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दरकते रिश्तों से रिसता खून

निशि रंजन यकीन करना मुश्किल है. किस पर यकीन करें. शक का दायरा बढ़ता जा रहा. अपने बेगाने होते जा रहे हैं. हम एक कठिन समय में हैं. कैसी-कैसी खबरें आती हैं. पति ने गर्भवती पत्नी को दहेज के लिए घर से निकाल दिया. सड़क के किनारे नवजात की लाश मिली. एक अज्ञात युवती की […]

निशि रंजन
यकीन करना मुश्किल है. किस पर यकीन करें. शक का दायरा बढ़ता जा रहा. अपने बेगाने होते जा रहे हैं. हम एक कठिन समय में हैं. कैसी-कैसी खबरें आती हैं. पति ने गर्भवती पत्नी को दहेज के लिए घर से निकाल दिया. सड़क के किनारे नवजात की लाश मिली.
एक अज्ञात युवती की हत्या हो गयी. पिता ने एसएसपी से लगायी गुहार, पुत्र कर रहा प्रताड़ित. और भी इस तरह की कई खबरें. रोज आती हैं ऐसी खबरें. अविश्वास का ऐसा माहौल. कौन किस पर यकीन करे कहना मुश्किल है. सवाल है आखिर क्या चाहिए. क्या कम हो गया. क्या खोज रहे हैं. जो नर नारायण था नर पिशाच कैसे बन रहा है. हवाओं में कौन जहर घोल रहा है. कई अनुत्तरित सवाल. आखिर वह कौन सी बुनियाद हिल गयी है.
एक समय था- जब लोग बच्चों सी मासूमियत के साथ दूसरे पर यकीन करते थे. अभी तो शहर में सीसीटीवी कैमरे का जाल बिछा है. संस्थान से लेकर सड़क तक. घर से लेकर पार्क तक. मोबाइल फोन सर्विलांस पर रखे जा रहे हैं. आपसी विश्वास का सारा तार जैसे उलझ कर रह गया है. गांव जहां कभी अपरिचित पहुंचने पर मेहमान सा व्यवहार पाता था. अब वहां भी स्थिति बदल रही है.
अपरिचित के आने पर ग्रामीणों में कानाफूसी शुरू हो जाती है.
कई तरह का अंदाजा लगाया जाना शुरू हो जाता है. सीधे-सीधे न कोई पूछता चाहता है, न कोई बताता है. क्या यह सब कुछ खत्म नहीं हो सकता. कोई मसीहा जादू की छड़ी घुमाये और एकदम से पूरा नजारा ही बदल जाये. दो पल भी तो एक दूसरे पर यकीन करके तो जियें. मुझे लगता है एक ताजा प्राण वायु मिल सकती है.

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