1903 में बक्सर से कोलकाता फिर वेस्टइंडीज गये थे पूर्वज
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पूर्वजों की तलाश में बक्सर पहुंचे गिरमिटिया मजदूरों के वंशज
1903 में बक्सर से कोलकाता फिर वेस्टइंडीज गये थे पूर्वज गूगल मैप व जीपीएस के सहारे पैतृक गांव पहुंचे वंशज बक्सर : कहते हैं कि इनसान कहीं भी रहे या कितना भी बड़ा हो जाये लेकिन, वह अपने वतन की मिट्टी और अपने इतिहास व अपनों को नहीं भूल सकता. ऐसा ही कुछ बुधवार को […]
गूगल मैप व जीपीएस के सहारे पैतृक गांव पहुंचे वंशज
बक्सर : कहते हैं कि इनसान कहीं भी रहे या कितना भी बड़ा हो जाये लेकिन, वह अपने वतन की मिट्टी और अपने इतिहास व अपनों को नहीं भूल सकता. ऐसा ही कुछ बुधवार को देखने को मिला. 114 साल पहले देश से गये गिरमिटिया मजदूरों के वंशजों को अपनों की याद व अपनी जड़ों की तलाश बक्सर खींच लायी. अपनी चौथी पीढ़ी के लोगों से मिलकर वे भावुक हो उठे और परिवार के लोगों को त्रिनिदाद आने का आमंत्रण भी दिया. बक्सर जिले के इटाढ़ी प्रखंड के बिझौरा गांव निवासी शिवगोबिंद वर्षों पहले अंगरेजी हुकूमत में मजदूरी करने के लिए वेस्टइंडीज गये और त्रिनिदाद में बस गये.
इसके बाद उन्होंने न तो कभी अपनों से बातचीत की और न ही उनके बारे में कोई जानकारी हासिल की. वर्षों बीत गये तीन पीढ़ियां गुजर गयीं. लेकिन, चौथी पीढ़ी के लोग जानते थे कि बिहार के बक्सर में बिझौरा कोई जगह है जहां के वे रहने वाले हैं. यहां आने के बाद जीपीएस के माध्यम से वे आसानी से अपने गांव पहुंच गये.
बिहार की बदतर स्थिति बनी थी दूरी की वजह
त्रिनिदाद से अपनों को तलाशने निकले हरिलाल व उनके भाई तिरभवन दिल्ली से बक्सर पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि आज से करीब 10 वर्ष पहले उन्हें अपने गांव के बारे में पता चला. इंटरनेट पर सर्च किया. उस वक्त बिहार की स्थिति अच्छी नहीं थी. इसलिए वे आने की हिम्मत नहीं जुटा सके.
पीएम बिटिया के बैचमेट हैं तिरभवन
तिरभवन ने बताया कि वे यूनिवर्सिटी में त्रिनिदाद व टोबैगो की पीएम कमला प्रसाद बिसेसर के साथ पढ़े हैं. कमला भारतीय मूल की बेटी हैं. जिनके पूर्वज भी गिरमिटिया मजदूर बनकर वहां गये थे. वे वर्ष 2012 में अपने पैतृक गांव बक्सर के भेलूपुर आयीं थी. यहां से लौटने के बाद उन्होंने बताया था कि बिहार की स्थिति बेहतर है. तब तिरभवन व हरिलाल ने अपने पैतृक गांव आ सके.
क्या है गिरमिटिया मजदूर
अंगरेजों ने भारतीयों के सस्ते मजदूर होने का फायदा उठाया और अपने उपनिवेश वाले तमाम देशों में उन्हें काम करने के लिए ले गये. इन लोगों को ‘एग्रीमेंट पर लाया गया मजदूर’ कहा गया. एग्रीमेंट शब्द आगे चलकर ‘गिरमिट’ और फिर यहीं शब्द अपभ्रंश होकर ‘गिरमिटिया’ में बदल गया.
मंदिर निर्माण की रखी नींव
पैतृक गांव पहुंचने के बाद अपने दादा शिवगोबिंद की स्मृति में मंदिर निर्माण करने का निर्णय लिया. बुधवार को विधिवत पूजा-पाठ करने के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया. इसके अलावा गांव के लोगों के लिए दो सार्वजनिक शौचालय व एक स्नानागार का भी निर्माण करवा रहे हैं.
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