Bihar Vidhan Sabha Election Result 2020 बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में अपने पिता और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू प्रसाद की राजनीतिक विरासत बचाने में उनके दोनों बेटे कामयाब रहे. हालांकि, चुनावी नतीजों में महागठबंधन जादुई आंकड़े से महज कुछ सीटें ही पीछे रह गया. इसको लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार गरम है. तेजस्वी यादव को अब अगले पांच साल के लिए फिर से संघर्ष की शुरुआत करनी होगी. राजनीतिक प्रेक्षकों का ऐसा मानना है कि इस बार आरजेडी के पोस्टर से लालू प्रसाद की तस्वीर भले ही नदारद रही हो, लेकिन सत्ता में आने पर लालू प्रसाद का अनुभव सरकार चलाने में तेजस्वी के काम आ सकता था.
गौर हो कि बिहार चुनाव के लिए तारीखों के एलान से पहले ही राजधानी पटना की सड़कों पर तेजस्वी यादव के होर्डिंग, पोस्टरों और तमाम बैनरों से लालू प्रसाद समेत परिवार के अन्य सदस्यों की तस्वीर गायब दिखी थी. पोस्टरों में सिर्फ तेजस्वी यादव नजर आ रहे थे. पार्टी समर्थकों और नेताओं को हर बार की तरह इस बार भी उम्मीद थी शायद चुनाव के दौरान पोस्टर-बैनर में लालू प्रसाद यादव भी नजर आएं. लेकिन, तेजस्वी ने पूरे प्रचार के दौरान अपने परिवार के सदस्यों को इससे दूर रखा है. महागठबंधन के सत्ता से महज कुछ सीटों की वजह से दूर रहने के बाद अब इस बात को लेकर सवाल उठने लगे है कि आखिर तेजस्वी ने ऐसा क्यों किया.
दरअसल, हर बार की तरह 2020 के चुनाव में भी एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी और जदयू की ओर जंगलराज और चारा घोटाले का मामला जोर शोर से उठाये जाने की किसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था. इस मामलों को लेकर लालू प्रसाद और उनका परिवार हमेशा विरोधियों के निशाने पर रहा हैं. पीएम मोदी से लेकर सीएम नीतीश कुमार तक अपनी चुनावी सभाओं में 15 साल के लालू-राबड़ी राज का जिक्र करते हुए अनेक मंचों से जंगलराज की वापसी की बातों का जिक्र करते रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो तेजस्वी यादव ने इसी के मद्देनजर पहले ही अपने पिता लालू यादव से दूरी बना ली थी. तेजस्वी सिर्फ सहानुभूति के लिए चुनावी रैलियों में अपने पिता लालू प्रसाद का नाम लेते थे. साथ ही कई बार अपने पिता के शासनकाल के लिए उन्होंने माफी भी मांगी है. हालांकि, चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में नहीं गया. लेकिन, सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि तेजस्वी भविष्य में एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरेंगे.
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