आरा : जगदीशपुर प्रखंड के बिचला जंगल महाल पंचायत की वार्ड संख्या सात की निवर्तमान वार्ड सदस्या नीतू देवी इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं. लेकिन अपने बीते पांच सालों के अनुभव से वे अत्यंत निराश हैं. वे अपने निराशा का कारण बताती हैं कि अपने गांव का आधुनिक रूप से विकास करने का सपना लेकर विश्वास के साथ वार्ड सदस्य का चुनाव लड़ी थी और ग्रामीणों ने मुझ पर विश्वास भी किया था.
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समाज में पुरुष मानसिकता आज भी हावी
आरा : जगदीशपुर प्रखंड के बिचला जंगल महाल पंचायत की वार्ड संख्या सात की निवर्तमान वार्ड सदस्या नीतू देवी इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं. लेकिन अपने बीते पांच सालों के अनुभव से वे अत्यंत निराश हैं. वे अपने निराशा का कारण बताती हैं कि अपने गांव का आधुनिक रूप से विकास करने का […]
लेकिन दुख है कि अपने पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ अपने वार्ड अंतर्गत करहा और पईन निर्माण का ही कार्य करा सकी. जबकि नली, गली का पक्कीकरण, काली मंदिर स्थित पोखरा घाट का निर्माण आदि नहीं करा सकी.
कार्य नहीं करा पाने के पीछे के कारणों को बताते हुए नीतू देवी अत्यंत भावुक हो जाती हैं. वह कहती है कि आज भले ही समाज और सरकार नारी को आधी भागीदारी देने को कहते हैं, लेकिन मेरा अनुभव यही रहा कि यह सबकुछ बकवास है. उन्होंने बताया कि हमने पंचायत की कई बैठकों में अनगिनत योजनाओं को चयनित करा कर भेजवाया था. लेकिन उपर के अधिकारियों द्वारा किसी भी योजना के क्रियान्वयन की स्वीकृति नहीं दी गयी. क्यों नहीं दी जा रही थी,
यह हमारी समझ से परे हैं. हमने जगदीशपुर के अनुमंडल पदाधिकारी और जिलाधिकारी के जनता दरबार में भी कई बार आवेदन देकर उन चयनित योजनाओं के क्रियान्वयन की गुहार लगायी, लेकिन हर बार आवेदन पर्ची पर एक-दूसरे अधिकारी को निर्देशित कर मामला टलता रहा. इसी प्रकार सभी चयनित योजनाओं के क्रियान्वयन कराने संबंधी आवेदन देते-देते मेरे पांच साल कब और कैसे बीत गये. यह मुझे पता ही नहीं चला. वे अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान अनुमंडल पदाधिकारी, उप विकास आयुक्त और जिलाधिकारी को समय-समय पर दिये गये आवेदनों की एक मोटी फाइल दिखाते हुए कहती है कि गांव के विकास के मेरे सपनों का गला घोंट दिया गया.
उन्होंने कहा कि हमने अपने कार्यकाल में ईमानदार प्रयास की थी, लेकिन सफल नहीं हो सकी. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहती है कि हमारे पंचायत में चार वार्ड हैँ तथा चारों में महिलाएं ही वार्ड सदस्या चुनी गयी थी.
लेकिन किसी भी वार्ड में चयनित योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कराया गया. उन्होंने कहा कि मैं किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी को दोष देना नहीं चाहती, बल्कि हमलोग अपने को नारी होने की दोषी मानती हूं. क्योंकि हमलोग रोज-रोज कोर्ट-कचहरी तो नहीं जा सकती थी. जहां तक संभव हुआ, वहां तक अधिकारियों को पत्र व आवेदन देती रही. बावजूद कुछ नहीं किया गया. मेरा मानना है कि अभी भी समाज में पुरुष मानसिकता हावी है.
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