभी हमलोग रास्ते में सवारी मिलने की उम्मीद में पैदल ही चल पड़े पहली रात पुलेखानी पहाड़ की कंदराव के बीच गुजारा, दूसरी रात पथलहियां एक चाय की दुकान पर बीताया, तीसरे दिन परवानीपुर आने पर टेंपो मिला़ उसके बाद रक्सौल पहुंच़े परंतु कहीं भी अन्न का एक दाना नहीं मिला़ जहां भी रूकते थ,े वहां भगदड़ सा माहौल था़ दो दिनों तक बिना भोजन की दूरी तय की और रक्सौल पहुंच़े फिर ट्रेन पकड़ घोड़ासहन आया़
तब जाकर जान में जान आई़ यह व्यथा सुनाते इनकी आंखें डबडबा जा रही थी़ आज भी इनके जेहन में 25 की कुदरत की कहर सुनाई दे रही है, जिसमें ढह रहे इमारतों में रह रहे महिलाओं व बच्चों की चीत्कारें गूंज रही हैं. इसके बाद इन्होंने अब काठमांडू न जाने का भी फैसला कर लिया है़
बनकटवा. कुदरत ने काठमांडू घाटी सहित पूरे नेपाल में त्रसदी का विराट रूप दिखाया है, जिसका गवाह अब तक निकाली गयी पांच हजार लाशें और दस हजार से अधिक मौतें हैं, जिनकी आधिकारिक पुष्टि नेपाल सरकार द्वारा हो चुकी है.
भारत, चीन, अमेरिका, तुर्की सहित दुनिया के दर्जन भर देश इनसानियत का धर्म निभाते हुए भूकंप पीड़ितों को मानवीयता की संजीवनी देने में जुटे हैं. वहीं मौत को मात देने के बाद व लगातार तीन दिनों तक नियति से जीवन रक्षा की जंग में डट कर संघर्ष करने वाले लोग अब समूहों में वतन वापसी में लगे हैं.
नेपाल गये परिजनों के कुशलता की बाट जोह रहे भारत-नेपाल सीमाई क्षेत्र के सैकड़ों घरों के बुङो चूल्हे अब जलने लगे हैं. पथराई और सूनी मां की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े हैं. अपनों को सामने देख घर में पसरा मातमी सन्नाटा अब उत्सवी माहौल में बदल गया है.
कुछ ऐसा ही नजारा बुधवार को प्रखंड क्षेत्र के बीजबनी सहित कई गांवों में देखने को मिला. मौत के भयानक मंजर से निकल चौथे दिन की अहले सुबह घर लौटे मनमोहन, धर्मेश, लक्ष्मण, चंदेश्वर, भोला, प्रदीप ,पवन, ब्रजेश सहित 35 लोगों के परिवार में चहुंओर खुशियां छायी है.
अपने तीनों बेटे मनमोहन,भोला व राजू को सकुशल घर लौटा देख मां ललिता देवी फफक -फफक कर रो पड़ी. आंखों में खुशी के आंसू तैरने लगे.वहीं पिता प्रेमीलाल प्रसाद ने बेटों को गले लगा माथा चूम लिया. वहीं धर्मेश, चंदेश्वर, प्रदीप, पवन, ब्रजेश और लक्ष्मण आदि ने काठमांडू घाटी में आंखों के सामने बीती तबाही के मंजर को बयां करते बताया कि-हमलोग 35-40 की संख्या में बालाजू में साथ रह कर कपड़े का खुदरा व्यवसाय करते हैं.
दूर-दराज के देहातों में जाकर कपड़ा बेचते हैं. विगत 25 अप्रैल को कुछ लोग काम पर चले गये थे, लेकिन 20-25 की संख्या में अभी डेरा पर ही थे कि भूकंप का जल जला आया. देखते ही देखते आलीशान घर ताश की पत्तों की तरह बिखडने लगा. हमारा डेरा वाला पांच मंजिला घर भी धराशायी हो गया. भूकंप ने बालाजू की सूरत पूरी तरह से बिगाड़ कर रख दी. अगले दिन घरों से निकाले गये लाशों से सड़कें पट गयी.
हमलोगों में से कुछ साहसी साथियों ने आस-पास के घरों में फंसे लोगों को बचाने के लिए शीशा तोड़ घर के अंदर दाखिल हुए. हम सभी का कपड़ा, बिक्री का कपड़ा, पैसा, खाने-पीने का समान सभी डेरा में ही दब गया.तीन दिनों तक प्लास्टिक टांग खुले आसमान के नीचे तेज बारिश में समय बिताया.
