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विविध रंगों में रंगेगा दशहरा मेला

आस्था : मारवाड़ी पाठशाला परिसर में हंगरी के संसद भवन स्वरूप में सजेगा दुर्गा पूजा पंडालदुर्गा पूजा को लेकर विभिन्न दुर्गा मंदिरों व पंडाल की तैयारी जोरों पर हैं. मारवाड़ी पाठशाला परिसर में जुबक संघ की ओर से हंगरी के संसद स्वरूप का पंडाल तैयार कराया जा रहा है, तो सत्कार क्लब की ओर से […]

आस्था : मारवाड़ी पाठशाला परिसर में हंगरी के संसद भवन स्वरूप में सजेगा दुर्गा पूजा पंडालदुर्गा पूजा को लेकर विभिन्न दुर्गा मंदिरों व पंडाल की तैयारी जोरों पर हैं. मारवाड़ी पाठशाला परिसर में जुबक संघ की ओर से हंगरी के संसद स्वरूप का पंडाल तैयार कराया जा रहा है, तो सत्कार क्लब की ओर से कचहरी चौक पर मेरठ विकिपिडिया मंदिर का स्वरूप बनाया जा रहा है. वहीं मुंदीचक गढ़ैया में मायापुरी इस्कॉन मंदिर के स्वरूप का पंडाल तैयार किया जा रहा है.

