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जलस्तर में कमी,फिर भी जलमग्न

नवगछिया : पिछले दस दिनों से बाढ़ की विभीषिका झेल रहे नवगछिया शहर और आसपास के हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. गंगा के जलस्तर में कमी के बावजूद नवगछिया अब भी जलमग्न है. नवगछिया एनएच से बाजार या स्टेशन जाने के लिए कोई भी मार्ग सूखा नहीं है. सभी मार्ग पर पानी […]

नवगछिया : पिछले दस दिनों से बाढ़ की विभीषिका झेल रहे नवगछिया शहर और आसपास के हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. गंगा के जलस्तर में कमी के बावजूद नवगछिया अब भी जलमग्न है.

नवगछिया एनएच से बाजार या स्टेशन जाने के लिए कोई भी मार्ग सूखा नहीं है. सभी मार्ग पर पानी ही पानी है. मकंदपुर चौक से पूर्वी केबिन होते हुए नवगछिया बाजार प्रवेश करने वाले सड़क पर अभी भी एक फीट पानी का प्रवाह हो रहा है. नवगछिया प्रखंड मुख्यालय में अभी भी डेढ़ फीट पानी का प्रवाह हो रहा है. नवगछिया अनुमंडल में चार फीट पानी है. बाबा विशु राउत संपर्क पथ के ओवरब्रिज के नीचे एक फीट पानी बह रहा है. एसपी कार्यालय और आवास के पास अभी भी तीन से चार फीट पानी है. नवगछिया नया टोला में भी कहीं चार तो कहीं तीन फीट पानी है.

पानी से निकल रही दुर्गंध, बीमार हो रहे लोग. अब पानी बदबू कर रहा है. पानी में घुसने से लोगों के शरीर में खुजली हो रही है. लोग सर्दी जुकाम से भी पीड़ित हो रहे हैं.
रंगरा में पानी फैलने का सिलसिला जारी. रंगरा के नये इलाकों में पानी फैलने का सिलसिला जारी है. मुरली व चंद्रखरा में गंगा का पानी पहुंच गया है. रंगरा के स्लुइस गेट पर जलस्तर का अत्यधिक दबाव है. स्थानीय लोगों ने स्लुइस गेट खोल कर पानी का बहाव कोसी नदी में करने की मांग की है.
तेतरी के शिविर में बीमारी हो रहे लोग. तेतरी के शिविर में इस्माइलपुर प्रखंड के मोरकहिया गांव में सुरेश मंडल गंभीर रूप से बीमार पड़ा गया था. शिविर के मेडिकल कैंप में उसका समुचित इलाज नहीं हो पाया. उसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया. जगतपुर, जयमंगलटोला, सैदपुर, नयाटोला,
कटरिया स्टेशन आदि के राहत शिविरों में भी बाढ़ पीड़ितों के बीमार पड़ने की सूचना है.
कहते हैं एसडीओ. इधर नवगछिया के एसडीओ राघवेंद्र सिंह ने कहा कि नवगछिया के विभिन्न शिविरों में दोनों पालियों में 48 हजार बाढ़ पीड़ित खाना खा रहे हैं. अब कुछ जगहों से पानी उतर गया है. ऐसी जगहों से शिविर में सेवा बंद कर मुआवजा का कार्य शुरू किया जायेगा.
सुखाड़ वाले क्षेत्रों में भी पहुंचा बाढ़ का पानी, पहले कभी नहीं देखा
इस तरह की बाढ़ कभी नहीं देखी थी. कई सड़क डूब गयी, विश्वविद्यालय का क्षेत्र डूब गया. गोराडीह, जगदीशपुर, सन्हौला, शाहकुंड आदि क्षेत्रों में बारिश के समय पानी नहीं पहुंचता था, इस बार सुखाड़ की स्थिति में पहुंच गया. इंजीनियरिंग कॉलेज, जो तकनीकी शिक्षा और ज्ञान देता है, वह डूब गया. इसका मतलब कि पूर्वानुमान लगाने में गलती हुई है. सड़कें भी बनती है और टूटती है. इसका भी पूर्वानुमान होना चाहिए कि पानी कहां तक पहुंच सकता है.
बिहार में इस साल आयी बाढ़, बिहार के पानी से नहीं, बल्कि बाहर से आने वाला पानी के कारण बिहार में क्षति हुई. खासकर मध्यप्रदेश के पानी से. यह अजीबो-गरीब स्थिति है कि बिहार के धान की फसल पानी के बिना मर रही है. दूसरी ओर गंगा किनारे बसे दियारे के लोग या नीचे ढलान बसे शहर या गांव डूब रहे हैं.
ये साबित हो गया कि आधुनिक इंजीनियरिंग और विकास की गलत अवधारणा के कारण बाढ़ से तबाही हुई. फरक्का बराज का सवाल हमलोग लंबे अरसे से उठा रहे हैं. गंगा मुक्ति आंदोलन ने फरक्का बराज का विरोध किया, तो हमलोग को विकास विरोधी करार दिया गया. पर आज वही लोग फरक्का बराज के अवरोध का विरोध कर रहे हैं. गंगा हिमालय से निकलती है. हिमालय एक नया पहाड़ है.
नये पहाड़ होने के कारण गंगा के पानी में गाद अधिक होता है. गंगा के पानी में इतना गाद है कि ऊपर पहाड़ पर बने बहुत हाइडल पावर या पनबिजली परियोजना का टरबाइन गाद के कारण खराब हो जाता है. वहीं गाद बराज के कारण गंगा में जमा हो रहा है. गंगा के अलावा उसकी सहायक नदियों में भी बांध बनाये गये हैं.
बांध के कारण पानी के स्वाभाविक प्रवाह में कमी आती है. इस कारण गाद बह नहीं पाता है. गंगा या अन्य नदियों के जलग्रहण क्षेत्र घट रहा है. लोगों ने अतिक्रमण कर उस पर मकान या अन्य कई संरचनाएं खड़ी कर ली है. बगैर नियंत्रण किये सड़क भी जहां-तहां बनायी गयी, जो पानी के स्वाभाविक प्रवाह को रोकता है.
उदय, संस्कृतिकर्मी सह निदेशक, परिधि

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