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नवमी को कन्या पूजन व हवन आज

भागलपुर : शहर में नवमी पर सोमवार को श्रद्धालुओं द्वारा कन्या पूजन व हवन कराया जायेगा. अष्टमी व्रत का पारण सोमवार को सूर्योदय के बाद कन्या कुंवारी व ब्राह्मण भोजन के बाद होगा. नवरात्र व्रत के लिए जो व्रती उपवास करते हैं, उनका पारण 11 अक्तूबर को दशमी तिथि में सूर्योदय के बाद करना चाहिए. […]

भागलपुर : शहर में नवमी पर सोमवार को श्रद्धालुओं द्वारा कन्या पूजन व हवन कराया जायेगा. अष्टमी व्रत का पारण सोमवार को सूर्योदय के बाद कन्या कुंवारी व ब्राह्मण भोजन के बाद होगा. नवरात्र व्रत के लिए जो व्रती उपवास करते हैं, उनका पारण 11 अक्तूबर को दशमी तिथि में सूर्योदय के बाद करना चाहिए.

ओम् ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.
इस मंत्र से नवमी को हवन किया जाता है.
इसका विधान भी है-
कुछ लोग दुर्गा सप्तशती में वर्णित सात सौ श्लोकों को पढ़ कर भी हवन करते हैं.
हवन में इस लकड़ी का प्रयोग
हवन में आक, पलास, पीपल और दुम्बर, शमी, दुर्वा, कुश का प्रयोग हवन में होता है. यदि यह लकड़ी उपलब्ध नहीं होता है, तो आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है.
हवन में लगता है शाकल
शाकल में तिल व तिल से आधा तंडुल (अरवा चावल), तंडुल का आधा जौ, जौ का आधा गुड़ व सबका आधा घी को मिलाया जाता है. इसमें धूप की लकड़ी भी मिलायी जाती है. इन सभी काम के बाद लकड़ी, गोयठा, रूई, कपूर, घी से आग सुलगाये जाते हैं. अग्नि में उक्त मंत्रोच्चार के साथ शाकल डाल कर हवन किया जाता है. कुछ लोग गाय के दूध से बनी खीर से भी हवन करते हैं. हवन करने के लिए 700 बार मंत्रोच्चार किया जाता है. चाहे बीज मंत्र का उच्चारण हो या सप्तशती के 700 श्लोकों का पाठ कर.
तिलकामांझी हटिया प्राचीन दुर्गा मंिदर में पूजा-अर्चना करते श्रद्धालु.
कुंवारी पूजन की विधि
नवमी तिथि को कुंवारी पूजा को शुभ व आवश्यक माना जाता है. सामर्थ्य हो तो नवरात्र भर प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुंवारियों के चरण धोकर उन्हें देवी का रूप मान कर गंध व पुष्पादि से अर्चन कर आदर के साथ यथा रूचि मिष्ठान्न भोजन कराना चाहिए व वस्त्रादि से सत्कृत करना चाहिए. शास्त्रों में नियम है कि एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष की, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ, काम-त्रिवर्ग की, चार की पूजा से राज्यपद की,
पांच की पूजा से विद्या की, छह की पूजा से षट्कर्म सिद्धि, सात की पूजा से राज्य की, आठ की अर्चना से संपदा की और नौ कुंवारी कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है. कुंवारी पूजन में 10 वर्ष तक कि कन्याओं का अर्चन विहित है. 10 वर्ष से ऊपर की आयु वाली कन्या का कुंवारी पूजन में वर्जन किया गया है.

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