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बच्चों में कम हो गया है इमोशनल टॉलरेंस लेवल : प्रो एनके वर्मा

बच्चों में कम हो गया है इमोशनल टाॅलरेंस लेवल : प्रो एनके वर्माध्यानार्थ : यह खबर नवयुग विद्यालय के छात्र की आत्महत्या की घटना को लेकर मनोवैज्ञानिक से बातचीत पर आधारित है.फोटो : प्रो एनके वर्मा, पूर्व कुलपति व मनोवैज्ञानिक, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (सिटी में)केस एक : एक जनवरी 2002 का पहला दिन. अभी दिन […]

बच्चों में कम हो गया है इमोशनल टाॅलरेंस लेवल : प्रो एनके वर्माध्यानार्थ : यह खबर नवयुग विद्यालय के छात्र की आत्महत्या की घटना को लेकर मनोवैज्ञानिक से बातचीत पर आधारित है.फोटो : प्रो एनके वर्मा, पूर्व कुलपति व मनोवैज्ञानिक, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (सिटी में)केस एक : एक जनवरी 2002 का पहला दिन. अभी दिन भी नहीं बीता था कि टीएनबी कालेज में द्वितीय वर्ष में पढ़ने वाला अश्वनी कुमार ने जहरीला पदार्थ खाकर जान दे दी. मौत के कारणों की छानबीन की गयी, तो पता चला कि वह किसी बात को लेकर परेशान था. केस दो : पांच दिसंबर की रात करीब आठ बजे नवयुग विद्यालय के पांचवी क्लास में पढ़ने वाला आशुतोष फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या का कारण, बहन के साथ हुआ मामूली विवाद है. दोनों मामले काे अगर ध्यान से देखा जाये तो पता चलेगा कि आत्महत्या के तरीके भले ही दो और उम्र में फासला हो लेकिन कारण एक ही है. वह है अवसाद के खिलाफ खुद का हार जाना. मनोवैज्ञानिक इसे भावनात्मक सहनशीलता के स्तर का कम हो जाना कहते हैं. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं मनोवैज्ञानिक प्रो एनके वर्मा कहते हैं कि खुद की श्रेष्ठता की जंग में आगे रखने की होड़ और मां-बाप और अपनों की पहाड़ सरीखी अपेक्षाओं ने आज की वर्तमान परिस्थितियाें में बच्चों की जिंदगी जटिल व समस्यात्मक बना दिया है. इससे उनमें सहनशीलता की कमी हो गयी है. आज का बच्चा इन समस्याओं काे लेकर भीतर से बहुत ही परेशान है, जिससे उनमें छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ने की प्रवृत्ति आम हो गयी है. बच्चे में अगर आक्रामकता ज्यादा है, तो वह दूसरों को हर्ट या फिर नुकसान करता है. लेकिन वह खुद काे तभी हर्ट करता है जब वह खुद को असफल महसूस करता है. उसमें यह भावना कहीं और या खुद से नहीं, बल्कि माता-पिता या फिर परिजन, दोस्त, अध्यापक कराते हैं कि वह किसी लायक नहीं है. यही एहसास उसके संवेदनशील मन को अंदर तक तोड़ देता है और वह खुद को हारा महसूस कराने लगता है. जिससे वह आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लेता है. सुझाव -बच्चे के अपने उसे किसी भी परिस्थितियों में हतोत्साहित न करें, बल्कि प्यार, सकारात्मक माहौल में उसे बढ़िया करने के लिए प्रेरित करें. -बच्चे को न तो कभी कड़े अनुशासन में रखें और न ही पूरी तरह से उसके प्रति लापरवाह हो जायें. -बच्चों के खराब परफाॅरमेंस को जानने के बाद उसकी कमियों को दूर करने में उसकी मदद करें. उसे इस वक्त हौसले और प्रेम की जरूरत होती है न कि डांट-फटकार की. -बच्चाें की भावनाओं काे समझें और उसकी पसंद के अनुसार उसे अपना कैरियर चुनने दें न कि अपने अनुसार उसे बनाने का प्रयास करें.

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