स्वास्थ्य विभाग ने वशिष्ठ बाबू के इलाज पर कोई खर्च नहीं किया
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बेगाने ही छोड़ दिये गये महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह
स्वास्थ्य विभाग ने वशिष्ठ बाबू के इलाज पर कोई खर्च नहीं किया बीएनएमयू ने भी भूल गया आरटीआइ से हुआ खुलासा भागलपुर : जहां हर तरफ श्रेय लेने की होड़ मची हो, वहां गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को याद करना भी मुनासिब नहीं समझा जा रहा है. प्रतिभाओं को धरोहर मान कर सहेजना तो दूर, […]
बीएनएमयू ने भी भूल गया
आरटीआइ से हुआ खुलासा
भागलपुर : जहां हर तरफ श्रेय लेने की होड़ मची हो, वहां गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को याद करना भी मुनासिब नहीं समझा जा रहा है. प्रतिभाओं को धरोहर मान कर सहेजना तो दूर, राज्य स्वास्थ्य समिति ने वशिष्ठ बाबू जैसी शख्सीयत के इलाज पर एक भी रुपये खर्च नहीं किया. यही नहीं वशिष्ठ बाबू को विजिटिंग प्रोफेसर बनानेवाला बीएन मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा ने भी उनकी सुध नहीं ली.
वर्ष 2013 में प्रभात खबर ने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पर पूरे एक पेज की स्टोरी छापी थी. इसके जरिये समाज के सामने सवाल उठाया था – प्रतिभाओं को धरोहर मान कर सहेजने का. इसका असर भी दिखा. समाज का एक तबका उनकी मदद के लिए तो आगे आया, लेकिन वशिष्ठ बाबू जैसी महान शख्सीयत के नाम का इस्तेमाल कर कई ने सिर्फ अपना नाम चमकाने की कोशिश भी की.
दरअसल, भागलपुर के रहनेवाले आरटीआइ कार्यकर्ता अजीत कुमार सिंह ने मुख्य सचिव कार्यालय से गणितज्ञ वशिष्ठ पर इलाज के लिए सरकार के स्तर से उठाये गये कदमों के बारे में सूचना मांगी थी. इस पर राज्य स्वास्थ्य समिति के वरीय उपसमाहर्ता सह लोक सूचना पदाधिकारी ने सूचना दी है कि बिहार की राज्य स्वास्थ्य समिति ने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पर इलाज के लिए किसी प्रकार की राशि खर्च नहीं की है.
बीएन मंडल विश्वविद्यालय उन्हें विजिटिंग प्रोफेसर बना कर भूल गया. बीएन मंडल विश्वविद्यालय ने वशिष्ठ बाबू को विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त करने की अधिसूचना 13 अप्रैल, 2013 को जारी की थी. उसी दिन विश्वविद्यालय के एकेडेमिक काउंसिल की बैठक में इसका प्रस्ताव पूर्व सांसद रंजीता रंजन ने रखा था. अधिसूचना की प्रति लेकर एक विशेष दूत वशिष्ठ बाबू के पैतृक आवास (भोजपुर जिले का बसंतपुर गांव) पहुंचा था. 17 अप्रैल को वशिष्ठ नारायण सिंह मधेपुरा में अपना योगदान दे कर वापस घर आ गये. योगदान दिलाने के बाद विश्वविद्यालय ने उनकी कोई खोज खबर नहीं ली.
2014 में बोले थे विवि कुलपति : बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आरएन मिश्र ने प्रभात खबर से 2014 में कहा था, हमारे पहले के कुलपति के कार्यकाल में वशिष्ठ नारायण सिंह को विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति की गयी थी. वह मधेपुरा आये थे और यहां गेस्ट हाउस में ठहरे थे. लेकिन उनकी तबीयत खराब हो गयी थी, तो परिवार के लोग उन्हें लेकर चले गये थे. फिर परिवार की ओर से उनके स्वस्थ होने की कोई सूचना नहीं आयी. विश्वविद्यालय में मैथ का डिपार्टमेंट नहीं है. यदि वे आना चाहते हैं, तो विश्वविद्यालय उन्हें जरूर बुलायेगा.
मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं : बीएन मंडल विश्वविद्यालय कुलपति डॉ विनोद कुमार अभी विश्वविद्यालय मुख्यालय से बाहर हैं. प्रतिकुलपति डॉ जेपीएन झा भी विश्वविद्यालय मुख्यालय में फिलहाल नहीं हैं. गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में जब प्रभारी कुलसचिव डॉ शैलेंद्र कुमार से पूछा गया, तो उनका कहना था, ‘मुझे इस मामले में कोई जानकारी नहीं है कि गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के संबंध में क्या निर्णय लिया गया है.’
जानिये गणितज्ञ वशिष्ठ को
पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद वशिष्ठ बाबू 1963 में अमेरिका चले गये थे. उन्होंने 1969 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से पीएचडी की उपाधि हासिल की. 1974 में उनका शोध पत्र (रीप्रोड्यूसिंग केनेल्स एंड ऑपरेटर्स वीथ ए साइकीलिक वेक्टर वन) प्रकाशित हुआ. गणित की दुनिया में इस शोध पत्र ने तहलका मचाया और भोजपुर के एक छोटे से गांव बसंतपुर से निली इस प्रतिभा का दुनिया ने लोहा माना. वशिष्ठ बाबू के परिवार के लिए अतीत की ये सुखद स्मृतियां अब भी ताकत देती हैं. खुद वशिष्ठ बाबू इन स्मृतियों से दो-चार होते हैं. साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वशिष्ठ बाबू पीजी की परीक्षा पास करने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय थे.
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