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मालिक से बने मजदूर

भागलपुर: रेशम नगरी के रूप में मशहूर भागलपुर के बुनकर दिनोंदिन आर्थिक रूप से पिछड़ते जा रहे हैं. ऐसे बुनकरों के कभी अपने लूम होते थे. 10 से 20 कारीगर काम करते थे. आधारभूत संरचना बिगड़ने व सरकारी उदासीनता से अब वह खुद कारीगर की पंक्ति में खड़े होने को विवश है. ऐसे में यही […]

भागलपुर: रेशम नगरी के रूप में मशहूर भागलपुर के बुनकर दिनोंदिन आर्थिक रूप से पिछड़ते जा रहे हैं. ऐसे बुनकरों के कभी अपने लूम होते थे. 10 से 20 कारीगर काम करते थे. आधारभूत संरचना बिगड़ने व सरकारी उदासीनता से अब वह खुद कारीगर की पंक्ति में खड़े होने को विवश है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि जो पहले मालिक थे, वह अब मजदूर बन गये हैं.
95 फीसदी बुनकर कर रहे महाजनों का काम : बुनकरों के अनुसार यह स्थिति हाल के दिनों में बनी है. कारोबार मंदा होने पर छोटे बुनकरों को अपने परिवार का पेट चलाना मुश्किल हो गया. अब 95 फीसदी से अधिक बुनकर महाजनों का काम करते हैं. कई ऐसे बुनकर, जो पहले कपड़ा बुनते थे, अब रिक्शा चलाने व मजदूरी करने को विवश हैं. बुनकर संघर्ष समिति के अध्यक्ष मो नेजाहत अंसारी बताते हैं कि बिजली संकट, पूंजी का अभाव, गुणवत्ता वाले कपड़े की चुनौती समेत मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बुनकरों की संख्या दिन व दिन घटती ही जा रही है.
केस : 1
होसिनाबाद में बड़े बुनकर मो नईम सरदार, जिनके खुद 12 लूम चलते थे. 30 से अधिक कारीगर काम करते थे. ऑर्डर और बाजार नहीं मिलने से आज उनका लड़का इरशाद अंसारी के यहां लूम चलाने को विवश है.
केस : 2
चंपानगर के मो फारूक काजी बड़े महाजन थे. उनका बड़ा कारोबार फैला था. सिल्क के साथ भागलपुरी चादर व लूंगी तैयार होते थे. महानगरों में उनके कपड़ों की मांग थी. आधारभूत संरचना बिगड़ने से कारोबार ही बिखर गया और आज उनका लड़का आैरंगजेब ठेला चलाने को विवश है.

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