मोहद्दीनगर, मुंदीचक, महाशय ड्योढ़ी, काली बाड़ी, दुर्गाबाड़ी, लहरी टोला, मंदरोजा आदि स्थानों पर प्रतिमा स्थापित की जाती है. मोहद्दीनगर, दुर्गाबाड़ी, कालीबाड़ी में दुर्गा पूजा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम की धूम रहेगी. इसके अलावा अन्य स्थानों पर भी जागरण व अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन होंगे.
बैलूर मठ के अनुसार होती है पूजा
जुबक संघ के सचिव बबन साहा ने बताया कि 1958 में बांग्ला साहित्यकार बलायचंद्र मुखोपाध्याय उर्फ बनफूल ने युवक संघ की स्थापना की. उस समय संस्था के सदस्य सरस्वती पूजा करते थे. पटल बाबू रोड के बंगालियों से अन्य बंगाली तिरस्कार की नजर से देखते थे. इसी आन पर यहां के बंगालियों ने अन्य समाज को जोड़ कर 1983 से दुर्गा पूजा शुरू की और आज पूरे शहर में बड़ा मेला के रूप में प्रसिद्ध हो गया. यहां की पूजा विधि बैलूर मठ के अनुसार है.
यहां हरेक वर्ष तीन तरह की बलि दे जाती है. कोहढ़ा, ईख व पीला केला की बलि दी जाती है. यहां की कलश स्थापना छठी पूजा के दिन होती है. जुबक संघ के सचिव बबन साहा ने बताया कि पंडाल बनाने के लिए मालदा से मो फक्कू अपने टीम के साथ लगे हुए हैं. मूर्तिकार सुब्रतो पाल प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं, तो थर्मोकोल सजाने के लिए तपन सरकार, लाइट के लिए मुन्ना जी का सहयोग करेंगे.
एकादशी को होगा जागरण
1990 में सत्कार क्लब की स्थापना की गयी. तभी से अबतक लगातार दुर्गा पूजा करायी जा रही है. पहली पूजा को कलश स्थापना होगी. कोषाध्यक्ष धमेंद्र कुमार ने बताया कि छठी पूजा को माता का पट खुलेगा. अष्टमी एवं नवमी पूजन को खिचड़ी का भंडारा होगा. दशमी को हलुआ का भंडारा होगा. एकादशी को जागरण का आयोजन कराया जायेगा. कोषाध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि सत्कार क्लब की ओर से 27वां वर्ष मेरठ विकिपिडिया मंदिर के स्वरूप में पंडाल सजाया जायेगा. पंडाल का निर्माण मालदा के कारीगर करेंगे. शहनाई टेंट ने सजावट तो बिट्टू ने लाइटिंग का जिम्मा लिया है. प्रतिमा का निर्माण कोलकाता के कलाकार सेंग पाल के नेतृत्व में हो रहा है.
मायापूरी का इस्कॉन मंदिर
मुंदीचक गढ़ैया दुर्गा पूजा स्थान में पंडाल निर्माण जोरों पर है. सचिव कुमार धर्मेंद्र ने बताया कि यहां पर मायापूरी इस्कोन मंदिर के स्वरूप में पंडाल का निर्माण होगा. उन्होंने बताया कि यहां पर 1956 से लगातार मां दुर्गा की पूजा हो रही है.
विसर्जन में डांडिया नृत्य है खास
मोहद्दीनगर दुर्गा स्थान का इतिहास 100 वर्ष पुराना है. जमींदार स्व कमलधारी लाल ने पूजा कार्यक्रम की शुरुआत की. अध्यक्ष ध्यानेश्वर प्रसाद साह ने बताया उनके यहां पर संतान नहीं होने पर दुर्गा मां की पूजा की गयी. इसके बाद संतान हुआ. इसके बाद से ही उन्होंने यहां पर पूजा शुरू कर दिया. 1953 में आम लोगों ने मंदिर का निर्माण कराया. यहां पर सभी लोगों के मन की मुराद पूरी होती है. सांस्कृतिक सचिव राकेश रंजन केसरी ने बताया यहां पर हरेक वर्ष छठी पूजा से दशमी पूजा तक सांस्कृतिक कार्यक्रम की धूम होती है. एकादशी के दिन समाज की महिलाओं व बच्चों द्वारा डांडिया नृत्य करते हुए विसर्जन शोभायात्रा निकाली जाती है.
अकबर के जमाने से महाशय ड्योढ़ी में होती है दूर्गा पूजा
महाशय ड्योढ़ी में बादशाह अकबर के जमाने से पूजा होती है. महाशय परिवार के सूत्रधार श्रीराम घोष ने महाशय ड्योढ़ी परिसर में मां दुर्गा स्थान की स्थापना करायी. यहां की दुर्गा पूजा का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है. इस प्रकार भागलपुर में सबसे पुराना दुर्गा स्थान है. बांग्ला समाज के सामाजिक कार्यकर्ता देवाशीष बनर्जी ने बताया कि महाशय परिवार ने बादशाह अकबर के जमाने में कानूनगो सदर के रूप में भागलपुर में सल्तनत संभाली.
उस समय महाशय श्रीराम घोष को कानूनगो बनाया गया था. महाशय परिवार ने पूरे भागलपुर के विकास में अपनी अहम भूमिका निभायी. इसका साक्ष्य देवी दुर्गा का मंदिर, बाबा भैरो एवं बासुकी का मंदिर के साथ-साथ इसी परिसर में मसजिद भी अवस्थित है. ऐसा कहावत आम है कि काली है कलकत्ते की दुर्गा है महाशय की. यहां की पूजा बांग्ला विधि से होती है. यहां पर विशेष बात है कि अब तक यहां पर मिट्टी के फर्श पर ही प्रतिमा स्थापित की जाती है.
साल में चार बार होती है मां दुर्गा की पूजा
राधा देवी लेन मुंदीचक स्थित जन सांस्कृतिक संघ के अंतर्गत मां दुर्गा की पूजा साल में चार बार होती है. इस स्थान की स्थापना 1956 में और स्थायी मार्बल की प्रतिमा 1997 में रामस्वरूप साह, राखाल साह, गोरांग साह एवं स्वर्गीय विनोद साह के प्रयास से स्थापित की गयी थी. यहां पर स्थापित प्रतिमा जयपुर से मंगायी गयी थी. यहां पर चैत, आषाढ़, माघ व आश्विन माह में नवरात्र पूजन विधि-विधान के साथ कराया जाता है, जो पूरे भागलपुर शहर के लिए खास है. 1997 से पहले यहां पर मिट्टी की प्रतिमा हरेक वर्ष स्थापित की जाती थी. यहां पर सालों भर शाम में महिला मंडली भजन-कीर्तन करती है.
दुर्गा पूजा में व्यवसायियों व ग्राहकों का होता था मिलाप
मिरजान हाट में होने वाला दशहरा मेला कभी देश स्तर पर फैले गल्ला व्यवसायियों व ग्राहकों के मेल-मिलाप का अवसर हुआ करता था. यहां पर गोड्डा, दुमका, बांका, मुंगेर समेत सुदूर क्षेत्रों से ग्राहक व अन्य लोग यहां होने वाली राम लीला व भरत मिलाप देखने आते थे. राम लीला के लिए कलाकार बेगुसराय, दरभंगा एवं उत्तरप्रदेश से आते थे. कालांतर में गल्ला मंडी धीरे-धीरे उजड़ गयी और ऐसे आयोजनों ने भी दम तोड़ दिया. इसका एक अंश के रूप में भरत मिलाप का आयोजन आज भी देखने को मिलता है.

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