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कुछ तो ध्यान दीजिये साहब, गंधा रहे हैं सड़े आलू

भागलपुर : शहर के बुद्धिजीवी व रंगकर्मी अंग सांस्कृतिक भवन का हाल देख कर दुखी हैं. उनका कहना है कि साहबों की उपेक्षा व आपदा प्रबंध विभाग की हठधर्मिता से अंग सांस्कृतिक भवन का हाल बुरा है. मेकअप रुम में लोग रह रहे हैं तो मंच पर बोरियों की ढेरी व दर्शक दीर्घा में आलू […]

भागलपुर : शहर के बुद्धिजीवी व रंगकर्मी अंग सांस्कृतिक भवन का हाल देख कर दुखी हैं. उनका कहना है कि साहबों की उपेक्षा व आपदा प्रबंध विभाग की हठधर्मिता से अंग सांस्कृतिक भवन का हाल बुरा है. मेकअप रुम में लोग रह रहे हैं तो मंच पर बोरियों की ढेरी व दर्शक दीर्घा में आलू सड़ रहे हैं. बरामदे में निर्वाचन का काम हो रहा है तो ताला लगे चैनल गेट पर बाइक खड़ी है. जहां पर सुरों की नदी बहनी चाहिए वहां पर अव्यवस्था का नंगा नाच हो रहा है.

उद्घाटन 22 फरवरी 2006 को जब सूबे के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी द्वारा अंग सांस्कृतिक भवन का उद्घाटन किया गया था तो लगा कि भागलपुर के कलाप्रेमियों की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक ठौर मिल गया. सांस्कृतिक गतिविधियों को अंजाम देेने के लिए बेहतरीन स्टेज, संजने-संवरने के लिए एसी मेकअप रूम, करीब 500 दर्शकों की क्षमता वाला दर्शक दीर्घा मौजूद था. साथ ही लजीज व्यंजनों के लिए सुसज्जित रसोई घर और फ्रेश होने के लिए बाथरूम भी यहां पर मौजूद था.
अंग सांस्कृतिक भवन के शुरू होने के बाद यह स्थान शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया था. हर साल (साल 2006 से साल 2011 तक) सांस्कृतिक भवन को औसतन दो से ढाई लाख रुपये के राजस्व की प्राप्ति भी होने लगा था. 2011 में आपदा प्रबंधन विभाग के हाथों में इस भवन की बागडोर गयी तो यहां पर कलाकारों की आवाजाही ठप हो गयी. भवन के अंदर जहां कलाकार अपनी प्रस्तुतियां करते थे, उसकी जगह पर बोरे, आपदा के सामान, राहत सामग्री रखी जाने लगी. यहां से एक बार जो शहर की सांस्कृतिक गतिविधि बेघर हुई तो पूरे शहर में भटकी. जुलाई 2016 को छोड़ दिया जाये तो यह भटकाव आज भी जारी है.

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