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मैं हूं अष्टांग आयुर्वेदिक महावद्यिालय

मैं हूं अष्टांग आयुर्वेदिक महाविद्यालयप्रभात पड़ताल-1……………………….फोटो : विद्यासागर कल की-देश के प्रथम राष्ट्रपति ने 1946 में रखी थी मेरी नींव – विश्व के सभी रोगों का उपचार सिखाने की क्षमता है मुझमें- 11 साल से छात्रों के आने की बाट जोह रहा हूं – 20 सीटों पर होती थी पांच वर्षीय डिग्री कोर्स की पढ़ाई- […]

मैं हूं अष्टांग आयुर्वेदिक महाविद्यालयप्रभात पड़ताल-1……………………….फोटो : विद्यासागर कल की-देश के प्रथम राष्ट्रपति ने 1946 में रखी थी मेरी नींव – विश्व के सभी रोगों का उपचार सिखाने की क्षमता है मुझमें- 11 साल से छात्रों के आने की बाट जोह रहा हूं – 20 सीटों पर होती थी पांच वर्षीय डिग्री कोर्स की पढ़ाई- आयुर्वेद के आठ अंगों के विषय की होती थी पढ़ाईसंवाददाता, भागलपुरमैं हूं अष्टांग आयुर्वेदिक महाविद्यालय. नयी पीढ़ी तो यह जानती भी नहीं होगी कि देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1946 में मेरी नींव रखी थी. वह इसलिए कि देश को आयुर्वेद के चिकित्सक दे सकूं और जनता को चिकित्सकीय सुविधा. तब मैं नाथनगर के कर्णगढ़ पर पूर्वी बिहार का इकलौता सरकारी अष्टांग आयुर्वेदिक महाविद्यालय हुआ करता था. तब मुझे देख गौरवान्वित होते थे लोग, आज सिर झुका कर बगल से गुजर जाते हैं. तब खिला-खिला रहा करता था. कई छात्र मेरे प्रांगण में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शिक्षा जो पा रहे थे. लेकिन पिछले 11 वर्षों से निराश हूं. मेरे ऐतिहासिक प्रांगण में अब न छात्र हैं और न यहां पढ़ाई शुरू करने की दूर-दूर तक आस दिख रही है. आज सरकारी उपेक्षा के कारण अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा हूं. डर रहा हूं कि कहीं मेरा अस्तित्व ही ना मिट जाये. तब गदगद रहा करता था. वह इसलिए कि महाविद्यालय के लिए विशाल इमारत बनायी गयी थी. आज दुखी हूं, क्योंकि यह सूनी हो गयी है. जर्जर चुके हो चुके पुराने शल्य शलाकीय चिकित्सा कक्ष को देख तड़प उठता हूं. मेरे परिसर में बड़े हो चुके छतवन, गाभ, अशोक, अमलताश की औषधीय पेड़ व आउट डोर कक्ष की हालत देख चीख पड़ता हूं. प्रसव के बाद जन्मे नवजात को दूध पीते और गंभीर टीबी रोग आदि बीमारी से स्वस्थ लोगों की मुस्कुराहट देखने को वर्षों से तरस रहा हूं. अपने पुराने दिन लौटाने की बार-बार अरजी देता हूं, पर कोई सुनता ही नहीं. काश ! वे एक बार इस बात को समझ पाते कि मेरे शिक्षा के मंदिर से आयुर्वेद चिकित्सा का ज्ञान पाकर छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश के काशी, लखनऊ, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि ना जाने कितने बड़े- बड़े शहरों के चिकित्सा संस्थानों में देश के लोगों को सेवा दे रहे हैं. मेरे शिक्षा के मंदिर में हर प्रकार के रोगों का निदान सीखाने की क्षमता है. लेकिन सभी संसाधनों से परिपूर्ण रहते हुए भी मैंं 11 साल से अपने छात्रों के आने का इंतजार कर रहा हूं. वर्ष 2010 में भागलपुर के सपूतों ने बंद हो चुकी पढ़ाई को चालू कराने के लिए हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. 18 मई 2011 को हाइकोर्ट ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई कर छह माह के अंदर महाविद्यालय को मानक के अनरूप विकसित कर फिर से नामांकन चालू करने और पठन-पाठन शुरू करने का आदेश दिया था. वाबजूद इसके आज तक सरकारी स्तर पर कोई पहल नहीं हो रही है. हमें विकसित करने की जिम्मेवारी सरकार के आयुष विभाग की है. जनहित याचिका दायर करनेवाले नाथनगर के 80 वर्षीय सुरेंद्र जैन कहते हैं कि हर पांच साल बाद सरकार बदल रही है, लेकिन इस आयुर्वेदिक कॉलेज की तसवीर नहीं बदल रही है. हाइकोर्ट के आदेश का भी चार साल से सरकार कोई नोटिस नहीं ले रही है. यदि यह कॉलेज फिर से चालू हो जाये, तो यहां के मरीजों के इलाज के लिए वरदान साबित हो जायेगा. मैंने उम्मीद नहीं खोयी है. आशान्वित हूं कि बिहार की नयी सरकार इस बार पहल करेगी. फिर से यह महाविद्यालय छात्रों के चहल पहल से गुलजार होगा. यदि ऐसा ना हुआ तो मैं भागलपुर के लोगों के साथ इस बुढ़ापे में भी दोबारा जोरदार आंदोलन का बिगुल फूंकने को तैयार हूं. ………………………………कॉलेज का परिचयवर्ष 1946 – डॉ राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी आधारशिलावर्ष 1985 – सरकार ने कॉलेज का किया था अधिग्रहणवर्ष 2004 – भारतीय चिकित्सा परिषद ने नामांकन पर लगायी थी रोक वषर् 2010 – कॉलेज चालू कराने कराने के लिए भागलपुर के नौ लोगों ने दायर की जनहित याचिका18 मई 2011 – पटना हाइकोर्ट ने कॉलेज को मानक के अनरूप विकसित कर नामांकन शुरू करने का दिया आदेश

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