लगातार आ रहे भूकंप के कारण जिंदगी पर मौत हावी होने लगी थी. इसके बाद हमलोग बालाजू आर्मी कैंप पहुंचे लेकिन वहां भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी. रास्ता जाम, गाडी का अभाव, पैसे की कमी, भूखे-प्यासे बीमार हालत में रक्सौल पहुंचे. गाडी मालिक ने यात्रियों से जबरन 55 हजार रुपये बतौर भाड़ा वसूल किया.रक्सौल प्लेटफॉर्म पर रात गुजारने के बाद सभी अपने-अपने घर तो अवश्य ही पहुंच गये हैं लेकिन उनकी आंखों में अभी भी खौफ को आसानी से देखा जा सकता है.
कल्याणपुर : भूकंप का 86 बार झटका पर झटका खाकर काठमांडू के ललितपुर जिला से प्रखंड के राजपुर बाजार पर तीनों भाई बुधवार की सुबह अपने घर पहुंचे. इस बाबत अनिल कुमार साह ने बताया कि हम तीनों भाई कृष्णा साह, सुनील साह 18 सालों से ललितपुर में कबाड़ी का काम करते थे. शनिवार हम तीनों भाई एक साथ बैठ कर बात कर रहे थे कि 11.55 बजे से भूकंप शुरू हो गया. हमलोग रूम छोड़ कर भागना शुरू कर दिये.
भूकंप के बाद कहीं रहने की व्यवस्था नहीं थी तो हमलोग प्लास्टिक खरीद कर सड़क पर सोये व चूड़ा-दालमोट खरीद कर तीन दिनतक खाएं और समय बिताये. भूकंप के बाद सभी सामानों का दर बढ़ गया था. एक बिस्कुट के पैकेट क दाम पचास रुपया व एक बोतल पानी का दाम चालीस रुपया व एक रोटी का बीस रुपया लिया जा रहा था. भूकंप आने के बाद गाड़ी का किराया भी बहुत महंगा हो गया था. ललितपुर से रक्सौल आने का प्रतिव्यक्ति तीन हजार मांगी जा रही थी.
वहां से हमलोगों को 15 किमी पैदल चलने के बाद एक सरकारी बस मिली जो हमलोगों को बुधवार की सुबह चकिया छोड़ी. भूकंप शुरू होने के बाद हमलोगों को झटका पर झटका का सामना करना पड़ा. हमलोग को लग रहा है कि भगवान ने ही हमलोगों की जान बचा कर घर पहुंचा दिया है.
काठमांडू में फंसे लोगों की सकुशल वापसी का इंतजार
चिरैया : जलजला के पांचवें दिन लोगों के मन में भूकंप का भय कम हुआ है़ बाजार व दुकान में चहल-पहल बढ़ी है़, परंतु लोग आज भी घरों के बजाय खुले आसमान में रहना ज्यादा चाह रहे हैं.
इधर प्रखंड के बरैठा, भेडियाही, मदहर, मिश्रौलिया, पटजिलवा, मीरपुर, भूलअहिया व शिकारगंज में वैसे लोगों के चेहरे पर उदासी देखी गयी, जिनके परिजन काठमांडू में फंसे है़. वे सकुशल वापसी के लिए मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे है़. वहीं महिलाएं आंगन में फूल, अक्षत व मिश्री चढ़ा कर धरती माता की पूजा-अर्चना में लगी हुई है़.
वहीं प्रखंड के कई जगहों पर लगातार भजन-कीर्तन भी धरती माता के लिए शुरू हो गयी है़ इधर, विधायक लक्ष्मी नारायण प्रसाद यादव ने भी क्षेत्र में भ्रमण कर काठमांडू में फंसे व्यक्तियों के परिजनों से मुलाकात कर हालचाल पूछने में लगे हुए है़. वहीं सीओ सीताराम दास व बीडीओ रवि रंजन ने प्रखंड क्षेत्र के भूकंप से प्रभावित परिवारों का घर ध्वस्त हो गया है, उनका सूची बनाने में जुटे हुए है़. सीओ ने बताया कि भूकंप से प्रभावित परिवारों को हर सुविधा मुहैया करायी जा रही है़
शुरू किया भिक्षाटन
मोतिहारी : गांधी संग्रहालय में बुधवार को समाजसेवियों की बैठक भूकंप पीड़ितों की मदद करने का संकल्प लिया गया़ बैठक की अध्यक्षता पूर्व मंत्री ब्रजकिशोर सिंह ने की़ कहा कि भूकंप पीड़ितों के लिए भिक्षाटन शुरू कर दिया गया है़
आंध्रा बैंक व डा ईशा रमेश, डा किशोर कुणाल ने पीड़ितों के सहायतार्थ दान दिया़ मौके पर गौरी पूजन गुप्ता, अमन कुमार राज, धर्मवीर प्रसाद, आलोक कुमार, श्रीनिवास सिंह, ओमप्रकाश यादव, अनुप मौजूद थे.
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