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संकट: 1990 की तुलना में 2006 तक भर गये 40 फीसदी तालाब, शहर में भर गये 43 तालाब
भागलपुर: शहरी क्षेत्र के 43 तालाब वर्ष 1990 से 2006 तक भर गये. आंकड़े बताते हैं कि 16 वर्ष में शहर स्थित 43 तालाब भर चुके हैं. 1990 से 2006 के बीच तालाबों का 40 फीसदी हिस्सा भर चुका है. शेष तालाब भी इसी राह पर है. कूड़े-कचरे डाल कर इसे भरा जा रहा है. […]
भागलपुर: शहरी क्षेत्र के 43 तालाब वर्ष 1990 से 2006 तक भर गये. आंकड़े बताते हैं कि 16 वर्ष में शहर स्थित 43 तालाब भर चुके हैं. 1990 से 2006 के बीच तालाबों का 40 फीसदी हिस्सा भर चुका है. शेष तालाब भी इसी राह पर है. कूड़े-कचरे डाल कर इसे भरा जा रहा है. अगर समय रहते शहर इस मसले पर गंभीर नहीं हुआ, तो आनेवाले वर्षों में शहर पानी के लिए तड़पेगा.
अब टीएनबी व हबीबपुर की बारी
अध्ययन के मुताबिक 1990 में शाहजंगी तालाब, हबीबपुर तालाब, मिरजानहाट तालाब, भैरवा तालाब, टीएनबी कॉलेज के सामने स्थित तालाब सहित सात तालाब थे. इनमें प्रत्येक तालाब का क्षेत्रफल दो हेक्टेयर से अधिक था. 2006 में टीएनबी कॉलेज के सामने स्थित तालाब व हबीबपुर स्थित तालाब को धीरे-धीरे भरते गये और इसका क्षेत्रफल दो हेक्टेयर से कम हो गया.
बढ़ी आबादी के कारण बढ़ी परेशानी
भागलपुर शहर का फैलाव 30.7 किलोमीटर था और आज भी वही है. जमीन उतनी ही रही और आबादी बढ़ती गयी. सड़कें वही हैं, जो पहले थीं. गरीब रोजगार की तलाश में आते थे और यहीं नो मेंस लैंड पर बसने लगे. बाद में एक्वायर करने लगे. घनी आबादी वाले क्षेत्र में अपार्टमेंट संस्कृति डेवलप कर गयी. इन वजहों से तालाब भरते गये. लोगों ने तालाब में कूड़ा-कचरा भर दिया. मैं, डॉ आरएन पांडेय व डॉ आरके सिन्हा ने रिमोट सेंसिंग पर अलग-अलग काम किये. सेटेलाइट की तसवीर पर अध्ययन किया था.
डॉ एसएन पांडेय, विभागाध्यक्ष, पीजी भूगोल, टीएमबीयू
अध्ययन से हुआ था खुलासा
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र ने करीब तीन वर्ष पूर्व शहर के तालाबों पर अध्ययन किया था. केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ आरके सिन्हा (दिवंगत) ने जीयो इंफॉरमेटिक सिस्टम (जीआइएस) द्वारा जारी सेटेलाइट से ली गयी तसवीरों पर अध्ययन किया था. यह खुलासा हुआ था कि वर्ष 1990 से 2006 तक भागलपुर शहर में स्थित 43 तालाब भर दिये गये.
इस तरह भर रहे तालाब
शहर का कूड़ा-कचरा तालाबों में भी फेंका जा रहा है. तालाब की सफाई की दिशा में कोई काम नहीं हो पा रहा है. शहर में कई ऐसे मोहल्ले हैं, जहां के तालाबों को मोहल्ले में बसे लोगों ने भी कूड़ादान बना दिया है. कभी जिन तालाबों का लोग पानी पीया करते थे, आज कपड़े धोना भी पसंद नहीं करते.
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