पखवारे भर पहले भी जहर डाल कर मारी थीं मछलियां
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कोआ नाले में जहर डाल कर मछली मारी
पखवारे भर पहले भी जहर डाल कर मारी थीं मछलियां कहलगांव : कहलगांव शहर के पास कोआ नाला धार में बुधवार की रात मछली चोरों ने जहर डाल कर कई क्विंटल मछली मार ली. मछली निकाल कर कहलगांव हाट सहित अन्य शहरों की मंडियों में बेच दी. सूत्रों का कहना है कि जहर देकर मछली […]
कहलगांव : कहलगांव शहर के पास कोआ नाला धार में बुधवार की रात मछली चोरों ने जहर डाल कर कई क्विंटल मछली मार ली. मछली निकाल कर कहलगांव हाट सहित अन्य शहरों की मंडियों में बेच दी. सूत्रों का कहना है कि जहर देकर मछली मारने वाले चोर गिरोह के पीछे जलकर माफिया भी होते हैं. वार्ड पार्षद सह जल श्रमिक संघ के राज्य समन्वयक योगेंद्र सहनी, कोआ नाला में पिछले कई दिनों से मछली की शिकारमाही में लगे मछुआरे राजकुमार सहनी, रंजीत सहनी, राजू सहनी, निरुहआ सहनी आदि ने बताया कि इस तरह मछलियां मारने में गैर मछुआरे चोर सक्रिय हैं. इनके पीछे जलकर माफियाओं का हाथ रहता है. मछलियां मारने वाले दैनिक मजदूर के रूप में ही काम करते हैं.पानी में देर रात जहर डालने से बड़ी मात्रा में मछलियां मर कर पानी की सतह पर आ जाती हैं. इसके बाद चोर तड़के ही मछलियां एकत्रित कर लेते हैं.
जाड़े में गंगा व इससे सटे कोल-ढावों में छोटी-छोटी कीमती मछलियां आती हैं. इनमें पिओरा, पलवा, रेवा, गरई, सिंघी, पोठिया प्रजाति की मछलियां होती हैं. वहीं कलभोंस, कतला, मिरका, रोहू, बचवा, हडबुआरी जैसी मछलियां बड़े आकार में होती है. पानी में जहर डालने से मछलियां पहले बिलबिला कर पानी की ऊपरी सतह पर आ जाती हैं. कुछ प्रजाति की मछलियां जहर के असर से पानी के अंदर ही बैठ जाती हैं, जो दूसरे दिन तेज धूप में सड़ी-गली अवस्था में पानी की ऊपरी सतह पर पहुंचती हैं.
अवैघ रूप से शिकारमाही पर रोक लगाने की मांग : गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े नेताओं ने गंगा व इससे जुड़े कोल-ढावों में जहर देकर अवैध रूप से मछली शिकारमाही पर रोक लगाने की मांग भागलपुर के एसएसपी से की है.
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