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नगर निगम ने बगैर जमीन के रहनेवालों का किया था सर्वे

हड़ताल का दौर: सितंबर-अक्तूबर की सफाई में फर्जी बिल की आहट भागलपुर : निगम क्षेत्र में पिछले वर्ष 50 दिनों से अधिक के सफाई हड़ताल में निजी सफाई व्यवस्था का बिल सवालों के घेरे में आ गया है. निगम प्रशासन को सितंबर-अक्तूबर में हड़ताल के दौरान हुई सफाई का फर्जी बिल जमा होने की आहट […]

हड़ताल का दौर: सितंबर-अक्तूबर की सफाई में फर्जी बिल की आहट

भागलपुर : निगम क्षेत्र में पिछले वर्ष 50 दिनों से अधिक के सफाई हड़ताल में निजी सफाई व्यवस्था का बिल सवालों के घेरे में आ गया है. निगम प्रशासन को सितंबर-अक्तूबर में हड़ताल के दौरान हुई सफाई का फर्जी बिल जमा होने की आहट हो गयी. इस कारण वार्ड पार्षदों के दिये सफाई का बिल भुगतान रोक दिया. बताया गया कि बगैर काम किये भी कुछ वार्ड से सफाई के नाम पर एक माह का 80 हजार रुपये तक का दावा ठोका गया.
निगम ने सफाई बिल के सही भुगतान कराने के लिए जांच के निर्देश दिये. जांच के होने पर ही हड़ताल की अवधि में हुई सफाई का मानदेय जारी होगा. मानदेय के अब तक जारी नहीं होने से उन पार्षदों में बेचैनी बढ़ गयी है, जिन्होंने अपनी जेब से पैसे दे दिये. उन्हें डर है कि निगम फर्जी बिल के चक्कर में कहीं उनकी राशि पर कैंची न चला दे. अगर ऐसा हुआ तो कुछ पार्षद निगम के खिलाफ आंदोलन कर सकते हैं.
यह दिये थे नगर आयुक्त ने निर्देश : सितंबर-अक्तूबर में हड़ताल की अवधि में नगर आयुक्त ने वार्ता विफल होने पर सभी पार्षदों से अपने वार्ड की सफाई का जिम्मा संभालने के लिए कहा था. इसमें सभी से आवश्यकता के अनुसार आठ से 10 मजदूर रखते हुए सफाई करना था. वार्डों में निजी सफाई मजदूर के माध्यम से सफाई करायी गयी.
इमरजेंसी के दौर में सफाई करनेवाले मजदूर परेशान
नगर निगम में सफाई कर्मियों के हड़ताल की अवधि में निजी तौर सफाई करने वाले मजदूर परेशान हैं. उन्होंने जरूरत के समय हड़ताली कर्मी के खिलाफ जाकर सफाई व्यवस्था दुरुस्त रखने पर साथ दिया था. कई वार्ड में निजी सफाई करने वाले लोग अब संबंधित पार्षद के चक्कर काट रहे हैं.
यह है विभागीय गाइडलाइन
नगर विकास विभाग के गाइड लाइन के अनुरूप सफाई कर्मी को प्रति दिन 206 रुपये का भुगतान होना है. इसके आधार पर ही सफाई की मजदूरी दी जा सकती है. मगर कुछ वार्ड से 206 रुपये के मानदेय पर मजदूर नहीं मिलने का हवाला दिया है. उन्होंने सही मजदूरी की राशि पर बिल बना दिया है. उन्होंने सफाई व्यवस्था के जरूरी होने के कारण मजदूरी की राशि अधिक माने जाने का भी तर्क दिया.
प्रशासनिक स्तर पर सत्यापन में सूची में पायी जा रही गड़बड़ी
पुराने परचाधारी भी जाने से कर रहे इनकार
शहरी क्षेत्र में 64 लाभुकों को जमीन का परचा दिया गया था. इन परचाधारी को कनकैती स्थित सरकारी जमीन पर बंदोबस्ती कर उन्हें बसने के लिए कहा गया. मगर वहां पर परचाधारी बसना नहीं चाहते हैं.
शहरी क्षेत्र की सरकारी जमीन पर भी कब्जा : निगम क्षेत्र में दीपनगर, भीखनपुर जैसे जगहों पर सरकारी जमीन पर कब्जा हो रखा है. इस अवैध कब्जा को लेकर प्रशासनिक स्तर पर अतिक्रमण वाद चल रहे हैं. इधर, लाभुकों की सूची का आकलन नहीं होने से लीज नीति पर जमीन का प्रस्ताव तैयार नहीं हो सका है.

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